Tuesday, May 14, 2024
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बनारसी गुरूओं की महत्ता और उनकी शान -भाग- 2

बनारसी गुरु

देश के विभिन्न भागो में लोग एक दूसरे को पुकारते समय मिश्र , मोशाय (महाशय )स्वामी , श्रीमान , जनाब , हुज़ूर सरदार जी ,और सरकार आदि संबोधनों का प्रयोग करते है | चूँकि बनारस में हर प्रांत के निवासी रहते है इसलिए ये सभी संबोधन शब्द यदा कदा सुनाई पड़ते है | लेकिन इन संबोधनों के अलावा कुछ विशेष संबोधन यहा अधिक प्रचलित है जो बनारसियो के लिए परम प्रिय है ही
——- उनके बिलकुल अपने खालिस बनारसी ! ‘ राजा ‘ ‘ मालिक ‘ सरदार ‘ और ‘ गुरु ‘ ये ऐसे संबोधन है जो बनारस के सिवा अन्यत्र सुनाई नही देंगे | सच पूछिए तो इन संबोधनों में जो रस है , वह प्रांतीयता –जातीयतावादी
संबोधनों में दुर्लभ है | इसके अलावा एक और संबोधन है — ‘ का हो !’ इस संबोधन का प्रयोग तभी होता है जब आगे जानेवाला व्यक्ति परिचित है या नही है यह भ्रम उत्पन्न हो जाए | इस संबोधन को सुनते ही प्रत्येक बनारसी एक बार पीछे मुडकर पुकारने वाले को देखेगा | परचित हुआ तो कोई बात नही वरना अपनी
राह चल देगा | ‘राजा ‘ और ‘ मालिक ‘ संबोधन हर वर्ग के व्यक्ति अपने समवयस्को के लिए प्रयोग करते है | कुछ ऐसे भी लोग है जिनका ‘ सभ्यता ‘ से जरा घनिष्ठ सम्बन्ध है , उन्हें ऐसे संबोधन अरुचिकर और भौडे लगते है |
लेकिन सच्चा बनारसी इन संबोधनों पर कुर्बान हो जाता है |उसके लिए मिस्त्र ,जनाब से कही अधिक अपनत्व और रसपूर्ण ये सब संबोधन है | उदाहरण के लिए “
सरदार ‘ संबोधन को लीजिये |यह संबोधन यहा के अहिरो के लिए रिजर्व है | यदि कल्लू अहीर को मिस्त्र कल्लूराम या जनाब क्ल्लुप्र्साद कहे तो एक बारगी आपको सर से पैर तक इस तरह देखेगा , मानो आपने भारी बतमीजी की है | उसकी शान में बट्टा लगा रहे है | ठीक इसी प्रकार ‘ गुरु ‘ संबोधन यहा के ब्राह्मणों के लिए रिजर्व है | चाहे वह पौसरे पर बैठकर पानी पिलाने वाला हो या पान का
दुकानदार , कथावाचक हो या वेदपाठी सभी ‘ गुरु ‘ है | अगर किसी ‘ गुरु ‘ को आपने मिस्त्र पाण्डेय या बाबू शुक्ल जी संबोधित कर दिया तो उसे लगेगा ,जैसे आपने उसे भरे बाजार में झापड़ लगा दिया हो | संभव है आपके नमस्कारकरने पर आशीर्वाद देना तो दूर रहा , वह रुख भी ना मिलाये | लेकिन उसी जगह यदि आप ‘ पाल्गी गुरु ‘ कहिये तो वे तुरंत शहद की तरह मीठे हो जायेंगे और
महात्मा बुद्ध की भांति मुद्रा बनाकर आशीर्वाद देते कह उठेंगे — मस्त रह बात मजे में ?

बनारस में गुरुओं का बहुत बड़ा वर्ग है | हर मेल के हर टाइप के गुरु यहा है | इनमे कौन छोटा है , कौन बड़ा है इसका निर्णय करना कठिन है | कौन कितना महान है , किस्मे कितनी प्रतिभा छिपी हई है — यह उतना ही गूढ़ विषय है जितना आज की नयी कविता में भाव ——-

गुरु के अनेक रूप ……………

साधारांतगुरु शब्द से जो तात्पर्य समझ में आटा है उसके कई रूप है | आज से नही मनु महराज के युग से गुरु उस व्यक्ति को कहा जाता है जो विद्यादान देता
है | प्राचीन काल में गुरु लोग छात्रो को विद्यादान देते थे , कुलपुरोहित का कार्य करते थे और राजकार्य में सहायता करते थे | जिस प्रकार आजकल गैर
-सरकारी संस्थाओं में क्लर्को के जिम्मे काफी काम लदे रहते है , उसी प्रकार प्राचीन काल में गुरुओं के जिम्मे देश – समाज के अनेक कार्य लदे रहते थे |
इसीलिए उनका प्रभाव बहुत व्यापक होता था | वे खिज्लाक्र कभी राजकुमारों को चपत लगा दिया करते थे | कभी ज्ञान – दंड से , कुंठित बुद्धिवाले छात्रों
की बुद्धि को कोंचते थे | पानी भरवाना , खेत जोत्वाना , पैर दबवाना और जंगल से काटकर लकड़ी मंगवाना तो साधारण बाट थी | आजकल विद्यादान करने वाले गुरु
जरा कुछ उपर उठ गये है | अब वे प्रोफेसर और मास्टर साहब हो गये है | इसलिए उनका प्रभाव घट गया है , या उन्हें यह सुविधा प्राप्त नही है |

कुल – पुरोहित तथा कथावाचक का एक अलग दल बन गया है | हवन – यज्ञ तो होते ही नही , क्योंकि आजकल भारतीय इतना खाने लगे है की विदेशो से अन्न मंगाना पद
रहा है | शुद्ध घी तो आँखों में लगाने को नही मिलता डालडा तक मंहगा हो गया है | फिर कौन यज्ञ – हवन कराए | धनुषबाण के युग में छात्रो को अश्वत्थ और बट वृक्ष के नीचे शिक्षा दी जाती थी | लेकिन एटम के युग में वह यूनवर्सिटी , कालेज और स्कूलो में दी जाने लगी है | ऐसे गुरुओं के बनारस में दो वेग है | एक वे जो सरकारी संस्थाओं में पढ़ाते है , दूसरे वे जो अपने घरो में मृतभाषा ( संस्कृत ) पढ़ाते है |
घर में पढने वाले छात्र संयमी होते है , वे अपने गुरुओं का आदर करते है भले ही वह अभिनय हो | अन्य गुरुओं को खासकर जो प्रश्न पत्र पर नम्बर देते है ,
उनकी जान खतरे में रहती है | इसीलिए आजकल बीमा कम्पनियों की गोटी लाल हो रही है | घर पर पढने वाले छात्रो को सरकारी नौकरी नही मिलती , केवल कथा
वाचना , विवाह , अनुष्ठान आदि करना , तीर्थ – पुरोहित बनकर संकल्प लेना और पोथी – पत्र देखकर जीवन का भविष्य बताना इनका मुख्य पेशा है |

,….सुनीलकबीर ……
स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार…….आभार विश्वनाथ मुखर्जी

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