Tuesday, May 14, 2024
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कभी- कभी अति उत्साह में क्या सेल्फ गोल कर जाते हैं राहुल गांधी, उन्हें यह सीखना होगा कि साथी दलों को कैसे साथ लेकर चला जाता है,राहुल गांधी की टिप्पणी से अबकी बार शिवसेना उद्धव गुट को असहज होना पड़ा।

महाराष्ट्र में इस समय कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा चल रही है और अच्छी खासी चल रही थी और उनकी यात्रा में आदित्य ठाकरे भी बड़े जोश-खरोस से शामिल भी हुए उसी के दूसरे दिन प्रेस कांफ़्रेंस करते हुए सावरकर के बारे में टिप्पणी करते हुए कहा कि उन्होंने अंग्रेजी सरकार से माफी मांगते हुए उनसे उन्हें जेल से छोड़ने की गुहार लगाई थी और उनका वह पत्र भी दिखाया जो सावरकर ने अंग्रेजी सरकार को लिखा था। बस भाजपा ने इसे सावरकर का अपमान बताते हुए उनसे माफी की मांग कर दी और एक विधायक ने महाराष्ट्र में उनकी यात्रा पर रोक लगाने की मांग की तो किसी ने एफ आईआर दर्ज कराया। सबसे बड़ी बात कांग्रेस वहाँ महाअघाड़ी गठबंधन का हिस्सा है इससे शिवसेना उद्धव गुट को असहज होना पड़ा और सफाई भी देने की नौबत आ गई। स़वाल यह है कि वर्तमान परिवेश में सावरकर के बारे में बात करने का क्या औचित्य है वैसे ही भाजपा सरकार के खिलाफ बहुत सारे सामयिक मुद्दे हैं जो जिनको लेकर जनता परेशान है। ऐसे अप्रासंगिक मुद्दे उठाने का क्या मतलब है समझ नहीं आया। इसी प्रकार बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव में एक तो बमुश्किल दो या तीन रैलियां किए और जहाँ उनके सहयोगी राजद के तेजस्वी यादव लगातार महंगाई और बेरोजगारी पर भाजपा और नितिश कुमार की सरकार पर हमलावर रहे, वहीं राहुल गांधी चीन और डोकलाम की बात करते रहे। स्थानीय मुद्दों पर बहुत थोड़ा बोला। जो भाजपा चाहती है और जिस विषय पर भाजपा विपक्ष को ले जाना चाहती है वहाँ राहुल गांधी उस विषय पर अवश्य बोलते हैं इसी तरह उन्होंने हिंदू और हिंदुत्व की व्याख्या करनी शुरू कर दी थी। राहुल गांधी को समझना होगा कि जनता उन मुद्दों को सुनना चाहती है जिनको लेकर वह परेशान हैं और वह स्थानीय मुद्दे अलग- अलग क्षेत्रों में अलग होते हैं मात्र महंगाई, बेरोजगारी भ्रष्टाचार को छोड़, रोजी-रोटी,कपडा ,मकान, स्वास्थ्य, चिकित्सा, बिजली, पानी ,किसानों के और लड़कियों की स्थिति और उत्पीड़न से सुरक्षा। ये सभी ऐसे मुद्दे हैं जो हर जगह हैं चाहे वह भारत का कोई भी कोना क्यूँ न हो, तो ऐसे तमाम सम-सामयिक विषयों पर सरकार की नाकामीयों पर हमला बोला जा सकता है आज से 30साल,40 साल, सौ साल पहले की बात करेंगे, कोई क्यों सुनेगा। तत्कालीन परिस्थितियों में उस समय के लोगों को जो सही लगा होगा, किए होंगे अब वह सब अतीत की बातें करने और सुनने का क्या मतलब। यहीं पर राहुल गांधी और हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी में अंतर है वह जहाँ की जैसी परिस्थिति और जनता की समस्याओं को समझ बूझ पूरी तैयारी के साथ अपने भाषणों को दिशा देते हैं और राहुल गांधी को इसे सीखना होगा अन्यथा क ई दल और उनके नेता उनकी जगह लेने को आतुर हैं। News 51.in

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