Tuesday, May 14, 2024
होमपूर्वांचल समाचारआज़मगढ़सिक्ख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह की कहानी, 10 साल की...

सिक्ख साम्राज्य के संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह की कहानी, 10 साल की उम्र में लडी़ पहली लडा़ई, 20 साल की उम्र में बने महाराजा, एक महान मानवतावादी थे, सभी धर्मो का समान आदर करते थे

इतिहासकार फकीर सैयद एजाजुद्दीन ने 2016 में लंदन में आयोजित एक कार्यक्रम में यह बताया था कि महाराजा रणजीत सिंह एक महान मानवता वादी थे। उन्होने अपने शासनकाल में सभी धर्मो का सम्मान किया था यहांतक कि गुरूद्वारों से ज्यादा मंदिर , मस्जिद बनवाए थे 13 नवम्बर 1780 का जन्म गुजरांवाला में रणजीत सिंह का जन्म हुआ था जो अब पाकिस्तान में है बचपन में ही चेचक से उनकी एक आंख चली ग ई थी उस समय पंजाब में सरदारों का बोलबाला था जो पूरे पंजाब में क ई हिस्सों में बंटे हुए थे और अलग – अलग छोटे- छोटे इलाकों के सरदार बने हुए थे और सदैव आपस में लडा़ करते थे ।1799 में लाहौर पर कब्जा करने के पश्चात उन्होने सरदोरों के क्षेत्रों को अपने बाहुबल से जीतते हुए सबसे बडे़ सरदार बन गये । बाद में एकीकृत सिख साम्राज्य की स्थापना की और उन्हे “शेरे पंजाब” की उपाधि दी ग ई।क्योंकि उन्होने अफगानी आक्रमण कारियों को लगातार परास्त करते हुए लाहौर पर आक्रमण करने से रोक दिया था। उनकी 20 रानियां थी और 8 पुत्र थे लेकिन उन्होने खड़ग सिंह और दिलीप सिंह को ही अपना जैविक पुत्र माना था । उनके सेनापति हरिसिंह नलवा ने खैबर दर्रे के मुहाने पर जमरूद का किला बनवाया था बाद में विदेशी आक्रमण इसी किले के रास्ते भारत में घुसने का मार्ग बना था । महाराजा रणजीत सिंह अपने समय में भारत केअकेले स्वतंत्र शासक थे जो अजेय थे बाकी सभी शासक इस्ट इंडिया कम्पनी के किसी न किसी तरह अधीन हो गये थे । 27 जून 1839 को उनकी मृत्यु हो गयी अपनी मृत्यु के अंतिम समय तक उन्होने लाहौर को ही अपनी राजधानी बनाए रखा ।रणजीत सिंह ने अपने समय में ऐशिया की सबसे बडी़ अपनी सेना बनायी थी जिसमें पारंम्परिक तरीके के खालसा सेना की मजबूती और आधुनिक विदेशी तरीके के हथियारों और उनके प्रशिक्षण के लिए यूरोपीय खासकर फ्रांसिसी जनरल जीन फ्रैंक्विस ऐलार्ड को हायर किया था।पंजाब विश्वविद्धालय की इतिहास की प्रोफेसर इंदु बग्गा के अनुसार उनकी सेना इस्ट इंडिया कम्पनी की सेना के बराबर बडी़ और शक्तिशाली थी ।उनका साम्राज्य पेशावर से लद्दाख मुल्तान और काबुल का भी कुछ हिस्सा था ।रणजीत सिंह के जिंदा रहने तक अंग्रेजों ने उनके साम्राज्य की तरफ देखा तक नही उनकी मृत्यु के बाद भारत में हुई लडा़इयों में अंग्रेजों को एंग्लो- सिक्खों के युद्धों में एलियानवाला के दूसरे युद्ध में भारत में जितने युद्ध हुए सबसे ज्यादा और भयंकर नुक्सान अंग्रेजों का यहीं हुआ था ।रणजीत सिंह के शासनकाल में पंजाब छह नदियों वाली थी छठवीं नदी सिंधु नदी थी ।उनके शासन काल में उनके दरबार में हिंदू और मुसलमान बडे़-बडे़ पदों पर आसीन थे । उ न्होने अमृतसर के हरमिंदर साहिब को सोने से मढवा कर उसको स्वर्ण मंदिर बना दिया। मंदिर के गर्भगृह के ठीक सामने दरवाजे पट्टिका लगी है जिसपर लिखा है कि महाराज ने 1830 में 10 वर्षों तक कैसे हरमिंदर साहब की सेवा की है उन्हे महाराष्ट्र के नांदेण में गुरू गोविंद सिंह के अंतिम विश्राम स्थल के हूजूर साहब गुरूद्वारे के वित्तपोषण का श्रेय भी दिया जाता है । अफगान सम्राट जमान शाह दुर्रानी के आक्रमण को उन्होने मात्र 17 वर्ष की उम्र में विफल कर दिया था इसी अफगानी राजा जमान शाह दुर्रानी ने ही उन्हे कोहनूर हीरा भेंट किया था ।जिसे उन्होने उडी़सा के जगन्नाथ मंदिर को दान।कर दिया था।रणजीत सिंह के सम्मान में भारत की संसद में 2003 में 22 फीट की उनकी कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया गया न।केवल भारत में बल्कि 2016 मेंफ्रांस के सेंट ट्रोपेज नामक शहर में भी उनकी कांस्य की प्रतिमा लगाई गयी ।फ्रांस से उनके।सैन्य रिलेशन जो थे ।सिक्खों को उनपर गर्व है। सम्पादकीय- News51.in

RELATED ARTICLES
- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments