Sunday, December 22, 2024
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सूफी-अम्बा प्रसाद -मृत्यु इरान में हुई और उनकी कब्र भी वहीं है

सूफी अम्बा प्रसाद

यह बात एकदम सच है कि 1857 के बाद के काल में खड़े होते रहे राष्ट्रीय आन्दोलनों व संघर्षो में 1857 के स्वतंत्रता युद्ध से उपजी राष्ट्रीय भावना ने एक आधार व प्रेरणा का काम किया | खासकर उस युद्ध में हिनुस्तानियो की हार के बाद ब्रिटिश शासको द्वारा आम हिन्दुस्तानियों पर किये गये अत्याचार व अनाचार ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध राष्ट्रीय भावनाओं को अंकुरित करने के आधार बने | फिर ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा हिन्दुस्तान का निरंतर चलता लूट , शोषण , दमन के रूप में उसका आधार पहले से ही विद्यमान था | यही कारण था कि 1857 के तुरंत बाद कूका विद्रोह , नील विद्रोह से लेकर बलवन्त फडके के रूप में क्रांतिकारी विद्रोही की छोटी — बड़ी ज्वालाए फूटने लग गयी |
अब देश का उच्च एवं माध्यम वर्गीय बौद्धिक हिस्सा भी राष्ट्रीय भावनाओं के साथ ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरोध की अभिव्यक्तिया करने लग गये थे | सूफी अम्बा प्रसाद भी उनमे से एक थे | सूफी अम्बा प्रसाद के जीवन व कृतित्व का यह लेख भगत सिंह ने ” विद्रोही ” छद्म नाम से 1928 में लिखा था | इस लेख को हमने भगत सिंह एवं साथियो के दस्तावेज नाम की पुस्तक से लिया हुआ है | सूफी अम्बा प्रसाद की मृत्यु ईरान में हुई और वही उनके कब्र बनी हुई है | वहा हर साल मेला लगता था | वर्तमान में इसकी क्या दशा है इसकी कोई सूचना नही मिल पायी है || कयोंकि स्वतंत्रता के लिए अपना तन — मन — धन कुर्बान कर देने वाले राष्ट्रभक्तो की इस देश में घनघोर उपेक्षा की जाती रही है | बहुतेरे नामी गिरामी राष्ट्रभक्तो शहीदों का तो लोग नाम तक नही जानते | इनकी जगह धन — सत्ता , पद — प्रतिष्ठा पर चढ़ रहे ऐसे लोग अब इस राष्ट्र के नायक बनते जा रहे है , जिन्होंने खोया तो कुछ नही है और पाया सब कुछ है | स्वाभाविक बात है कि उन्हें सूफी अम्बा प्रसाद व अन्य राष्ट्रवादी क्रान्तिकारियो को याद करने — कराने की जरूरत भी नही है | इसीलिए उन्हें याद करने कराने का काम देश के जनसाधारण पर आ पडा है कयोंकि उन्हें ही इनके त्याग बलिदान से प्रेरणा लेकर राष्ट्रहित एवं जनहित में नए आन्दोलनों एवं संघर्षो के लिए खड़ा होना है और अपरिहार्य रूप से खड़ा होना है ……………….

आज भारत वर्ष में कितने लोग सूफी अम्बा प्रसाद का नाम जानते है ? कितने उनकी स्मृति में शोकातर होकर आँसू भाते है | कृतघ्न भारत ने कितने ही ऐसे रत्न खो दिए है | वे सच्चे देशभक्त थे | उनके हृदय में देश के लिए दर्द था | वे भारत की प्रतिष्ठा देखना चाहते थे भारत को उन्नति के शिखर पर पहुंचाना चाहते थे , तो भी आज भारत के बहुत कम लोग उनका नाम जानते है | उनकी कदर भी की तो इरान ने आज यहाँ आका सूफी का नाम सर्वप्रिय हो रहा है | सूफी जी का जन्म 1858 में मुरादाबाद में हुआ था | आपका दाहिना हाथ जन्म से ही कटा था | आप हँसी में कहा करते थे — अरे भाई ! हमने सत्तावन में अंग्रेजो के विरुद्ध युद्ध किया | हाथ कट गया | मृत्यु हो गयी | पुनर्जन्म हुआ हाथ कटे का कटा आ गया | आपने मुरादाबाद , बरेली और जालन्धर आदि कई शहरों में शिक्षा पाई | एम् ए पास करने के पश्चात आपने वकालत पास कर ली , परन्तु की नही | आप उर्दू के प्रभावशाली लेखक थे | आप ने यही काम सम्भाला |
सन 1890 में आपने मुरादाबाद से जाम्युल इलुक नामक उर्दू साप्ताहिक पत्र निकाला इसका प्रत्येक शब्द उनकी आंतरिक व्यवस्था का परिचय देता था | वे हास्य रस के प्रसिद्ध लेखक थे , परन्तु इनमे गंभीरता भी कम न थी | वे हिन्दू — मुस्लिम एकता के कट्टर पक्षपाती थे और शासको की कड़ी आलोचना किया करते थे |
सन 1897 में आपको राजद्रोह के अपराध में डेढ़ वर्ष का कारागार मिला …….1899 में छूटकर आये तो यू .पी के कुछ छोटे राज्यों पर अंग्रेज लोग हस्तक्षेप कर रहे थे | सूफी जी ने वहा के अंग्रेजो तथा रेजीडेनटो का खूब भंडा फोड़ किया | आप पर मिथ्या दोषारोपण का अभियोग चलाया गया और सारी जायदाद जब्त कर छ: साल का कारागार दिया गया | जेल में उन्हें अकथनीय कष्ट सहन करने पड़े , परन्तु वे कभी विचलित नही हुए |
सूफी जी जेल में बीमार पड़े | एक गलीज कोठरी में बंद थे | उन्हें औषधि नही दी जाती थी यहाँ तक कि पानी आदि का भी ठीक प्रबंध न था | जेलर आता और हंसता हुआ प्रश्न करता — सूफी , अभी तुम ज़िंदा हो ? खैर ! ज्यो — त्यों कर जेल कटी और 1906 के अंत में आप बाहर आये |
सूफी जी का निजाम हैदराबाद से घनिष्ट सम्बन्ध था | जेल से छूटते ही वह हैदराबाद गये | निजाम ने उनके लिए एक अच्छा — सा मकान बनवाया | मकान बन जाने पर उन्होंने सूफी जी से कहा — आप के लिए मकान तैयार हो गया है | आपने उत्तर दिया — हम भी तैयार हो गये है | आपने वस्त्रादि उठाए और पंजाब के लिए चल दिए | वहा जाकर आप ” हिन्दुस्तान ” अखबार में काम करने लगे | सुनते है वह आपकी चतुरता , वाक्पटुता और समझदारी देखकर सरकार की ओर से 1000 रुपया मासिक जासूस विभाग से पेश किये गये थे , परन्तु आपने उनके उपेक्षा जेल और दरिद्रता को श्रेष्ठ समझा | बाद को ” हिन्दुस्तान ” — सम्पादक से भी आपकी न बनी | आपने वहा से भी त्याग — पत्र दे दिया |
उन्ही दिनों सरदार अजीत सिंह ने भारत माता सोसायटी की नीव डाली और पंजाब के न्यू कालोनी बिल के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ कर दिया | सूफी जी का भी मेल उनसे बनने लगा | उधर वे भी इनकी ओर आकर्षित होने लगे | सन 1906 में पंजाब में फिर धर — पकड शुरू हुई तो सरदार अजीत सिंह के भाई सरदार किशन सिंह और भारत माता सोसायटी के मंत्री मेहता आनन्द किशोर के साथ वे नेपाल चल दिए | वह नेपाल राज्य के गवर्नर श्री
जंगबहादुर जी से आपका परिचय हो गया | वे इनसे बहुत अच्छी तरह पेश आये |

बाद को श्री जंगबहादुर जी सूफी को आश्रय देने के कारण ही पदच्युत कर दिए गये | उनकी संम्पत्ति जब्त कर ली गयी | खैर सूफी जी वहा पकडे गये और लाहौर लाये गये | लाला पिण्डीदास जी के पत्र ” इंडिया ” में प्रकाशित आपके लेखो के सम्बन्ध में ही आप पर अभियोग चलाया गया , परन्तु निर्दोष सिद्ध होने के बाद में आपको छोड़ दिया गया |
तत्पश्चात सरदार अजीत सिंह भी छूटकर आ गये | और सन 1909 में भारत माता बुक सोसायटी की नीव डाली गयी | इसका अधिकतर कार्य सूफी जी किया करते थे | आपने बागी मसीह या विद्रोही मसीह नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई जो बाद में जब्त कर ली गयी | इसी वर्ष लोकमान्य तिलक पर अभियोग चलाया गया और उन्हें भी 6 वर्ष का कारावास मिला | तब देशभक्त — मंडल के सभी सदस्य साधू बनकर पर्वतों की ओर यात्रा करने निकल पड़े | पर्वतों के उपर जा रहे थे | एक भक्त भी साथ आया | साधू बैठे तो उस भक्त ने सूफी जी के चरणों पर सीस नमस्कार किया | बड़ा सभ्य था | खूब सूट बूट पहने था | सूफी जी के चरणों पर शीश रखा और पूछने लगा — बाबा जी आप कहा रहते है ?
सूफी जी ने कठोर शब्दों में उत्तर दिया — रहते है तुम्हारे सर में !

साधू जी , आप नाराज हो गये ?

  • अरे बेवकूफ ! तूने मुझे क्यों नमस्कार किया ! इतने और साधू भी थे , इनको प्रणाम क्यों न किया ?
    मैं आपको साधू समझा था |
    अच्छा खैर जाओ , खाने — पीने की वस्तुए लाओ | वह कुछ देर बाद अच्छे — अच्छे खाद्य प्रदार्थ लेकर आया | खा पीकर सूफी जी ने उसे फिर बुलाया और कहने लगे — क्यों बे हमारा शीघ्र पीछा छोड़ेगा या नही ?
    भला मैं आपसे क्या कहता हूँ जी ?
    चालाकी को छोड़ | आया है जासूसी करने ! जा अपने बाप से कह देना कि सूफी पहाड़ में गदर करने जा रहे है | वह चरणों पर गिर पड़ा — हुजूर पेट की खातिर सब कुछ करना पड़ता है |

आपने सन 1909 में ‘ पेशवा ” अखबार निकाला | उन्ही दिनों बंगाल में क्रांतिकारी आन्दोलन ने जोर पकड़ा | सरकार को चिंता हुई कि कही यह पंजाब को भी जला न डाले | अस्तु दमन — चक्र आरम्भ हुआ | तब सूफी जी , सरदार अजीत सिंह और जिया — उल — हक ईरान चले गये | वह पहुंचकर जिया – उल – हक की नियत बदल गयी | उसने चाहा , इन्हें पकडवा दू तो इनाम भी मिलेगा | और सजा भी न होगी | परन्तु सूफी जी ताड़ गये | उन्होंने आगे भेज दिया ( फलस्वरूप वह ) स्वंय ही पकड़ा गया और ये दोनों बच निकले | इरान में कैसे रहे , क्या हुआ , यह बाते तो किसी अवसर पर खुलेगी परन्तु जो कुछ सुनने में आया , उसी का उल्लेख इस स्थान पर किया जाता है | ईरान में अंग्रेजो ने उनकी बहुत खोज की और उन्हें कई प्रकार के कष्ट सहन करने पड़े | कहा जाता है कि वे एक स्थान पर घेर लिए गये | वहा से निकलना असम्भव — सा हो गया | वहा व्यापारियों का एक काफिला ठहरा हुआ था | ऊँटो पर बहुत — से बंदूक लादे थे | आगे वस्त्र आदि भरे थे | एक ऊंट के दोनों संदूको में सूफी जी तथा अजीत सिंह को बंद कर दिया गया और वहा से बचाकर निकाला गया | फिर किसी अमीर के घर ठहर | पता चल गया और फिर वह घेर लिए गये | उसी समय उन दोनों को बुर्का पहना जनाने में बिठा दिया गया | सबकी तलाशी ली गयी और अन्त में स्त्रियों की तलाशी ली जाने लगी | एक दो स्त्रियों के बुर्के उठाए भी गये परन्तु मुसलमान लोग लड़ने — मरने को तैयार हो गये और फिर अन्य किसी स्त्री का बुर्का नही उठाने दिया गया | इस तरह वे दोनों वहा से भी बचे |

उन्होंने वहा से ” आबे हयात ” नामक पत्र निकाला और राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लगे | सरदार साहिब के टर्की चले जाने पर वहा का
सारा कार्य इन्ही के सर पर आ पडा और फिर ये वहा आकर सूफी के नाम से प्रसिद्द हुए | सन 1915 में जिस समय ईरान में अंग्रेजो ने पूर्ण प्रभुत्व जमाना चाहा तो फिर कुछ उथल — पुथल मची थी | शिराज पर घेरा डाला गया | उस समय सूफी जी ने बाए हाथ से रिवाल्वर चलाकर मुकाबला किया था , परन्तु अंत में आप
अंग्रेजो के हाथ आ गये | उनका कोर्ट मार्शल किया गया | फैसला हुआ कि कल गोली से उड़ा दिए जायेंगे | सूफी कोठरी में बंद थे | प्रात: समय देखा तो समाधि की अवस्था में थे | उनके प्राण पखेरू उड़ चुके थे | उनके जनाजे के साथ असंख्य ईरानी गये और उन्होंने बहुत शोक मनाया | कई दिन तक नगर में उदासी छाई रही | सूफी जी की कब्र बनाई गयी | अभी तक हर वर्ष उनकी कब्र पर उत्सव मनाया जाता है | लोग उनका नाम सुनते ही श्रद्धा से सर झुका लेते है |
वे पैर से भी लेखनी पकड़कर अच्छी तरह लिख सकते थे | एक दिन एक महाशय कह रहे थे कि मुझे उन्होंने पैर से ही लिखकर नुस्खा दिया था |
एक और कहानी
मित्रो ने सुनाई थी | पता नही कहा तक सच है | परन्तु बहुत संभव है वह सच हो | कहते है जब भोपाल या किसी स्टेट में रेजिडेंट कुछ गड़बड़ कर रहे थे और उसके हड़प करने की चिंता में थे तो वहा का भेद प्रकाशित करने के लिए अमृत बाजार पत्रिका की ओर से सूफी जी वह भेजे गये थे | यह बात 1890 के लगभग की है |
एक पागल — सा मनुष्य रेजीडेनट के पैर के पास नौकरी की खोज में आया अंत में केवल भोजन पर ही रख लिया गया | वह पागल बर्तन साफ़ करता तो , मिटटी में लथपथ हो जाता | मुँह पर मिटटी पोत लेता | वह सौदा खरीदने में बड़ा चतुर था , अस्तु चीजे खरीदने वही भेजा जाता था | उधर अमृत बाजार पत्रिका में रेजिडेंट के विरुद्ध धडाधड लेख निकलने लगे | अंत में इतना बदनाम हुआ कि पद्चुत कर दिया गया | जिस समय वह स्टेट से बाहर पहुंच गया तो एक जक्सन पर एक काला — सा आदमी हैट लगाये पतलून — बूट पहने उसकी ओर आया |
उसे देखकर रेजिडेंट चकित — सा रह गया | ये तो वही है जो मेरे बर्तन साफ़ किया करता था |
आज पागल नही | उसने आते ही अंग्रेजी में बातचीत शुरू की
उसे देखकर रेजिडेंट कापने लगा | आखिर उसने कहा — तुम्हे इनाम तो दिया जा चुका है , अब तुम मेरे पास क्यों आये हो ?
आपने कहा था — जो आदमी उस गुप्तचर को जिसने कि आपका भेद खोला है पकड़वाये तो आप कुछ इनाम देंगे |
हां कहा था | क्या तुमने उसे पकड़ा ? हां , हां … इनाम दीजिये | …….
वह मैं स्वंय हूँ |
वह थर थर कापने लगा | बोला — यदि राज्य के अन्दर ही मुझे तेरा पता चल जाता तो तुझे बोटी — बोटी उडवा देता | खैर उसने उन्हें एक सोने की घड़ी दी और कहा — यदि तुम स्वीकार करो तो जासूस विभाग से 1000 रूपये मासिक वेतन दिला सकता हूँ | परन्तु सूफी जी ने कहा __ अगर वेतन ही लेना होता तो आपके बर्तन क्यों साफ़ करता ?
आज सूफी जी इस देश में नही है | पर ऐसे देशभक्त का स्मरण ही स्फूर्तिदायक होता है |

-सुनील दत्ता स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी छायाकार

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