Friday, October 18, 2024
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इंदिरा नेहरू को, देहरादून जेल 2-5-1933,एक पिता का अपनी बेटी के नाम पत्र

‘इंदिरा नेहरु को ‘

देहरादून – जेल
2-5-1933

एक पिता का अपनी बेटी के नाम पत्र
प्यारी इंदु
उस दिन जब मैंने तुम्हे देखा तो तुम सेहत की मूरत – जैसी नही लग थी ! मेरा ख्याल है कि तुम्हे दर्द और बुखार से छुटकारा मिला गया होगा | बेशक तुम्हे सर्दी लग गयी होगी | यहाँ का मौसम इस तरह बदलता रहता है कि आदमी को होशियार रहना चाहिए | अगर तुम्हारी गर्दन में दर्द अब भी है तो मम्मी को मैंने जो रोगन बादाम दिया था , उसकी मालिश कर लेना |
मुझे ख़ुशी है कि तुम अपने साथ पढनेवाली पुरानी फ्रांसीसी सहेली से खतोकिताबत कर रही हो | उसे तुम फ्रांसीसी में ही क्यो नही लिखती और उससे कहो कि वह भी ऐसा ही किया करे | क्या वह अब बेक्स में है ? और बेक्स का क्या हाल है ?
यहाँ बहुत ज्यादा मत पढो – टहलो और दौड़ो और आमतौर से बेफिक्री की जिन्दगी बिताओ | बेशक बेफिक्री की ज्यादती से बोरियत
होने का डर है और दिमाग का तेल – पानी से अच्छी तरह दुरुस्त रखना चाहिए और उससे काम लेते रहना चाहिए | लेकिन छुट्टिया सख्त दिमागी काम करने के लिए नही होती | मैंने अक्सर यह भी महसूस किया है कि तुम किसी कदर तेज रफ़्तार से पढती हो ऐसा करने पर यह अंदेशा रहता है कि किताब का काफी हिस्सा छुट जाए | बेशक कुछ हल्की किताबे तेजी से पढने की होती है क्योकी उनमे कुछ रहता नही | लेकिन एक उपयोगी किताब कुछ ज्यादा वक्त और तवज्जह की हकदार है | उस मेहनत का ख्याल करो जो लेखक ने इसके लिए की होगी और उस सारे सोच – विचार का भी , जो उसने अपनी लिखाई के पीछे लगाया होगा | मगर जब हम बहुत तेजी से पन्ने पलट डालते है तो उसका असली मतलब खो बैठते है और हमने जो पढ़ा उसे काफी जल्दी भूल जाते है |
एक बहुत अच्छी , डालने लायक आदत यह है कि एक नोटबुक पास में रखो और जो किताब हम पढ़े उसमे जो भी चीज हमे पसंद आ जाए या खास तौर से असर करे उसे नोट कर लिया जाए | हमारे ये नोट बहुत कुछ याद रखने में हमे मदद देते है और हमेशा ही दिलचस्पी के साथ उन्हें फिर से पढ़ा जा सकता है | जेल में मैंने यह आदत खासतौर से डाली है और अब मेरी सत्रहवी नोट बुक चल रही है |
जो भी हो मुझे उम्मीद है कि मैंने तुम्हारे लिए खतो की जो सीरिज लिखी है उसे तुम जरा धीरे से पढ़ोगी और एक बार में थोडा पढ़ोगी | इसमें जल्दीबाजी मत करना , वरना वो तुम्हे बहुत उबा देंगे | वे बहुत हल्के से पढने की चीज नही है |
मैं समझता हूँ कि तुम्हारे पास पढने के लिए काफी किताबे है | अगर न हो तो मुझे बता भर देना और मैं या तो सुझाव दूंगा या कुछ किताबे भेज दूंगा |
पिछली मुलाक़ात में मैं ही ज्यादा बोलता रहा | यह ज्यादती थी न ? वह ऐसा ही था जैसे नल को खुला छोड़ दिया गया हो | अगली बार तुम्हे बोलना होगा और सुनना मेरा काम रहेगा और अगर मैं ज्यादा बोलने की कोशिश करूँ तो मुझे रोक देना | दो हफ्ते मैं बोतलबंद जैसी हालत में रहता हूँ और फिर जब मौका मिलता है तो जोरो से खुल; जाने का मेरा रुझान होता है | आजकल देहरादून में चिडियों की बहुतायत है | कितना अच्छा होता
अगर मैं उन सबके नाम जनता | मेरा ख्याल है कि उनमे से बहुत सी तुम्हारे बागीचे में भी है | बेशक कोयल तो है ही | और वह ‘ब्रेन – फीवर ‘ चिड़िया , मैं समझता हूँ कि उसका यही नाम है | मुझे ठीक – ठीक नही मालुम कि उसे यह अजीब नाम क्यो दिया गया है सिवा इसके की इसकी लगातार चीख से लोगो को दिमागी बुखार आ जाता हो ! सचमुच कभी – कभी वह बड़ी मुसीबत में डाल देती है | उसके चार सुर बड़े दिलकश है , लेकिन उन्हें लगातार दुहराना – रात – दिन बारिश – हो या धुप – किसी अच्छी बात की भी हद होती है | घंटो यह सिलसिला चलता रहता है | मैं उसका हिन्दुस्तानी नाम नही जानता , लेकिन कई तरह से उसका हवाला दिया जाता है | यहाँ के लोग
कहते है कि उसके चार सुरों का मतलब है ; ‘मैं सोता था ” — उपर पहाडियों पर लोग कहते है की चिड़िया गाती है ”काखल पाको ”- काखल खेत में पकने वाली कोई चीज है | इसके पकने का यही वक्त है और इसलिए चिड़िया इसका एलान करती है | चार सुरों से तुम चाहे जो मतलब लगा सकती हो ”उठो – जागो विग्रह | बहुत शोर मचाती है – इसकी आवाज बहुत दूर तक जाती है | बापू ने हम पर एक और कहर ढाया है और मुझे पता नही की क्या होने जा रहा है | फूफी और बच्चो की कोई खबर मुझे नही मिली | उनको आज मसूरी में होना चाहिए |

‘प्रस्तुति सुनील कबीर स्वतंत्र पत्रकार

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