Tuesday, May 14, 2024
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कांईंयां मुंशी-पुण्य तिथी पर सादर नमन, फिल्मी दुनियां का जादुई किरदार -पं0 कन्हैया लाल चतुर्वेदी

काईया मुंशी

पुण्यतिथि पर सादर नमन ।

फिल्मी दुनिया का जादुई किरदार

पं. कन्हैयालाल चतुर्वेदी का जन्म बनारस में हुआ व इनके पिता का नाम भैरोनाथ चतुर्वेदी था । आपकी शिक्षा दीक्षा ज्यादा नहीं हुई । स्व कन्हैयालाल का सफर 1939 में ‘एक ही रास्ता’ फ़िल्म से शुरू हुआ । कन्हैया लाल जी ने अपने ज़माने में सौ से ज्यादा फिल्में व नाटक किये और साथ ही साथ कुछ नाटक व कहानियाँ भी लिखी ।
इनके पिता की स्वयं सनातन नाटक मंडली थी । स्व कन्हैयालाल जी की पूरी शिक्षा उसी मंडली में हुई ।
पिता के निधन के बाद बंबई चले गये । वहाँ पर इन्होंने अपना नया नाटक पंद्रह अगस्त के बाद लिखा व उसका मंचन भी किया, लेकिन अग्रेजी सरकार ने उसे काट छांट कर बहुत छोटा कर दिया । कुछ दिन कलकत्ता में रहकर आग़ा हश्र काश्मीरी की ड्रामा कम्पनी में शामिल हो गए और आग़ा हश्र के मशहूर नाटक ‘आंख का नशा’ में तबलची की भूमिका निभाई, लेकिन कलकत्ता में अधिक दिन तक उनका दिल नहीं लगा और वह इलाहाबाद जाकर रामलीला मण्डली में शामिल हो गए । बम्बई से निर्माता सेठ चमन लाल किसी काम से इलाहाबाद आए हुए थे । उन्होंने इस ड्रामे को देखा और उनकी तजुर्बेकार नज़रों ने कन्हैयालाल के कला कौशल को पहचान लिया और अपनी फ़िल्म ‘ग्रामोफ़ोन सिंगर’ में उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका दे दी । इस फ़िल्म में सुरेन्द्र और बिब्बो मुख्य भूमिकाओं में थे और यह फिल्म 1938 में रिलीज़ भी हुई । सन 1940 में महबूब खा की फिल्म “औरत” में कन्हैयालाल ने चतुर साहूकार की भूमिका निभाई थी चूँकि “औरत” की कामयाबी के बाद भी महबूब खा उस फिल्म से काफी संतुष्ट नही थे । “मदर इंडिया” में उन्होंने “औरत” के सारे कलाकार बदल दिए लेकीन साहूकार के किरदार के लिए कन्हैयालाल को बदल पाना उनके लिए नुमकिन नही हो सका ।
फिल्म “मदर इंडिया” में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह थे नरगिस और महबूब खान, लेकिन कन्हैयालाल के बिना क्या यह सम्भव नहीं था ? अभिनेता स्व सुनील दत्त ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था “मै तो अक्सर कैमरे के पीछे खड़े होकर उनकी परफॉरमेंस को देखता था । मुझे कभी ऐसा नही लगता कि वो अभिनय कर रहे है, बल्कि वह बहुत ही शांत स्वभाव के थे । उनको ये ही नहीं मालूम होता था कि वे कैमरे के सामने क्या कर रहे है । फिल्म “मदर इंडिया” के बाद भी तमाम ऐसी फिल्मे है जिनमे कन्हैयालाल के अभिनय का जादू देखने को आज भी मिलता है । जैसे “गंगा जमना” , “उपकार” , “दुश्मन” , “अपना देश” , “गोपी”,“धरती कहे पुकार” और “हम पांच” आदि.“गंगा जमना” आदि । दिलीप कुमार ने उनके बारे में कहा था कि “मै उनकी प्रस्तुति से बहुत घबराता था । संवाद अदायगी के दौरान वे जिस तरह से सामने वाले कलाकार को रिएक्शन देते थे उसका सामना करना बहुत मुश्किल होता था “. ऐसे ही राजेश खन्ना ने जब “दुश्मन” में उनके साथ काम किया तो उन्हें भी कहना पड़ा “वो तो बहुत नेचुरल एक्टिंग करते थे”.“दुश्मन” में उनका एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ “कर भला तो हो भला” । फिल्म ‘बहन’ (1941) में उनके लिए चार सीन तय थे, लेकिन अंत हुआ चौदह सीन पर ऐसे ही फिल्म गृहस्थी (1963 ) में वो स्टेशन मास्टर रामस्वरूप हैं.एक दिन धनी सेठ अशोक कुमार उनके घर आ गए.वो भोजन बना रहे थे.हैरान हो गए,आज फ्लैग स्टेशन पर मेल ट्रेन कैसे रुक गयी? ‘ऊंचे लोग’ बहुत गंभीर थी.ऑडियंस को राहत देने गुणीचंद बने कन्हैयालाल चले आते हैं । आपकी आखिरी फ़िल्म ‘हथकड़ी’ थी जो सन् 1982 में आई थी । बैसे अंतिम दिनों में उन्होंने फिल्मों से पूरी तरह संन्यास ले लिया था । घर में ही रहते थे किसी से भी मिलनेजुलते नहीं थे । उनकी दूसरी पत्नी के निधन के बाद वह दिमागी तौर पर बहुत टूट गये । जिसके कारण वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठे । आखिर में 14अगस्त 1982 को वह इस दुनिया से सदा के लिए चले गये ।

सुनील दत्ता कबीर।
स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार

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