आज सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच सीटों पर बंटवारा और किन -किन सीटों पर किसका प्रत्याशी चुनाव लडेगा इन सभी बातों पर सहमति के बाद संयुक्त प्रेस कांफरेंस में सपा 37और बसपा के 38 प्रत्याशी चुनाव लडेंगे। दो कांग्रेस की परम्परागत सीट पर रायबरेली और अमेठी कांग्रेस के लिए छोड़ी गई तो 3 सीट आर एलडी के लिए छोड़ी गई है। आजमगढ सीट पर सपा और लालगंज सुरक्षित सीट से बसपा चुनाव लडेगी। वाराणसी की सीट पर सपा लडेगी।
बंटवारे की सीटों पर ध्यान से देखें तो एक बात तय है कि बड़े शहरों और शहरी इलाकों की ज्यादा सीटें सपा के खाते में और ग्रामीण इलाकों की ज्यादा सीटें मायावती की पार्टी के हिस्से में आई है।
अब इस गठबंधन को देखने से स्पष्ट है कि मायावती जी का ही बोलबाला इस गठबंधन में है। मेरे अपने आकलन से चार बातें इस गठबंधन से उभर कर सामने आई है।
1- इस गठबंधन से सबसे बड़ा लाभ सपा को मिलना तय है क्योंकि जो बसपा 15-20सीट कभी लोकसभा की नहीं पाती अब 27 सीट तक जीत सकती है और उनकी पार्टी का संगठन भी कमजोर शायद ही हो।
2- तात्कालिक लोकसभा सीटों का सपा को भी होगा और उसके सीटों की संख्या भी 20-25 तक जा सकती है। किंतु यह तय है कि उनके नेता और कार्यकर्ता, जहाँ सपा का प्रत्याशी नहीं लडेगा वहाँ बसपा के संगठन और नेता की भाँति चुप शायद ही होकर बैठेगा ।इतना तय है कि सपा संगठन में बिखराव होना है अब देखना दिलचस्प ये है कि बिखराव किस सीमा तक होगा।
मुझे याद है जब राजीव गांधी ने पहली बार सपा से गठबंधन किया था तो कांग्रेस के कयी बड़े नेताओं ने विरोध किया था लेकिन राजीव गांधी नहीं माने थे। नतीजा ये हुआ जहाँ कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं वहाँ का कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता थक हराकर घर बैठ गए ।और धीरे -धीरे उसके बड़े -बड़े नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पार्टी छोड़कर दूसरा ठिकाना ढूंढ लिया। कहीं वही कहानी फिर न हो इसकी गारंटी नहीं है। और एक बार जिस पार्टी का संगठन कमजोर हो गया समझिये जाने कब उठ पाएंगे कोई नहीं जानता।
3- इस गठबंधन ने भाजपा में तो भूचाल मचा कर रख दिया है। यकीन जानिए मेरे सभी दल के कयी बड़े आजमगढ के नेताओं से अच्छा संबंध है। इनमें भाजपा नेता औपचारिक बातचीत में इस गठबंधन से काफी परेशानी महसूस कर रहे हैं। और सबसे ज्यादा खुशी बसपा नेताओं में है। सपा के लोग खुश तो हैं किंतु उन्हें यह भी चिंता है कि कहीं हमारी सीट बसपा को न मिल जाय। आजमगढ की सीट सपा को मिली है।2014 के लोकसभा चुनाव जैसी मोदी जी की अब लोकप्रियता भी नहीं है सपा बसपा मिलकर तब चुनाव भी नहीं लडे थे और तब कांग्रेस की अच्छी खाशी भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण बदनामी भी हुई थी भाजपा की सीटें पिछली बार 73 थीं इस गठबंधन के बाद15-20 से उपर उत्तर प्रदेश में सीटें मिल पाएं इसकी सम्भावना कम ही है भाजपा को इस गठबंधन से यही चिंता खाए जा रही है।
4- सपा बसपा गठबंधन ने कांग्रेस को अपने गठबंधन में शामिल न कर के जाने अनजाने कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में जिंदा करने का एक सुनहरा मौका दे दिया है। कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जो एक गलती राजीव गांधी ने किया था उसका परिमार्जन करने का मौका गठबंधन में कांग्रेस को शामिल न करने से अंजाने में ही मिल गया है। दूसरे सभी सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने से कांग्रेस को एक साथ कयी फायदे हो सकते हैं एक तो सीटों की संख्या भले ही बहुत ज्यादा न बढे तो भी एक प्रियंका गांधी के आने से कयी साल बाद कांग्रेस के कार्य कर्ताओं में काफी जोश और ललक बढी है। दूसरे 2014 की तुलना में वोट परशेंटेज 17-20 तक जा सकता है। सीटें भी 7-10 तक जा सकती हैं। दूसरे पार्टी को इनसब का फायदा विधानसभा चुनाव में भी मिलना तय है।
हालांकि यह सब बातें मात्र एक आंकलन है किंतु उत्तर प्रदेश में जहाँ चुनाव जाति धर्म के नाम पर लडे जाते हैं ऐसी स्थिति में यह गठबंधन उत्तर प्रदेश में निर्णायक स्थिति में है।
— सम्पादकीय —
बसपा -सपा गठबंधन हुआ फाईनल, बसपा 38,सपा 37 सीटों पर लडेगे लोकसभा चुनाव
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