Saturday, November 9, 2024
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एक ऐसा शासक -जिसके सामने अंग्रेजों ने हर बार टेका घुटना -उस महान योद्घा का नाम था -यशवंत राव होल्कर

एक ऐसा शासक —–जिसके सामने अंग्रेजो ने हर बार टेका घुटना

ऐसा भारतीय शासक जिसने अकेले दम पर अंग्रेजो को नाको -चने -चबाने पर मजबूर कर दिया था |इकलौता ऐसा शासक जिसका खौफ अंग्रेजो में साफ़ -साफ़ दिखता था |एकमात्र ऐसा शासक जिसके साथ अंग्रेज हर हाल में बिना शर्त समझौता करने को तैयार थे |एक ऐसा शासक ,जिसे अपनों ने ही बार -बार धोखा दिया ,फिर भी जंग के मैदान में कभी हिम्मत नही हारी |इतना महान था वो भारतीय शासक ,फिर भी इतिहास के पन्नो में वो कही खोया हुआ है |उसके बारे में आज भी बहुत लोगो को जानकारी नही हैं |
उसका नाम आज भी लोगो के लिए अनजान है |उस महान शासक का नाम है यशवंतराव होलकर |यह उस महान वीरयोद्धा का नाम है ,जिसकी तुलना विख्यात इतिहास शास्त्री एन0 एस 0 ने ‘नेपोलियन ‘से की है पश्चिमी मध्य प्रदेश की मालवा रियासत के महाराजा यशवंतराव होलकर का भारत की आजादी के लिए किया गया योगदान महाराणा प्रताप और झांसी की रानी लक्ष्मी बाई से कही कम नही है |यशवंतराव का जन्म 1776 ई0 में हुआ |इनके पिता थे -तुकोजीराव होलकर |,
होलकर साम्राज्य के बढ़ते प्रभाव के कारण ग्वालियर के शासक दौलतराव सिंधिया ने यशवंतराव के बड़े भाई मल्हारराव को मौत की नीद सुला दिया |इस घटना ने यशवंतराव को पूरी तरह से तोड़ दिया था |उनका अपनों पर से विश्वास उठ गया |इसके बाद उन्होंने खुद को मजबूत करना शुरू कर दिया |ये अपने काम में काफी होशियार और बहादुर थे | इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है की 1802 ई0 में इन्होने पुणे के पेशवा बाजीराव द्दितीय व सिंधिया की मिलजुली सेना को मात दी और इंदौर वापस आ गये |इस दौरान अंग्रेज भारत में तेजी से अपने पाँव पसार रहे थे |यशवंतराव के सामने एक नयी चुनौती सामने आ चूकि थी |भारत को अंग्रेजो के चंगुल से आज़ाद कराना |इसके लिए उन्हें अन्य भारतीय शासको की सहायता की जरूरत थी |वे अंग्रेजो के बढ़ते साम्राज्य को रोक देना चाहते थे |इसके लिए उन्होंने नागपुर के भोसले और ग्वालियर के सिंधिया से एक बार फिर हाथ मिलाया और अंग्रेजो को खड़ेदने की ठानी |लेकिन पुरानी दुश्मनी के कारण भोसले और सिंधिया ने उन्हें फिर धोखा दिया और यशवंतराव एक बार फिर अकेले पड़ गये |उन्होंने अन्य शासको से एक बार फिर एकजुट होकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ने का आग्रह किया ,लेकिन किसी ने उनकी बात नही मानी |इसके बाद उन्होंने अकेले दम पर अंग्रेजो का छठी का दूध याद दिलाने की ठानी |8 जून 1804 ई0 को उन्होंने अंग्रेजो की सेना को धूल चटाई |फिर 8 जुलाई 1804 ई0 में कोटा से उन्होंने अंग्रेजो को खदेड़ दिया |11 सितम्बर 1804 ई0 को अंग्रेज जनरल वेलेसे ने लार्ड ल्युक को लिखा की यदि यशवंतराव पर जल्दी काबू नही पाया गया तो वे अन्य शासको के साथ मिलकर अंग्रेजो को भारत से खदेड़ देंगे |इसी मद्देनजर नवम्बर 1804 ई0 में अंग्रेजो ने दिग पर हमला कर दिया |इस युद्ध में भरतपुर के महाराजा रंजित सिंह के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजो को उनकी नानी याद दिलाई |यही नही इतिहास के मुताबिक़ उन्होंने 300 अंग्रेजो की नाक ही काट डाली थी |
अचानक रंजित सिंह ने भी यशवंतराव का साथ छोड़ दिया और अंग्रेजो से हाथ मिला लिया |इसके बाद सिंधिया ने यशवंतराव की बहादुरी देखते हुए उनसे हाथ मिलाया |अंग्रेजो की चिंता बाद गयी |लार्ड ल्युक ने लिखा की यशवंतराव की सेना अंग्रेजो को मारने में बहुत आनद लेती है |इसके बाद अंग्रेजो ने यह फैसला किया की यशवंतराव के साथ संधि से ही बात संभल सकती है |इसलिए उनके साथ बिना शर्त संधि की जाए |उन्हें जो चाहिए ,दे दिया जाए |जितना साम्राज्य है सब लौटा दिया जाए |इसके वावजूद यशवंतराव ने संधि से इनकार कर दिया |वे सभी शासको को एकजुट करने में जुटे हुए थे |इस मद्देनजर उन्होंने 1805 ई0 में अंग्रेजो के साथ संधि कर ली |अंग्रेजो ने उन्हें स्वतंत्र शासक माना और उनके सारे क्षेत्र लौटा दिए |इसके बाद उन्होंने सिंधिया के साथ मिलकर अंग्रेजो को खदेड़ने की एक कार्ययोजना बनाई |उन्होंने सिंधिया को खत लिखा ,लेकिन सिंधिया दगाबाज निकले और वह खत अंग्रेजो को दिखा दिया |इसके बाद पूरा मामला फिर से बिगड़ गया |यशवंतराव ने हल्ला बोल दिया और अंग्रेजो को अकेले दम पर मात देने की पूरी तैयारी में जुट गये |इसके लिए उन्होंने भानपुर में गोला बारूद का कारखाना खोला |इस बार उन्होंने अंग्रेजो को खदेड़ने की ठान ली थी |इसलिए दिन रात मेहनत करने में जुट गये थे |लगातार मेहनत करने के कारण उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा |लेकिन उन्होंने इस ओर ध्यान नही दिया और 28 अक्तूबर 1806 ई0 में सिर्फ 30 साल की उम्र में वे सदा के लिए मृत्यु के आगोश में सो गये |इस तरह से एक महान शासक का अन्त हो गया एक ऐसे शासक का जिस पर अंग्रेज कभी अधिकार नही जमा सके |
एक ऐसे शासक का जिन्होंने अपनी छोटी उम्र को जंग के मैदान में झोक दिया |यदि भारतीय शासको ने उनका साथ दिया होता तो शायद तस्वीर कुछ और होती ,लेकिन ऐसा हुआ नही और एक महान शासक यशवंतराव होलकर इतिहास के पन्नो में कही खो गया और खो गयी उनकी बहादुरी ,जो आज अनजान बनी हुई है .

—साभार काशी वार्ता..सुनील दत्ता कबीर स्वतंत्र पत्रकार – दस्तावेजी प्रेस छायाकार

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