Thursday, March 27, 2025
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अब विश्व में एकाधिकार की लडा़ई अमेरिका की, रूस नहीं बल्कि चीन के साथ, विश्व के बाजारों पर डिजिटल तकनीक के सहारे इन दोनों दिग्गजों के बीच भीषण जंग छिडी़

अब विश्व में अपनी धाक बनाये रखने की लडा़ई अमेरिका की पूर्व (अविभाजित सोवियत संघ)वर्तमान रूस से नहीं ,बल्कि चीन से होनी शुरू हो गयी है। चीन के बारे में यह बताना जरूरी है कि चीनी सरकार बहुत पहले से दुनियां के हर क्षेत्र में चुपचाप (गोपनीय ढंग से) अपना कार्य करती है और क ई वर्षों तक तो विश्व को पता ही नहीं चलता था कि वह क्या कर रहा है। लेकिन अब वह समय तो नही रहा कि किसी के कार्यों की गोपनियता किसी को पता न चले।अब यह भी सच है कि चीन की शक्ति लगभग अमेरिका के बराबर ही है। इसीलिये दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति पद पर शपथ ग्रहण के बाद से ही अमेरिका एकबार फिर सुपर पावर बनना चाहता है किंतु चीन उसके रास्ते की सबसे बडी़ बाधा बनी हुई है।बीते दिनों अमेरिकी बाजार धराशायी हुए और इसका असर दुनियांभर के शेयर बाजारों पर भी बुरा असर पडा़ , कारण चीनी स्टार्ट अप डीपसीक ने अपने अत्याधुनिक और काफी कम लागत से बने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस डीपसीक वी3 और डीपसीक आर1 के जरिये पूरे वैश्विक विश्व को झकझोर कर रख दिया है इसीलिये अमेरिका ने अमेरिकी दिग्गज टेक कम्पनीयों के बाजार पूंजीकरण में एक ट्रिलियन(लाख करोड़ डालर )तक की गिरावट आई है इसीलिये अमेरिका ने अपनी इस कम्पनी के दबाव में चीन की अत्याधुनिक चिप और ए.आई.क्षेत्र में अपना प्रतिद्वंदी मानकर उसपर तमाम प्रतिबंध लगा दिये हैं उधर डीपसीक बनाने वाली चीनी कम्पनी का दावा है कि उसने अपना यह माडल अमेरिकी कम्पनीयों के मुकाबले 10 गुना कम लागत पर विकसित किया है।जहां अमेरिकी एआई कम्पनीयां अपने चैटबोट को 16000 जीपीयू से युक्त सुपर कम्प्यूटरों पर प्रशिक्षित करती है वहीं चीनी डीपसीक मात्र2000 जीपीयू क्षमता के उपयोग से ही सक्षम एआई टूल तैयार कर दिखाया है और यही अमेरिका की सबसे बडी़ चिंता का और वैश्विक विश्व में प्रतिबंध लगाने का कारण बना है। स्वयंम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इस बात से चिंता जाहिर करते हुए अमेरिका को मुकाबले के लिये तैयारी की बात कही है।चीन पर इस प्रतिबंध की भी अपनी सीमाएं हैं क्योंकि तमाम अमेरिकी कम्पनियां अपने माल का उत्पादन चीनी कम्पनियों से चीन में ही कराती हैं ये चीनी कम्पनियां डीपसीक का उपयोग करने वाली हैं ऐसे मे अमेरिकी कम्पनियां अपने चीनी उत्पादकों से जो भी डाटा, जिसमें डिजाइन और पेटेंट से जुडी़ जानकारियां भी होती हैं वह साझा करना ही पडे़गा और सारा डाटा डीपसीक तक हर हाल में पहुंचेगा ही और यही बातें भारत की उन तमाम कम्पनियों पर भी लागू होनी है जो चीन में उत्पादन कराती है। अंत में एक बात यह कहनी है कि आज के युग में किसी देश को गुलाम तो नहीं बनाया जा सकता है लेकिन डिजिटल गुलामी की तरफ तो बढ ही सकता है । सम्पादकीय-News51.in

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