यूं तो I.N.D.I.A. गठबंधन में शामिल 28 दलों में से4-5 दल ऐसे हैं जो खुद तो कांग्रेस सेबडा़ दल होने के नाते बडा़ दिल दिखाने की बात कह रहे हैं लेकिन खुद जहां ये क्षेत्रीय दल मजबूत हैं, कांग्रेस को सीट शेयरिंग में हिस्सा देना ही नहीं चाहते हैं और तो और जहांतक इनकी कोशिश रहती है कि कांग्रेस अपने जहां मजबूत है ,वहां उसे नुक्सान पहुंचाकर कैसे हराया जाय ,उदाहरण उत्तराखंड के बागेश्वर उपचुनाव में कहा जा सकता है। सपा का वहां कुछ भी नहीं था लेकिन फिर भी उसने प्रत्याशी उतारा जिसे वहां लगभग 2200 वोट मात्र मिले, लेकिन कांग्रेस वहां लगभग 1600 वोटों से हार गयी।यही अखिलेश यादव लगभग एक वर्ष पूर्व कांग्रेस को एक सीट भी देने को तैयार नहीं थी अब भी चार- पांच सीट से ज्यादा देने की सम्भावना कम ही है वह भी मुस्लिम समुदाय की नाराजगी के दबाव में शायद ? इसी तरह केजरीवाल बहुत जल्दबाजी में हैं भाग्य से दिल्ली और भाग्य से ही( पंजाब में कांग्रेस नेताओं की वैमनस्यता और नवजोत सिद्धू के अपनी ही पार्टी के नेताओं के विरूद्ध कीगयी बयानबाजी) पंजाब में सत्ता मिल गयी क्योंकि वहां कोई अन्य दल भाजपा को छोड़ नहीं था । उन्हे लगता है कि सब चीजों को (बिजली, पानी, शिक्षा आदि) माफ कर देने से उन्हे अन्य राज्यों में लाभ मिलेगा, लेकिन सम्भवतः तत्समय उन्हे कांग्रेस की कमजोरी का लाभ मिला था और कांग्रेस से सभी बडे़ नेता पार्टी छोड़ कर जा रहे थे, लेकिन अब बदले हालात में मल्लिकार्जुन खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सभी नाराज नेता न केवल खुले मन से कांग्रेस से जुडे़ हैं बल्कि कांग्रेस काफी मजबूत भी हुई है और यही मजबूती अब इसके घटक दलों में बेचैनी छाई हुई है सम्भवतः महाराष्ट्र और बिहार तथा झारखंड में तो इस गठबंधन में तालमेल आसानी से हो जायेगा क्योंकि बिहार में लालू यादव सुलझे नेता हैं और।कांग्रेस की अहमियत को समझते हैं इसी प्रकार कांग्रेस मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ, राज स्थान ,तेलंगाना, हिमांचल उत्तराखंड, गुजरात, कर्नाटक आदि जहां कांग्रेस भाजपा से सीधी लडा़ई में है, अकेले ही लडे़गी।असल समस्या इस गठबंधन को तालमेल में दिल्ली, पंजाब, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में होनी है। इन जगहों।पर वे दल हैं जो कांग्रेस को दबाने की कोशिश कर कम से कम सीटें देना चाहेंगे । सम्पादकीय-News51.in