नारायण भारती की कलम से_-देशभर के नौजवान” अंग्रेजो
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भारत छोड़ो “के नारे के साथ ही पूरे देश मे देशप्रेम की भावना हिलोरे मारने लगी थी ।वर्ष 1942 मे पूरा देश अंग्रेजो को देश से बाहर करने के लिए आंदोलित था कही रेल की पटरिया उखाडी जा रही थी तो कहीसरकारी संस्थान उनके निशाने पर थे ऐसे मे लालगंज की धरती कैसे अछूती रह सकती थी स्वतन्त्रता आन्दोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली तहसील लालगंज के ऐराकला गांव निवासी थाना तरवा काण्ड के नायक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तेज बहादुर सिंह का नाम आज भी लोग बड़े गर्व और श्रद्धा से लेते है ।
17 अगस्त 1942 को नाग पंचमी के दिन तहसील के ग्राम डुभाव मे बाराह जी के मंदिर पर मेला लगा हुआ था ।कही दंगल तो कही झूले का लोग आनन्द ले रहे थे वही बगल के घर मे नौजवान तेज बहादुर सिंह के नेतृत्व मे बैठक कर रहे थे।देर रात तक चली इस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि कल तरवा थाना फूकना है मीटिंग मेें तेज बहादुर सिंह के अलावा राम हरख सिह,ओहनी,गजराज सिंह, अवनी,चन्द्र दीप सिंह, तरवा आदि मौजूद थे ।
। सवाल था कि कूबा के जागरूक लोगो को इस निर्णय की सूचना कैसे दी जाय ।उदंती नदी बरसात के कारण अपने उफान पर थी ।जिसके दोनो तरफ मीलो तक पानी ही पानी दिखाई पड रहा था ।उपस्थित लोगो ने कहा हमे तैरना नही आता इसपरतेज बहादुर सिंह ने जोश भरते हुए कहा कि जब तुम लोग तैर नही सकते तो थाने पर कब्जा कैसे करोगे फिर तो सेनापति की ललकार पर बहादुर सेनानियो की भुजाए फडक उठीऔर उन्होंने हनुमान और नलनील की तरह काम शुरू कर दिया ।
तेज बहादुर सिंह, गजराज सिंह और कैलाश सिंह रात मे ही दस बजे बरसाती पानी से भरी नदी तैर कर रसूल पुर के जगदीश यादव के यहा पहुंच कर उन्हे साथ लेकर लगभग एक बजे रात को रामनगर के रामानंद सिंह और हिटलर सिंह को जगाया साथ ही आगे सिधौना संदेश देने के बाद रोआपार होते हुए मेहनाजपुर के अनेक लोगो जिनमे ओमदतत मिश्रा, बच्चा बाबू संकठा सिंह, रमाकांत तिवारी, नन्दकिशोर सिंह, कोसडा को सूचित करते हुए तरवा निकल गए वही सब लोग एक स्थान पर इकट्ठा हुए ।गांव के राम अधार सिह के साथ कुछ नौजवानो का दल बावरदी तेज बहादुर सिंह के साथ हो लिए यहदल दिन में दस बजे तरवा स्कूल पहुंचा ।उसके पहले ही बद्री सिंह स्कूली लडको और चन्द्र जीत सिंह एवं सत्यदेव सिंह आदि के साथ ही एक घंटा पहले ही तरवा थाना पहुंच चुके थे ।तेज बहादुर सिंह ने रास्ते मे अपने साथियो को थाने की सरकारी वसतुओ के अतिरिक्त अन्य कोई छोटी चीज भी नष्ट होने से बचाने की ताकीद कर दी थी ।रामानंद सिंह और गजराज सिंह आदि प्रमुख कार्य कर्ता ओ की प्रमुख टोली कुछ ही देर मे घन्टा घड़ियाल बजाते हुए कूबा और चौरी तालूको काजनसमूह एकत्रकरने के लिए विभिन्न गांवो की ओर अलग अलग रवाना हो गई ।निर्णय के अनुसार योजना बद्ध तरीके से चारो ओर से लोगो ने थाने को घेर लिया ।अनेक के हाथो मे मिट्टी का तेल था दरोगा संतबकश सिंह अपने हमराहियो के साथ राइफलो को तान कर खड़े तो हो गये लेकिन भीड़ देखकर हिम्मत नही पडी और सरेंडर हो गये। दरोगा ने पूछा आपलोग क्या चाहते है तो उन्होंने कहा अपने असलहे दे दो फिर हम थाने मे आग लगायेगे।दरोगा ने कहा हमारे बच्चो का क्या होगा ।तेज बहादुर सिंह ने मानवीय संवेदना दिखाते हुए दरोगा के परिवार को तागे पर बैठा कर खरिहानी उसके किसी रिश्तेदार के घर भेजवा दिया ।इसके बाद थानेदार सहित सभी आरक्षी पुलिस जनो को एक कमरे मे बन्द कर पूरे थाना को आग के हवाले कर दिया ।थानेदार का घोड़ा लेकर तेज बहादुर सिंह चले गए उसके बाद डाकखाना भी फूक दिया गया ।यही नही पूरा इलाका पन्द्रह दिन तक अंग्रेजो के चंगुल से मुक्त रहा तेज बहादुर सिंह को सत्याग्रह मे नौ माह जेल भी रहना पड़ा और यातना भी सहनी पडी ।फरारी मे तेरह दिन पुलिस उनके घर डटी रही कयी सालो के बाद कलकत्ता मे गिरफ्तार हुए ।वहा से जिला मुख्यालय जेल लाया गया ।जेल मे उन्हे खूंखार कैदी की भांति चालीस दिन तन्हाई मे और तीन वर्ष तकहथकडी और बेडी मे रखा गया ।आजादी के बाद उन्हे रिहा किया गया ।बाद मे एम एल ए भी चुने गए ।और वरिष्ठ अधिवक्ता भी रहे। 31 जुलाई 1988 को लालगंज की मिट्टी मे जन्मा यह महान सपूत और देश भक्त स्वतन्त्रता सेनानी का निधन हो गया ।