छत्रपति शिवाजी की पुत्रवधू ताराबाई का जन्म 14 अप्रैल 1675 को मराठा साम्राज्य के मोहिते परिवार में हुआ था। इनके पिता हबिपंत मोहिते मराठा साम्राज्य की सेना के प्रमुख कमांडर इन चीफ थे इसलिए बचपन से ही उन्होने घुड़सवारी, तलवारबाजी समेत युद्ध की सभी कलाओं में निपुणता हासिल कर ली थी आठ वर्ष की उम्र में ही उनकी शादी महाराज छत्रपति के छोटे बेटे राजाराम से हो गयी थी उस समय मुगल और मराठा दक्खन के युद्ध में व्यस्त थे जब औरंगजेब की सेना ने 1689 में रायगढ के किले को घेरा तो उस समय शिवाजी के बेटे सम्भा जी युद्ध में मारे गये और उनकी पत्नी यशुबाई और शिवाजी के पुत्र शाहू जी गिरफ्तार कर लिए गये तब शिवाजी के छोटे बेटे राजाराम को छत्रपति की उपाधि दी गयी।तब ताराबाई अपने पति राजाराम के साथ गिंजी किले (तमिलनाडु), जो दक्षिण का अंतिम किला था उस समय राजाराम बीमार था तब 1696 में ताराबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम शिवाजी द्वितीय रखा गया सन 1700 में राजाराम की फेफडे़ की बीमारी से मौत हो गयी तब मात्र 25 वर्ष की आयु में ही उन्होने अपने पुत्र शिवाजी द्वितीय को छत्रपति घोषित कर राज्य की बागडोर अपने हाथ में लेली और आठ वर्षों तक अपने राज्य को आलमगीर (औरंगजेब) की सेना से न केवल जमकर लोहा लेकर बचाये रखा बल्कि 1706 तक मालवा और गुजरात में औरंगजेब के कयी भागों पर कब्जा कर वहां अपने को कमीशदार( कर संग्रहकर्ता)घोषित कर कर लेने लगी थीं।उन्होने अपनी बुद्धि और हिम्मत से मुगल सेना से न केवल अपने किले को आठ वर्षों तक सुरक्षित रखा बल्कि अपने राज्य का विस्तार करते हुए प्रशासनिक और जनहित केकार्यों को भी की। जो कार्य शिवाजी के पुत्र नहीं कर सके उसे तारा बाई ने कर दिखाया था मुगलों की युद्ध पद्धति को ही अपनाकर ही मुगलों को क ई बार पराजित किया और मराठा सेना का साम्राज्य की जडे़ं जमाए रखी और सेना का मनोबल उपर रखा।उनका नाम भारत के इतिहास मेंअमर हैऔर स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। सम्पादकीय- News51.in