आज दिनांक 24 जून को दैनिक जागरण के पृष्ठ 15 पर उपरोक्त हैडिंग वाले लेख ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा जिसमें यह हैडिंग थी” महामारी में चैनलों के मुकाबले अधिक भरोसे मंद प्रिंट मीडिया ” ।पढने के बाद मैं यह सोचने पर विवश हो गया कि इसके लिए इलेक्ट्रानिक मीडिया स्वयंम ही क्या जिम्मेदार नहीं है हालांकि लेख तो केवल महामारी को लेकर लिखा गया है किंतु हकीकत ये है कि हर मामले में सरकार के पक्ष में समाचार दिखाने की जैसे होड़ सी लगी हुई है ऐसा लगता है मानो सरकार की चाटुकारिता करने की होड़ लगी हुई है हर पांच मिनट में प्रधान मंत्री, मुख्य मंत्री का नाम लेकर तारीफों के ऐसे पुल बांधे जाते हैं कि असल समाचार पीछे छूट जाते हैं। एंकर सभी दलों के प्रवक्ताओं को किसी बात को लेकर बहस कराते हैं या कराती हैं तो खुद सरकारी पक्षकार बन जाते हैं और सरकारी प्रवक्ता का पक्ष लेकर विपक्ष के प्रवक्ताओं से भिड़ जाते हैं और हद तो तब हो जाती है जब कभी -कभी तो डांट भी देते हैं या बेइज्जत करने का प्रयास करते हैं या उनके जबाब देते समय टोका टाकी करते हुए उनकी बातों को पूरा ही होने देते। एंकर सही मायनों में एक तटस्थ रेफरी होता है। शायद इन्ही सब कारणों से लोगों को ऐसा लगता है कि इलेक्ट्रनिक मीडिया पक्षपात पूर्ण बातों को दिखाते हैं और शायद इन्ही सब कारणों से लोगों को इलेक्ट्रनिक मीडिया की विश्वसनीयता प्रिंट मीडिया के मुकाबले काफी कम होती जा रही है।
सम्पादकीय —-