[6/24, 11:59] सुनील दत्ता: स्वतंत्रता का देवालय
सेलूलर जेल — भाग – 2
अंग्रेज सरकार ने अपनी बर्बर – मनोवृति को मूर्तरूप देने के उद्देश्य से 8 सितम्बर सन 1857 को अंडमान द्वीप का पहला सर्वेक्षण करवाया | सर्वेक्षण समिति के सदस्य थे डा ऍफ़ . जे माउट , डा जी आर प्लेफेयर , लेफ्टिनेन्ट जे .एस हिटकौट | सर्वेक्षण रिपोर्ट 15 जनवरी सन 1858 को स्वीकार कर ली गयी | तुरंत बाद 22 जनवरी सन 1858 को कैप्टन एच . मान ने औपचारिक रूप से द्वीपों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया | उन्होंने पोर्टब्लेयर में यूनियन जैक फहराया और यही से दमन कार्य का श्रीगणेश हुआ |
10 मार्च सन 1858 को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 200 बंदी पहले जत्थे के रूप में द्वीपों पर लाये गये | वे ‘ सेमी मिरे मिस फ्रीगेट’ में लाये गये | सभी डा जे .पी वाकर की देखरेख में कार्य करने को मजबूर थे |
‘चाथम ‘ द्वीप को साफ़ करने का काम शुरू हुआ | वहा पानी का अभाव था | फिर रास द्वीप साफ़ करवाया गया | इस जत्थे के साथ 60 नौसैनिक और दो भारतीय डाक्टर भी लाये गये थे | एक ओवरसियर भी आया था | इस प्रकार ‘पीनल सेटलमेंट ‘ का कार्य प्रारम्भ हो गया | उसके बाद तीन जहाजो में और बंदियों को भी लाया गया | फिर जहाज ‘रोमन इम्पायर ‘ 171 कैदियों को लेकर आया | जहाज ‘डलहौजी ” 140 बंदियों को लेकर आया | जहाज ‘एडवर्ड ‘ 130 बंदियों को ले आया | इस प्रकार यातना और आजीवन कारावास — काला पानी की कथा में पृष्ठ पर पृष्ठ जुड़ने लगे |
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बादियो में अधिकाशत: कवि, बुद्दिजीवी ,राज घराने के लोग नबाव , लेखक और विचारक आदि ही थे | उनसे पदों को कटवाने और जंगलो को साफ़ करवाने , पत्थर कूट कर रास्ता बनवाने आदि के कार्य लिए जाते थे |
उन्हें रात में हथकड़ी – बेडी.डालकर लोहे की चेन से बांधकर एक घेरे के भीतर सुला दिया जाता था | प्रतिदिन एक आना – नौ पाई – भोजन – वस्त्र के लिए दिया जाता था |
सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के जिन बंदियों को अंडमान लाया गया था उन सबका कोई वृस्तित लेखा – जोखा नही मिलता , फिर भी वहावी आन्दोलन के क्रांतिवीरो तथा कुछ अन्य लोगो के सम्बन्ध में सूचनाये उपलब्ध है | उन लोगो में अल्लमा फजल हक़ खैराबादी , मौलाना लियाकत अली , मीर जाफर अली , आदि के नामो के उल्लेख मिलते है | इन विद्वानों ने अंडमान की धरती पर अपने प्राण त्यागे | उनमे से कुछ – एक की मजार पोर्टब्लेयर के साउथप्वाइंट में आज भी पूजे है | ‘धाड्बाड’ के वे बंदी भी यहाँ लाये गये थे जिन्होंने अंग्रेज सरकार को उखाड़ फेंकने का आन्दोलन चलाया था | जेल के निर्माण से पूर्व अधिकाश बंदियों ने प्राण त्याग दिए थे |
ब्रिटिश हुकूमत ने जिन चिनगारियो को मशाल बनने से रोकने के प्रयास किये थे , जिन्हें सदा – सदा के लिए दफन करने की साजिश की थी ; उसमे वह सफल नही हो सकी | वे चिंगारी भीतर ही भीतर सुलगती रही | बंग – भंग ने उन्हें और भी प्रज्वलित कर दिया | ‘बम संस्कृति ‘ युग का प्रारम्भ हो चुका था | खुदी राम बोस फाँसी पर चढा दिए गये | वारिन्द्र और उल्लासकर ‘काला पानी ‘ लाये गये |
[6/24, 11:59] सुनील दत्ता: सुनील दत्ता कबीर स्वतंत्र पत्रकार ,दस्तावेजी प्रेस छायाकार