Sunday, December 22, 2024
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सांसदों की विकास निधि में लगातार भारी वृद्धि, आखिर क्यूँ?

सांसदों के विकास निधि में भारी वृद्धि , लेकिन क्यों ?

सांसद निधि में 150 % की वृद्धि कर दी गयी है | इसे दो करोड़ रुपया प्रतिवर्ष से बढाकर पांच करोड़ रूपये प्रतिवर्ष कर दिया गया है |इससे सरकारी खजाने पर प्रतिवर्ष 2370 करोड़ रूपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा | सांसद निधि में इतनी भारी वृद्धि का कारण विकास कार्यो के लागत में वृद्धि को पूरा करना और उन कार्यो और और ज्यादा बढावा देना बताया गया है | प्रश्न है कि क्या अभी तक तक के सांसद निधि से हो रहे विकास कार्यो की छानबीन की गयी ? वैसे इसकी समीक्षा के लिए बहुत खोजबीन नही करनी थी | इसका पता संसदीय क्षेत्र की जनता से जानकारी प्राप्त करके आसानी से किया जा सकता था | यह बात जग जाहिर है की ज्यादातर सांसदों , विधायकों के विकास निधि से उनके क्षेत्र में इधर -उधर के विकास से कंही ज्यादा सांसदों के भारी कमीशन का भ्रष्टाचार विकास से जुड़ा है | सांसदों के अपने निर्वाचन क्षेत्र में सडक , नाली , खडंजा , पेयजल , शिक्षा एवं चिकित्सा का विकास भले ही कम हुआ हो पर सांसदों और उनके करीबियों का भरपूर विकास एकदम साफ़ नजर आयेगा |
आम जनता में वर्षो से उजागर इस सच्चाई को सरकार न जानती हो , यह सम्भव नही है |वह भी तब जब बिहार में नितीश कुमार की सरकार ने इसी को कारण बताकर प्रांत कि विधायक निधि पर रोक लगा दी है | जहा तक विकास और वह भी वर्तमान दौर के विकास का मामला है तो यह बात भी जग जाहिर है , विकास और भ्रष्टाचार में चोली – दामन का साथ हो गया है | अब तो यह बात डंके कि चोट पर कही जा सकती है जहा जितना विकास है ,वहा भ्रष्टाचार का उतना ही विकास है | चाहे वह सडक यातायात का विकास हो या मोबाइल फोन के 2 जी , 3 जी जैसे पीढियों का विकास विस्तार या फिर राष्ट्र मंडल जैसा खेल तमाशे का विकास विस्तार …….फिर आधुनिक अस्त्र – शस्त्र आदि की खरीद बिक्री का विकास . आप को हर जगह भ्रष्टाचार का निरंतर बढ़ता विकास देखने को मिल जाएगा | सांसद निधि के जरिये विकास और उसमे बढ़ते भ्रष्टाचार पर चुप्पी की एक और बड़ी वजह है की इसकी बुनियाद में विकास नही राजनितिक भ्रष्टाचार निहित है |1993 में जब इसकी शुरुआत तब की गयी थी जब नई आर्थिक नीतियों को लेकर केंद्र में कांग्रेस की अल्पमत सरकार का विरोध हो रहा था |उस वक्त यह विकास निधि के नाम, से शुरू की गयी , निधि वस्तुत:सांसदों को इन नीतियों का विरोध छोडकर समर्थन के लिए दिया गया था |इसलिए इसे विकास निधि की बदले समर्थन निधि कहना ज्यादा उचित होगा इसीलिए उसका नतीजा भी क्षेत्रो के बढ़ते विकास के रूप में नही अपितु नीतियों के बढ़ते समर्थन के रूप में आया और आता रहा | फिर इन नीतियों के आगे बढाने उसके अधिकाधिक समर्थन के लिए तथा बढती जन समस्याओं को नजर अंदाज़ करने के लिए भी इसे बधया जाता रहा | इसके लिए जन – प्रतिनिधियों को और ज्यादा भ्रष्ट बनाने का काम किया जाता रहा | अब बढ़ते भूमि अधिग्रहण तथा छोटे कम्पनियों , कारोबारियों और खुदरा व्यापार आदि के बढ़ते अप्रत्यक्ष अधिग्रहण के दौर में इन इन नीतियों के समर्थन की तथा ग्रामीणों किसानो व अन्य जन – साधारण हिस्सों को उनकी समस्याओं , आंदोलनों आदि को नजर अंदाज़ करने के लिए भी विकास निधि को बधया जा रहा है | जन प्रतिनिधियों को और ज्यादा भ्रष्ट किया जा रहा है | उनके वेतनों सुविधाओं और विकास निधियो में वृद्धि करते हुए उन्हें जनसाधारण के प्रतिनिधित्व से पूरी तरह अलग किया जा रहा है | अब उन्हें खुलेआम धनाढ्य कम्पनियों एवं उच्च सुविधाभोगी हिस्से का ही का ही प्रतिनिधि बनाया जा रहा है | जो देश के आम आवाम के लिए खतरनाक है |

सुनील दत्ता स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी छायाकार

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