Tuesday, September 17, 2024
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समय के अनुसार रणनीति न बनाना क्या फिर अखिलेश यादव के लिए महंगा पड़ेगा ?

सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव शायद अभी भी यही फार्मूला सफलता का पैमाना मान कर चल रहे हैं कि स्वजातीय +अल्पसंख्यक मोर्चा बना कर एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो सकते हैं तो शायद यह फैसला उनपर भारी पड़ने वाला है। आप एक बार उनके प्रदेश से लेकर जिले और ब्लाक स्तर तक के पदाधिकारियों की सूची पर नजर दौडायेंगे तो आपको साफ दिखेगा कि लगभग 70 प्रतिशत पदाधिकारी इन्ही दो जाति और वर्ग के हैं और जो 30 प्रतिशत प्रतिनिधित्व है वह उन जगहों पर अन्य जातियों का वर्चस्व या किन्ही अन्य कारक से मजबूरी में लिए गये फैसले हैं। अखिलेश यादव को यह समझना होगा कि भाजपा के सत्ता में आने के बाद परिस्थितियों में जातिगत समीकरण में भारी बदलाव हुआ है क ई जातियों में भाजपा ने भारी सेंधमारी की है। दूसरे बसपा सुप्रीमो मायावती के भाजपा के आगे समर्पण करने से जो उनके अल्पसंख्यक वोटर थे उनका मोह बसपा से भंग हुआ है लेकिन उसका फायदा सपा को न होकर कांग्रेस को हो रहा है और उपचुनावों में यह दिखा भी है अब वह समय भी नहीं रहा कि मात्र दो जाति या वर्ग के भरोसे सपा कुछ बड़ी लड़ाई लड़ फतह कर सकती है जब तक वह सभी जातियों में (भाजपा की भांति) अपनी पैठ नहीं बनाएगी। बसपा अब प्रदेश में बड़ी शक्ति नहीं रह गयी है सभी जानते हैं पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के गठबंधन का लाभ उसे मिला था और तब अल्पसंख्यक वोट भी साथ थे। इधर बसपा के पराभव का लाभ कांग्रेस को मिलता दिख रहा है भले ही वह प्रदेश में बड़ी शक्ति न बने लेकिन लड़ाई में आने के लिए मजबूत सहारा(बसपा का पराभव) बन रही है। सपा को यदि भाजपा से टक्कर लेना है तो उसे पुराना फार्मूला छोड़ कर जनता में सर्वमान्य बनना होगा अन्यथा उसका हश्र पिछले ही लोकसभा और विधानसभा चुनाव से अलग नहीं होगा ।वैसे ही उसपर स्वजातीय वाली पार्टी का ठप्प विरोधी दल वाले लगाते रहे हैं और अखिलेश यादव उसी गलती को दोहराते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा परिवारवाद के लिए भी अखिलेश

सम्पादकीय -News51. In

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