Monday, December 23, 2024
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सच तो ये है कि गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा के विधायकों ने नैया डूबोने में कसर नहीं छोड़ीथी, प्रधान मंत्री की मेहनत और राहुल गांधी की अकर्मण्यता ने भाजपा को बुलंदी पर पहुंचाया

गुजरात चुनाव बीत गया। भाजपा ने 150 से उपर विधायक जीता कर एक नया इतिहास गढा। और ऐसा तब हुआ जब चुनाव के तीन महीने पहले तक गुजरात में भाजपा की स्थिति बदतर थी और साफ लग रहा था कि इस बार कांग्रेस सत्ता में अवश्य ही आ जाएगी और प्रधानमंत्री मोदी अपना गुजरात का दौरा शुरू कर दिया था और गृहमंत्री अमित शाह बार-बार गुजरात जा रहे थे। साथ दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने भी अपना दौरा गुजरात में आम आदमी पार्टी को स्थापित करने के लिए प्रयास हेतु शुरू कर दिया था उधर जब चुनाव की तिथी की घोषणा हुई तब तक केजरीवाल ने बिजली बिल माफी, किसानों के कर्जे की माफी जैसी अन्य घोष चीज़ के माफी सहित कई घोषणाओं को जनता में बता चुके थे जैसा कि हर राज्य में जहाँ चुनाव होते हैं चुनावी घोषणा करते हैं। शुरू में लोगों में लोगों ने उन्हें गम्भीरता से लिया भी, लेकिन बाद में अधिकांश लोगों में उनके प्रति उत्तेजना समाप्त हो गई। चुनाव तिथी की घोषणा के बाद भी राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा चलने लगी ।राहुल गांधी की यात्रा का रूट तैयार करने वाले गुजरात और हिमांचल को रूट में शामिल ही नहीं किया ,पता नहीं इसमें सहमति राहुल गांधी की थी या नहीं। अशोक गहलौत को वहाँ का इंचार्ज और उनके खास रघु शर्मा को पूरा जिम्मा चुनाव प्रचार का सौंपा गया। 40 सदस्यों की स्टार प्रचारकों की सूची में सोनियां गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तथा खड़गे भी थे लेकिन गांधी परिवार पूरे चुनाव के दौरान गुजरात नहीं आया। कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे, कन्हैया कुमार और कुछ अन्य नेताओं ने अपनी ताकत और सामर्थ्य के हिसाब से मेहनत की। लेकिन राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के अनुपस्थित में कांग्रेस का पूरा चुनाव प्रचार अस्त व्यस्त रहा। दूसरी तरफ भाजपा में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वंयम को भी पूरी ताकत से गुजरात और हिमांचल के चुनाव में झोंक दिया साथ ही सभी भाजपा के बड़े नेताओं को भी वहीं झोंक दिया। गृहमंत्री अमित शाह ने तो गुजरात में डेरा ही डाल दिया। इसके अलावा हिमांचल में 22 या23 भाजपा के नेताओं ने टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर निर्दल पर्चा भरा था और किसी के भी मनाने पर पर्चा वापस लेने को तैयार नहीं थे लेकिन इगो को किनारे कर प्रधान मंत्री ने उन्हें भी फोन कर समझाया, मेरा तात्पर्य ये है कि प्रधान मंत्री मोदी किसी भी चुनाव में पूरी तन्मयताऔर गम्भीरता सेपूरी ताकत से प्रचार करते हैं और चुनाव जीताने का प्रयास करते हैं हार और जीत एक बात है और प्रयास एक बात है। सच तो ये है कि कांग्रेस की ताकत अगर राहुल गांधी हैं तो कांग्रेस को कमज़ोर करने में भी उनकी नासमगांधी झी और अकर्मण्यता का भी पूरा योगदान है और उससे भी ज्यादा पुत्र मोह से ग्रसित सोनियां गांधी भी उत्तरदायी हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी को विधान सभा चुनाव में वाक ओवर, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को वाक ओवर, बिहार विधान सभा चुनाव में केवल दो बार प्रचार करने जाना राहुल गांधी का जाना उनकी नासमझी और अकर्मण्यता की निशानी है जो कांग्रेस पर बहुत भारी पड़ी है वहीं प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में प्रभारी बनने के बाद उनकी मेहनत और मरी पड़ी यूपी कांग्रेस संगठन को उन्होंने जिस प्रकार से कम समय में खड़ा कर सड़क पर लड़ने के लिए खड़ा कर दिया था और उनकी सभाओं में उमड़ी भीड़ ने यह तो दर्शा दिया कि लोग यूपी में कांग्रेस को वोट देना चाहते हुए भी सिर्फ इसलिए नहीं दे पाते कि यहाँ की राजनीति पूरी तरह जातिवाद पर आधारित हो गई है। प्रियंका गांधी यूपी विधान सभा चुनाव में मात्र दो सीट जीता पाईं लेकिन सभी ने उनकी मेहनत और प्रयासों की खुले दिल से सराहना की। लेकिन सोनियां गांधी ने प्रियंका को राहुल गांधी से उपर उठाने और बड़ी जिम्मेदारी देने में कोताही की। हिमांचल प्रदेश में प्रियंका गांधी ने एक बार अपनी मेहनत और सक्रियता से पार्टी में नया जोश भरा और राहुल गांधी की तरह इधर उधर की भाषणबाजी न कर मुख्य बातों पर अपना फोकस रखा, नतीजतन हिमांचल में कांग्रेस की सरकार बनी। हार-जीत अपनी जगह सही है लेकिन अगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जैसा मेहनती, ऊर्जावान और करिशमाई नेता अगर कांग्रेस में कोई है तो प्रियंका गांधी हैं लेकिन स्वयंम सोनियां गांधी ही उन्हें अबतक आगे नहीं आने दे रही हैं इसी प्रकार गुजरात का चुनाव गुजरात भाजपा की नहीं सिर्फ अकेले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की मानी जाएगी क्योंकि उन्होने इसीलिए बीच में दो मुख्य मंत्री बदल डाले थे । -सम्पादकीय -News 51.in

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