[12/1, 13:01] सुनील दत्ता: निर्वासित भारत-सरकार का राष्ट्रपति !
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आज इनकी जयन्ती है !
एक सामन्त ,एक राजा का बेटा और राजा का ही दामाद !
राजा कहता है कांग्रेस में मत जाओ । वे हमारे हित के विरुद्ध हैं । और दामाद-राजा अपने हितों के विरुद्ध ही कांग्रेस में शामिल हो जाता है और आजादी का दीवाना
बन जाता है । लाला हरदयाल और चंपक रमन पिल्लई
जैसे नेताओँ से निरन्तर संपर्क में रह कर उनके द्वारा भेजे जाने वाले हथियारोँ को क्रान्तिकारियोँ मेँ न केवल बांटता है बल्कि उन्हेँ धन भी उपलब्ध कराता है ।
इन गतिविधियोँ के चलते अंग्रेज जासूसोँ की नजरोँ मेँ चढ जाता है ।अंग्रेजसरकार पीछे लगती है तो वह विदेशों में जाता है और संसार को अपने देश की आजादी का सन्देश सुनाता है >देखो दुनियां-वालो , ये बाहर के लोग हमारे घर में कैसे घुस आये ? अफगानिस्तान में रहते हुए
वह 29 अक्तूबर 1915 को अस्थाई “आजाद हिन्द सरकार” निर्वासित भारत -सरकार का बना लेता है ।
अनेक देशों से मान्यता भी प्राप्त कर लेता है ।
इसी सरकार के अंतर्गत “आजाद हिन्द फौज” का भी गठन करता है , जिसमेँ सीमावर्ती पठानोँ और कबीलाईयोँ को लेकर छह हजार सैनिक भर्ती किये गये ।
1918 में ये लेनिन से मिलता है ।1922 में जर्मनी में क्रांतिकारी पत्र निकालता है ।
निर्भीक पत्रकार की तरह प्रताप,स्वराज्य और वन्देमातरं में विद्रोहभाव के लेख लिखता है।
जापान जाकर रासबिहारी बोस से और अमेरिका की गदरपार्टी के नेताओं से तथा फिर चीन के नेताओं से भेंट करता है ! 32 वर्ष देश से बाहर रहकर, अंग्रेज सरकार को तरह – तरह से ललकारता है |
जवाहरलालनेहरू अपनी पुस्तक मेरीकहानी में स्वतन्त्रता के इस अलबेले दीवाने की चर्चा करते हैं !
इसको आप भूले तो नहीं हैं न !
क्रान्तिकारी राजा महेन्द्रप्रताप सिंह :
जन्म 1 दिसम्बर 1886 को मुरसान [ हाथरस के पास] में राजा घनश्याम सिँह के यहां हुआ ।
हाथरस के राजा हरनारायण सिंह ने [ अपने कोई संतान न होने के कारण] उन्हेँ गोद ले लिया ।
जींद ( हरियाणा ) की राजकुमारी से महेन्द्रप्रतापसिंह का विवाह हुआ था ।
अलीगढ,वृंदावन,हाथरस आदि में राजा महेन्द्रप्रताप की रियासत और जमींदा्री थी,वह सब इन्होंने शिक्षासंस्थाओं को दान कर दी।
उस जमाने में मथुरा में पोलीटेक्नीकल कालेज खोलने का सपना राजा महेन्द्रप्रताप ने देखा था।
1909 में पं.मदनमोहन मालवीयजी के सान्निध्य में प्रेम महा विद्यालय की स्थापना की ।
मथुरा से एम.पी निर्वाचित हुए,हालांकि जवाहरलालनेहरू इनके विरुद्ध खडे कांग्रेस के प्रत्याशी का प्रचार करने आये थे।प्रेममहाविद्यालय के विद्यार्थी इतने जोश में थे कि नेहरूजी की अपील बेअसर हो गयी।
इन्होंने अपना नाम पीटर पीर प्रताप रख लिया था।
उनकी स्मृति को श्रद्धामय नमन!
राजीव रंजन चतुर्वेदी
[12/1, 13:02] सुनील दत्ता: प्रस्तुति सुनील दत्ता स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार