…. ” जुलाई 31 1940 और ….” राम मुहम्मद सिंह आजाद ” ..!!
..यही नाम बताया था .. उधम सिंह ने ..अपना !!
..अंग्रेजों की अदालत में .. 31 जुलाई
उसी देशभक्त शेरे बब्बर का जन्मदिन है …हमारे देशभक्त पुरखे ..’ उधम सिंह ‘ जिनकी कुर्बानियों को सत्ता के भूखे कुत्ते भुला बैठे हैं और जिसने अपनी बेख़ौफ़ बहादुरी से हमें ..स्वाभिमान से जिन्दा रहने की तमीज दी ,, … क्या याद है हम सब को उसकी कुर्बानियां .???????
…13 अपेल वैसाखी के दिन 1919 ..जलियावाला बाग सदी का क्रूरतम काण्ड था ,, ..ब्रितानी हुकूमत के द्वारा अंजाम दिया गया ..प्रमुख खलनायक थे ब्रिटिश हुकूमत के दिग्गज कुत्ते ..’ ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर और पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ‘ ओ’ डायर ‘ ..शाबाशी देने वालो में था ..लार्ड जेटलैंड भारत सचिव ..इतिहास प्रसिद्द ‘ जलियावाला बाग़ में ..जनरल डायर ने कुल लगभग 1650 गोलियां ‘ निहत्थी जनता ‘ पर बर्बरता पूर्वक चलवाई ..पूरा मैदान लाशो से पट गया …वैशाखी की ख़ुशी मातम में बदल चुकी थी ..शेर सिंह नामक एक किशोर भी उस बाग़ में जिन्दा बच गया ..खौलते हुवे खून के साथ …उसकी अंतरात्मा चीख उठी …
..” राजसत्ता से हुवे मदहोश , दिवानो , लुटेरों ..
मै तुम्हारे जुल्म के आघात को ललकारता हूँ .!
मै तुम्हारे दंभ के पाखंड को देता चुनौती ..
मै तुम्हारी जात को ..औकात को ललकारता हूँ .!! ” … जलियावाला के हत्यारों को सजाये मौत की प्रतिज्ञा हो चुकी थी ..अंततः …1933 में शेर सिंह / उधम सिंह ..उद्दे सिंह के नाम से जर्मनी होते हुवे लन्दन पहुँच ही गए ..तब तक एक कुत्ता ‘ जनरल डायर ‘ अपनी मौत मर चूका था ..जल्द ही उधम सिंह ने माइकल ओ डायर को खोज निकाला..भारत सचिव लार्ड जेटलैंड भी अभी जीवित था ..अचानक मार्च के महीने में ..सुबह के अखबार को पलटते ..निगाह पड़ी ..12 मार्च को लन्दन के कैकस्टन हाल में आयोजित सेमीनार में ..ओ डायर और जेटलैंड आ रहा है ..वर्ष था 1940..
…वर्षों की चिर साधना पूरी करने का सुनहरा अवसर ..लगभग 21 वर्षों की लम्बी प्रतीक्षा के बाद ..एक वकील की वेश भूषा धारण कर ..कानून की मोटी किताबों को भीतर से काट और उसमे रिवाल्वर छुपा ..सजे धजे उधम सिंह कैक्सटन हाल जा पहुंचे ..दूसरा विश्व युद्ध चरम पर था ..कड़ी सुरक्षा को उधम सिंह भेद चुके थे ..डायर का जहरीला भाषण समाप्त हुवा हाल तालियों की गडगडाहट से गूंज उठा ..जलियावाला बाग़ पर इतराता हुवा डायर जब तक अपनी जगह पहुँच पाता की पूरा हाल गोलियों की तड़तडाहट से गूँज उठा …डायर कुत्ते की मौत मारा जा चूका था ..जेटलैंड को भी उसके हिस्से की गोलियां मिल चुकी थी …कार्य सिद्दी की असीम शांति ..उधम सिंह के चहरे पर विद्दमान थी ..उनका देदीप्यमान मुख मंडल चमक रहा था ..जलियावाला बाग का हत्यारा मारा जा चूका था ..
..लन्दन की ओल्ड वैरी कोर्ट में सुनवाई के बाद फांसी तय हुई ..तारीख 31 जुलाई 1940 ..यही पर अमर शहीद मदन लाल धींगरा को भी फांसी की सजा सुनाई गई थी ..
..जज को दिए अपने बयांन में उधम सिंह ने कहा …
‘ मेने देश की खातिर फांसी को पुष्पों का हार बनाया
मेने प्रण किया था माता से , देंगे शीश , उसी को निभाया ‘ …. जज की जिज्ञासा जो उनके नाम ” राम मुहम्मद सिंह आजाद ” को लेकर थी …उधम सिंह ने कहा ..’ राम ‘ हिन्दू के लिए .’.मुहम्मद ‘..मुस्लिम भाइयों के लिए औ ‘ सिंह ‘ सिख भाइयों के लिए ..और रहा .’ आजाद ‘ वतन के लिए ..
पेटोंन विले जेल में 31 जुलाई 1940 के बाद ..अंग्रेजी हुकूमत ने इन्हें कहीं अज्ञात जगह दफना दिया ..कालांतर देशभक्तों के दबाव में भारत की हुकूमत को इनकी अस्थियाँ 31 जुलाई 1974 में भारत लाना पड़ा ….
…कबीर की तरह इस महान आत्मा का अंतिम अवशेष ..हिंदुवो ने हरिद्वार में ..मुस्लिमों ने फतेहगढ़ मसजिद से लगे कब्रिस्तान में और सिखों ने ‘ करंत साहिब ‘ में इनका अंतिम संस्कार किया ..
..आज यह हम सब का कर्तव्य है ..की जिस त्याग और संकल्प की मशाल उधम सिंह ने ‘ प्रज्वलित ‘ की उसकी ‘ लौ ‘ को घर-घर ..जन-जन तक पहुंचाए ..और उनकी यादों को प्रेरणा स्रोत बनाते हुवे ..” जाती – धर्म – भाषा ” की घिनौनी राजनीति करने वाले इन ‘ काले अंग्रेजों ‘ का फन कुचल दें ..जो भ्रष्टाचार की माँ है ,…
….इस महान अमर शहीद को यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी , सहमत हैं ….????
हिमांशु जयहिंद के वाल से
….उधम सिंह …जिन्दा बाद .!! …शहादत जिंदाबाद ..!!!