Sunday, December 22, 2024
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आखिर सोनियां गांधी की पसंद बने मल्लिकार्जुन खड़गे, कांग्रेस अध्यक्ष पद का भरा पर्चा, शशि थरुर ने भी भरा पर्चा

नयी दिल्ली (30 सितम्बर) – आखिर कार सबके सामने आये सोनियां गांधी की पसंद मल्लिकार्जुन खड़गे। दूसरे शशि थरूर और के. एन. त्रिपाठी ने भी पर्चा भरा, अब पर्चा भरने का समय अब चूंकि समाप्त हो चुका है और आज पर्चा भरने की अंतिम तारीख भी थी ।हालांकि के. एन. त्रिपाठी ने नामांकन करने के बाद पत्रकारों से कहा कि चूंकि आला कमान का यह निर्देश था कि नामांकन कोई भी कांग्रेस का नेता कर सकता है इसलिए मैंने आदेश के पालन में नामांकन किया है आगे जो भी आला कमान द्वारा निर्देश मिलेगा उसका पालन होगा। वहीं शशि थरुर ने भी नामांकन के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे के बारे में कहा कि खड़गे साहब हमारे भीष्म पितामह हैं। ऐसा लगता है कि नामांकन वापसी की आखिरी तारीख 8 अक्टूबर तक के .एन. त्रिपाठी और शशि थरुर दोनों ही मल्लिकार्जुन खड़गे के समर्थन में नामांकन वापस ले लेंगे और मल्लिकार्जुन खड़गे निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए जाएंगे। जब मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन करने आये तो उनके सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं का जमघट था चाहे जी- 23 के असंतुष्ट नेता या अन्य, सभी जान चुके थे कि मल्लिकार्जुन खड़गे आला कमान की पसंद हैं नामांकन के समय अशोक गहलौत, प्रमोद तिवारी, दिग्विजय सिंह, मनीष तिवारी, अखिलेश प्रसाद, आदि लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं की भीड़ उनके साथ थी। मजदूर आंदोलन से राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे दो बार लोकसभा और 9बार विधानसभा का चुनाव जीत चुके हैं और अगर सब कुछ सही रहा तो बाबू जगजीवन राम के बाद दूसरे दलित नेता कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीतेंगे और यह 51 साल के बाद होगा। नोटबंदी से लेकर राफेल तक की लड़ाई में वे राहुल गांधी के साथ चट्टान की तरह खड़े रहकर सड़क से लेकर संसद तक की लड़ाई लड़े ।50 साल से कांग्रेस में शामिल रहे मल्लिकार्जुन खड़गे पहली कर्नाटक के गुलबर्गा शहर अध्यक्ष बने और चुनाव के समय अपने हाथों से पोस्टर लगाए और दीवारों पर लिखकर प्रचार किया। 1972 में पहली बार विधान सभा चुनाव लड़ कर जीता और 2008 तक विधायक रहे। मोदी लहर में भी वो चुनाव नहीं हारे। 2009 में पहली बार गुलबर्गा से लोकसभा चुनाव जीता और फिर 2014 में भी लोकसभा चुनाव जीता बाबू जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस अध्यक्ष बनाए गए थे। 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद उनको राज्य सभा में चुन कर भेजा गया और फिर गुलाम नबी आजाद की जगह उन्हें प्रतिपक्ष का नेता बनाया गया।

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