“सारे सुखी परिवार एक जैसे होते हैं. हर दुखी परिवार अपने तरीके से दुखी होता है.” – यह 1878 में छप कर आई टॉलस्टॉय की ‘अन्ना कैरेनिना’ की पहली पंक्ति है.
1862 में लियो टॉलस्टॉय के साथ हुई शादी के समय सोफिया आंद्रेयेव्ना कुल अठारह की थी – पति से 16 साल छोटी. टॉलस्टॉय तब तक एक बड़े उपन्यासकार के तौर पर रूस भर में ख्याति हासिल कर चुके थे. हद दर्जे के जुआरी और वेश्यागामी टॉलस्टॉय के असंख्य औरतों के साथ सेक्स सम्बन्ध रहे थे. इनमें उनके फार्म पर काम करने वाली अनेक नौकरानियां भी थीं जिनमें से एक ने उनके बच्चे को भी जन्म दिया था. अपने सेक्स जीवन की तमाम तफसीलें टॉलस्टॉय डायरियों में लिखा करते थे. शादी होने के तुरंत बाद उन्होंने अपनी नवेली बीवी को ये डायरियां पढ़ने कि दीं ताकि उसे पता लग सके वह कैसे आदमी के साथ अपना जीवन बिताने जा रही है. कच्ची उम्र की सोफिया के लिए यह अनुभव किस कदर तहस नहस करने वाला रहा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है.
इस शादी के परिणामस्वरूप कुल तेरह बच्चे पैदा हुए जिनमें से तीन बचपन में ही गुजर गए. शादी के शुरुआती पंद्रह सालों में टॉलस्टॉय के लिखे ‘युद्ध और शान्ति’ और ‘अन्ना कैरेनिना’ दुनिया के सबसे ज्यादा पढ़े गए उपन्यासों में हैं. इन पंद्रह सालों में टॉलस्टॉय की पत्नी ने नौ बच्चों को जन्म दिया. सोफिया ने अपने जीनियस पति के काम को अंजाम देने में अपना खुद का जीवन होम कर दिया. एक गर्भावस्था से दूसरी गर्भावस्था के बीच सोफिया के लिए अथक मेहनत का समय होता था. उसे अपने पति की सेक्रेटरी, कॉपी सम्पादक और आर्थिक प्रबन्धक का काम भी करना होता था. 1869 के साल के आते आते जब ‘युद्ध और शान्ति’ के आख़िरी अध्याय लिखे जा रहे थे, सोफिया ने पूरी पांडुलिपि में आठ बार संशोधन किये और इतनी ही बार उसकी प्रतिलिपियाँ तैयार कीं. बाल-बच्चों के साथ दिन भर मसरूफ रहने के बाद वह रात को मोमबत्ती की रोशनी में उसने इस काम को अंजाम दिया.
सोफिया खुद एक बेहद पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखती थी और उसके परनाना रूस के इतिहास के पहले शिक्षा मंत्री रहे थे. उसे खुद कहानियां सुनाना अच्छा लगता था और उसने अपने अनुभवों को अनेक डायरियों की सूरत दी. उसके पास लिखने के लिए अपने परिवार की असंख्य कहानियां थीं लेकिन टॉलस्टॉय की कहानियों को ठीक करने में ही उसकी आधी जिन्दगी खप गई. यह अलग बात है कि टॉलस्टॉय की निगाह में साहित्य की दुनिया में औरतों के लिए कोई जगह नहीं थी.
विवाह के तीन दशक बीतते न बीतते यह सम्बन्ध एक बड़ा बोझ बन चुका था. टॉलस्टॉय के भीतर का वैचारिक संघर्ष भी नए आयाम लेता जा रहा था. अगले अठारह-बीस साल दोनों के बीच अजीब सी कैफियत रही और आखिरकार 1910 में एक दिन अपनी पत्नी को बना बताये बूढ़े टॉलस्टॉय घर से निकल गए. अगले दिन आस्तापोवो नाम के रेलवे स्टेशन पर निमोनिया से उनकी मौत हो गयी.
मोटे तौर पर देखा जाय तो यह एक त्रासद सम्बन्ध था जिसने संसार को महान साहित्यिक रचनाएं दीं लेकिन सोफिया और टॉलस्टॉय दोनों को भावनात्मक रूप से तबाह कर दिया.
अपनी पति की आदतों को लेकर अपनी एक डायरी में सोफिया ने लिखा है – “मानवता को खुश रखने के लिए जिन बातों का वे उपदेश देते हैं, वही चीजें जीवन को इस कदर जटिल बना देती हैं कि मेरे लिए जीना और भी मुश्किल होता जाता है. उन्होंने शाकाहारी खाना ही खाना होता है. इसका मतलब हुआ खाना दो बार बनाना पड़ता है. इसमें दुगना खर्च होता है और दुगनी ही मेहनत लगती है. प्रेम और भलेपन पर दिए जाने जाने वाले उनके प्रवचन उन्हें अपने परिवार के प्रति बेपरवाह बनाते हैं और वे पारिवारिक जिन्दगी में तमाम तरह की गैरजरूरी नोंकझोंक करने लगते हैं. और दुनियावी चीजों के उनके त्याग (जो सिर्फ शब्दों में होता है) ने उन्हें एक ऐसे आदमी में बदल दिया है जो बिना रुके हर समय दूसरों की बुराई करता रहता है.”
एक बेहद प्रतिभावान और संवेदनशील स्त्री के रूप में सोफिया को अपने विचारों के लिए बहुत बड़े आसमान की दरकार थी लेकिन उसके पति ने उसे लगातार हाशिये में फेंका और गैरजरूरी महसूस कराया. टॉलस्टॉय और सोफिया की सम्बन्ध एक ऐसी दास्तान है जिसमे स्त्री बिना शर्त पुरुष को अपना आदर्श और भगवान मानती है जबकि पुरुष उसे लगातार यातना पहुंचाता रहता है. सोफिया की प्रतिभा किस बेचैनी से अपने लिए रास्ते खोजा करती थी इसका प्रमाण यह तथ्य है कि उन्होंने फोटोग्राफी में भी हाथ आजमाया जिसकी खोज उनके बुढ़ापे में हुई थी.
अदामियों की लिखी कहानियों से अटी इस दुनिया में कितनी सारी औरतों की कहानियां नहीं लिखी गईं. कोई हिसाब है!
-अशोक पांडे। द्ववारा प्रस्तुति- सुुुुुनील कुमार दत्ता स्वतंत्र पत्रकार एवं दस्तावेजी प्रेस छायाकार