Saturday, July 27, 2024
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राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के नए स्टार प्रचारक – क्या पुराने स्टार प्रचारकों से ज्यादा जानकार और भाजपा स्टार प्रचारकों और एंकरों का मुंहतोड़ जबाब देने में सक्षम हैं?

पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव अपने आखिरी दौर में पहुँच चुका है और चूँकि हम यह लेख कांग्रेस के परिप्रेक्ष्य में लिख रहे हैं इसलिए हम इन पांचो राज्यों में कांग्रेस की चुनाव पूर्व, चुनाव के दौरान और चुनाव के परिणाम के बाद की कांग्रेस की स्थिति का बेहतर ढंग से आकलन(निष्पक्ष) करने का प्रयास कर रहे हैं। जिस समय इन पांचो राज्यों ( यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर) में चुनाव की तारीखों की घोषणा की गई थी उसके पहले से ही इन सभी राज्यों में कांग्रेस अपने ही नेताओं के अंतर्कलह से जूझ रही थी इनके नेता आपस में ही लड़ रहे थे। सबसे बड़ी समस्या पंजाब और उत्तराखंड, गोवा में थी। यूपी में तो और बुरा हाल था कांग्रेस के नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में अपना ठौर ठिकाना बना रहे थे, यही हाल गोवा में भी था वहां बंगाल चुनाव में भारी जीत से उत्साहित ममता बनर्जी ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ने के लिए कमर कस चुकी थी आप पार्टी भी वहां कांग्रेस का खेल बिगाड़ने पर उतारू था। मणिपुर में भी कांग्रेस में भाजपा तोड़फोड़ पर उतारू थी मात्र उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस मजबूत तो थी लेकिन यहाँ नवजोत सिंह सिद्धु की मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा और उत्तराखंड में कांग्रेस के सबसे मजबूत और वरिष्ठ नेता हरीश रावत को विरोधी गुट के कांग्रेसी नेता उन्हें मुख्य मंत्री न बनने देने के लिए ऐड़ी चोटी लगाऐ हुए थे। राहुल गांधी और खासकर प्रियंका गांधी ने बड़े ही धैर्य पूर्वक और बुद्धिमानी से सभी समस्याओं का समाधान किया। पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धु के बार -बार मुख्य मंत्री पद का उम्मीदवार चुनाव पूर्व घोषित करने के लिए आलाकमान पर दबाव डाला और ढंकी- छुपी धमकी भी दी। उधर आम आदमी पार्टी ने भगवंत सिंह मान को मुख्य मंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भी कांग्रेस के लिए समस्या खड़ी कर दी थी। राहुल गांधी ने ऐसे समय में चरनजीत सिंह चन्नी के नाम का एलान कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा की, जबकि सिद्धू के लिए विद्रोह करने की गुंजाइश ही नहीं बची थी दूसरे राहुल गांधी ने पंजाब की जनता की राय शुमारी भी ली थीऔर अन्य सभी पंजाब की जनता और कांग्रेसी कार्य कर्ताओं में भी सिद्धू की हरकतों से नाराजगी बहुत बढ गयी थी सिद्धू को भी अपनी हैसियत समझ आ गई थी सभी कांग्रेसी एक जुट पंजाब में होकर चुनाव लड़े। उत्तराखंड में भी असंतुष्टों और हरीश रावत को दिल्ली बुलाकर बैठक में राहुल गांधी ने स्पष्टता के साथ हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का निर्णय सुना दिया। उत्तर प्रदेश में पिछले एक -दो वर्ष में प्रियंका गांधी ने क ई चरणों में कांग्रेस की यात्रा, जनजागरण, और अन्याय के विरोध में सड़क पर स्वयं उतर कर कंधे से कंधा मिला कर क ई लड़ाई लड़ी, गिरफ्तारी भी दीं। इन सब में जिन लोगों ने उनके साथ मिलकर रैलियों में और आंदोलनों में सक्रियता दिखाई। उनको संगठन में आगे कर सभी जिलों का नया और जुझारू नेताओं से नया संगठन खड़ा किया गया। नतीजतन पुराने और निष्क्रिय और से पार्टी संगठन चलाने वाले मठाधीश नेताओं का वर्चस्व कम होने से वो अपने को उपेक्षित महसूस कर बगावत पर उतरे और बाद में मानमनौवल न होने पर दूसरी पार्टियों में शामिल हो गए ,चाहे वह ललितेश त्रिपाठी, जितिन प्रसाद, या आरपीएन सिंह हों या अन्य मझोले और छोटे कांग्रेसी नेता जो पार्टी छोड़कर गए वे सभी इन्ही कारणों से या अन्य लाभ से। लेकिन सच कहूं तो कांग्रेस के लिए ऐसे नेताओं का पार्टी छोड़कर चले जाना एक तरह से वरदान ही साबित होगा ।दूसरा उत्तर प्रदेश में किसी भी दल से कांग्रेस का गठबंधन न हो पाना भी कांग्रेस के लिए वरदान ही साबित होगा।पिछले 25-30 सालों से कभी सपा कभी बसपा के साथ गठबंधन ने कांग्रेस संगठन को पूरे प्रदेश में समाप्त प्रायः कर दिया था। हालांकि इस बार भी कांग्रेस ने सपा और बसपा तथा रालोद से गठबंधन करने का अपने ओर से भरपूर प्रयास किया, लेकिन ऐसा लगता है कि प्रदेश संगठन के लिए यह भी किसी वरदान बल्कि कहा जाय तो सबसे बड़ा मौका, सभी पार्टियों द्वारा कांग्रेस को गठबंधन से नकारने पर, मिला है इसका लाभ इस विधान सभा चुनाव में तो जो भी मिले (फिलहाल लाभ की स्थिति में ही कांग्रेस रहेगी चाहे वह वोट परशेंटेज में हो या सीटों में हो, दोनों में ही काफी लाभ होना ही है दो बात और जोड़ना चाहता हूँ कि प्रियंका गांधी यह समझ चुकी थी कि यूपी जैसे प्रदेश में जहाँ चुनाव जाति और धर्म आधारित ही होते हैं और कांग्रेस के पास किसी जाति -धर्म का वोट बैंक नहीं है थोड़ी बहुत अल्पसंख्यक वोटर और थोड़ा बहुत दलित समुदाय हैं (कांग्रेस के प्रति सहानुभूति और वोट देने की लालसा ज्यादा है) इसी प्रकार ब्राम्हण भी अंदर से कांग्रेस को मजबूत देखना चाहते हैं और वोट भी देना चाहते हैं लेकिन बात वही जातिवाद और धर्म आधारित राजनीति आड़े आ रही है। कहीं अखिलेश यादव, कहीं मायावती और कहीं धर्म आधारित भाजपा रूपी रूकावट। हालांकि सभी इस बात पर एकमत हैं कि भाजपा का विकल्प अखिलेश यादव, मायावती या कोई अन्य क्षेत्रीय पार्टी नहीं हो सकती। प्रियंका गांधी ने महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देकर लड़की हूं, लड़ सकती हूं का नारा देकर अलग पहचान के साथ नया वोट बैंक तैयार करने का बहुत ही अच्छा प्रयास और प्रयोग किया है। दूसरी बात कन्हैया कुमार को कांग्रेस में शामिल कराकर एक ऐसी न ई स्टार प्रचारकों की टोली प्रियंका गांधी की अगुवाई में तैयार की गई है ,जैसे पहले नहीं थे। कन्हैया कुमार जैसे जमीनी और देश विदेश की राजनीति के जानकार प्रवक्ता और अपनी भाषण शैली और अपनी वाकपटुता से और इतने कम समय में करोड़ों लोगों को अपना मुरीद बना लिया है इनके साथ सचिन पायलट, इमरान प्रताप गढी, सुप्रिया श्री नेत, न ई सनसनी पूनम पंडित और पंखुड़ी पाठक (ये दोनों चुनाव भी लड़ रही हैं), दीपेंद्र हुड्डा, छत्तीस गढ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पंजाब के मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धु,, तौकीर आलम, वर्षा गायकवाड़, आराधना मिश्र मोना, तेज तर्रार साधना भारती जैसे क ई नये और अच्छे युवाऔर तेजतर्रार प्रवक्ता सामने इस चुनाव में आये हैं पहले ऐसे ही प्रवक्ताओं की कमी के चलते कांग्रेस भाजपा जैसी मजबूत प्रवक्ताओं की फौज के सामने जबाब नही दे पाती थी और न ही अपनी बातों को और उपलब्धियों को ठीक से बयान कर पाती थी किंतु प्रियंका गांधी और सचिन पायलट की अगुवाई में कन्हैया कुमार, इमरान प्रताप गढी ,चरनजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धु, हार्दिक पटेल जैसे क ई अन्य अच्छे नौजवान प्रवक्ता अब पार्टी के पास हैं जिन्होंने इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की बातों को न केवल बेहद मजबूती से रखा है ,बल्कि क ई चैनलों में भाजपा के प्रवक्ताओं की बोलती बंद की है यह एक नयी बात देखने में आई है। प्रियंका गांधी और सचिन पायलट के साथ कन्हैया कुमार, चरनजीत सिंह चन्नी, नवजोत सिंह सिद्धु, प्रियंका गांधी और हार्दिक पटेल ने तो उत्तर प्रदेश के अलावा भी बाकी चारों राज्यों में अपने स्टार प्रचारक होने की उपयोगिता सिद्ध की है। इतने अच्छे स्टार प्रचारक इससे पहले लगभग 25 -30 साल में कांग्रेस के पास नहीं थे। इससे कांग्रेस को एक बड़ा लाभ यह मिला है कि राहुल गांधी इसके पहले अकेले कांग्रेस पार्टी में लडाई लड़ रहे थे अब उनके उपर से भी बोझ काफी कम हुआ है और अब अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की मजबूती का काम देख सकते हैं। इस पांच राज्यों के परिणाम जो भी होगा लेकिन इतना तय है कि इस चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में जाने अनजाने, चाहे- अनचाहे क ई ऐसी खट्टी -मीठी घटनाऐं हुई हैं जो कांग्रेस को आगे बढने में सहायक होंगी। साथ ही आला कमान को भी यह संदेश है कि पहले पार्टी की मजबूती के लिए संगठन का मजबूत होना ज़रूरी है और संगठन के हर पाए को मजबूत करना जरूरी है । अगर पुराने अपने जमाने के तपे तपाए (अब अनुपयोगी) कांग्रेसी पार्टी न छोड़ते तो इतने अच्छे नये कार्यकर्ताओं और नये तेज तर्रार नेताओं की फौज मिलती। अगर हर चुनाव की तरह इस बार भी किसी दल से गठबंधन होता तो कांग्रेस का संगठन पुनः खड़ा नहीं हो पाता, अगर कन्हैया कुमार जैसे अच्छे वक्ता और स्टार प्रचारकों की नई पौध न आती तो शायद इतने अच्छे ढंग से अपनी बात कांग्रेस शायद न कह पाती न ही भाजपा प्रवक्ताओं और मीडिया ऐंकरों को अच्छे से अपनी बात कह पाती। चुनाव में जो भी प्रत्याशी चुनाव जीतेंगे या मजबूती से लड़ेंगे,शायद इन्हीं में से जो अपनी छाप छोड़ेंगे, प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में ही यहाँ के नेताओं को बढाएंगी (लोकल स्टार) ,इतना तय है दमदार चुनाव लड़ने वाले नेताओं को लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस अपने प्रत्याशीयों का चयन करेंगी इतना तय है ।और यह भी तय है कि ये पांचों राज्यों के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में लोगों के लिए अप्रत्याशित ही होंगे। और यूपी में भी पहले की अपेक्षा काफी अच्छा ही होना है। सम्पादकीय ,News 51.in

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