Saturday, July 27, 2024
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भगत सिंह का अंग्रेजी साम्राज्य के विरूद्ध संघर्ष -स्वतंत्रता संग्राम का एक गौरवशाली इतिहास

भगत सिंह

भगत सिंह और उनके साथियों का सन 1920 में अंग्रेज साम्राज्यवादियो सत्ता के विरुद्ध मोर्चा लेना , भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सदैव ही एक गौरवशाली अध्याय बना रहेगा | एक उच्च आदर्श के लिए अडिग निष्ठा और उस आदर्श को पूरा करने की राह में आई मुसीबतों की कहानी , देश वासियों को सदैव विदेशी आधिपत्य या जनता के किसी भी प्रकार के आर्थिक बंधन का नामो — निशाँ तक मिटा देने के लिए संघर्ष को प्रेरित करती रहेगी |

उनके बालपन में जनता के संघर्ष

जनता का गुसा ” रौलेक्ट एक्ट ” के खिलाफ था , जिसके द्वारा अंग्रेज सरकार ने यह कोशिश की थी कि प्रथम विश्व युद्ध के समय की असाधारण दमनकारी धाराओं को युद्ध के बाद भी जारी रखा जाए | सारे देश में उथल पुथल थी , प्रदर्शन हो रहे थे , जगह – जगह हडतालो की बाढ़ आ गयी थी | बम्बई की हडतालो में सूती मिलो के एक लाख से भी ज्यादा मजदूर काम छोड़कर सडको पर आ गये थे | सरकार जनता पर भीषण दमन का चक्र चला रही थी | अप्रैल 1919 में अमृतसर के जलियावाला बाग़ में जनरल डायर ने सभा में एकत्र हुए जन समूह पर गोलिया बरसाकर निहत्थे आदमियों , औरतो तथा बच्चो का कत्ल कर दिया , पर आन्दोलन रुका नही चलता रहा |

कांग्रेसी वालन्टियर के रूप में

भगत सिंह का जन्म लाहौर से कुछ मील दूर सिन्दा गाँव में किसानी करने वाले एक सिख परिवार में हुआ था | उनके पिता — सरदार किशन सिंह आर्य समाज के समाज सुधार आन्दोलन में शामिल होने के कारण प्रसिद्ध थे | भगत सिंह ने अपने स्कूली जीवन में ”रौलेक्ट एक्ट ” के खिलाफ होने वाले जनता के प्रदर्शनों के उथल पुथल भरे दिन देखे थे | अग्रेजी शासन के खिलाफ आम जनता की घृणा ने — जो अपने — आप फूट पड़ी थी और जिसका इजहार लाहौर में तीन मील लम्बे जलूस तथा उसके बाद होने वाली सप्ताह भर की शानदार हड़ताल में हुआ था — स्वाभाविक तौर पर इस बारह वर्ष के बालक के दिमाग पर एक गहरा असर डाला था | उसके कोमल मस्तिष्क पर अपनी गहरी छाप छोड़ी थी |
दो वर्ष बाद भगत सिंह ने असहयोग — आन्दोलन में एक कांग्रेसी वालंटियर की हैसियत से अपनी सक्रिय राजनैतिक शिक्षार्थी — जीवन की शुरुआत की | उन्होंने सिख गुरुद्वारे के प्रचार — आन्दोलन में भी सक्रिय भाग लिया | यह आन्दोलन गुरुद्वारे की विशाल भूमि की सम्पत्ति पर थोड़े से महन्तों का ही सम्पत्ति — अधिकार बनाये रखने के विरुद्ध , और उसे सारे सिख समुदाय की पंचायत के अधिकार में लाने के लिए था | सत्याग्रह सफल हुआ पर उसके बाद , सिखों के एक हिस्से में साम्प्रदायिकता बढने लगी , परन्तु भगत सिंह साम्प्रदायिकता से दूर रहे उन्होंने उसमे सहयोग नही दिया | इतनी कुछ सक्रियता के बाद भगत सिंह ने पंजाब नेशनल कालेज में नाम लिखाया , तब वह सितारे की तरह झिलमिलाते हुए क्रांतिकारी जीवन के द्वार पर ही थे |
यही पर वह सुखदेव और उन दूसरे साथियों से मिले जो आगे चलकर क्रांतिकारी कार्य में उनके साथी बने | इसी दौरान में उत्तर परदेश के क्रान्तिकारियो द्वारा

— संगठित ” हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी ” से सम्पर्क किया

” हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन ”


सितम्बर सन 1928 में इन क्रान्तिकारियो का काम एक महत्वपूर्ण मंजिल तक पहुच गया था जब मुख्यत: भगत सिंह , सुखदेव , विजय कुमार सिन्हा और शिव वर्मा के प्रयत्नों से उत्तर प्रदेश, पंजाब , राजपुताना , और बिहार के क्रांतिकारी दलों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में फिरोजशाह कोटला के पास कांफ्रेंस की दो दिन की बहस के बाद एक नया संगठन बनाया गया जिसका नाम ” दि हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रखा गया | उसकी केन्द्रीय समिति भी चुनी गयी और सभी प्रान्तों से सम्पर्क रखने का काम विजय कुमार सिन्हा और भगत सिंह को सौपा गया इस कांफ्रेंस में समाजवादी जनतांत्रिक राज्य की स्थापना के उद्देश्य का स्वीकृत होना बताता है कि रुसी क्रांति के फलस्वरूप भारत के अधिकाधिक तरुणों में समाजवादी विचारों का प्रसार होता जा रहा था | भगत सिंह कुछ समय के लिए ” कृति ” के दफ्तर में भी काम कर चुके थे | इस समाजवादी पत्र को पंजाब के कम्युनिस्ट नेता सरदार सोहन सिंह ” जोश ” ने शुरू किया था | भारत के साम्राज्यवाद —- विरोधी संघर्ष में मार्क्सवाद — लेलिनवाद के अस्त्र को काम में लाने का पूरा अर्थ तो इन क्रान्तिकारियो ने भी अभी तक नही समझा था लेकिन उनमे इस विश्वास ने जड़ जमा ली थी कि मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को सिर्फ समाजवाद ही खत्म कर सकता है |

उनके इरादे

क्या भगत सिंह और उनके साथी गोरी चमड़ी वाले अफसरों के खिलाफ थे जो अन्याय करते थे | साण्डर्स को गोली मारने के बाद बाटे हुए उनके पर्चे को देखने पर , कोई भी उन पर ऐसा लाक्षन नही लगा सकता था | असेम्बली भवन में बाटे हुए उनके पर्चे भी यही बताते है | उन पर्चो से मनुष्यों के रक्तपात के प्रति उनकी दिली नफरत और न्याय के लिए उनकी ललक की भी झलक मिलती है | अंग्रेज शासन का हित इसी में था कि जनता के सामने भगत सिंह के कार्यो को दूसरे ही रंगों में पेश किया जाए नही तो उनकी अमानुषिक दण्ड देने पर सारे देश की संवेदना और क्रोध का ज्वार उमड़ पड़ता इसीलिए उस परचे पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था |
हिन्दुस्तान टाइम्स के एक उत्साही सवाददाता ने किसी तरह विस्फोट के ठीक बाद ही उस परचे की एक प्रति हासिल कर ली और उसी दिन दोपहर को अखबार का एक विशेष संस्करण निकला जिसने उसके विषय की जानकारी को जनता की सम्पत्ति बना दिया |
पर्चा इस प्रकार था —–

” बधिरों को सुनाने के लिए एक भारी आवाज की आवश्यकता पड़ती है |
ऐसे ही एक अवसर पर , एक फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद — भाईयो — द्वारा कहे गये इन अमर शब्दों के साथ ” हम दृढतापूर्वक अपने इस कार्य को न्यायपूर्ण ठहराते है | ”
” हम यहाँ सुधारों ( माटेग्यु – चेम्सफोर्ड सुधारों ) के लागू होने के पिछले दस वर्षो के अपमानजनक इतिहास की कहानी को बिना दोहराए और भारत के माथे पर इस सदन — इस तथा कथित भारतीय प्रालियामेंट द्वारा मढ़े हुए अपमानो का भी बिना कोई जिक्र किये देख रहे है कि इस बार फिर , जबकि साइमन कमीशन से कुछ और सुधारों की आशा करने वाले लोग उन टुकडो के बटवारे के लिए ही एक दूसरे पर भौक रहे है ,, सरकार हमारे उपर पब्लिक सेफ्टी ( जन सुरक्षा ) और ट्रेडर्स डिस्प्यूट्स ( औध्योगिक विवाद ) जैसे दमनकारी बिलों (विधयको ) को थोप रही है | ‘ प्रेस सेडीशन बिल ‘ को उसने अगली बैठक के लिए रख छोड़ा है | खुले आम काम करने वाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारिया साफ़ बताती है कि हवा का रुख किस तरफ है |
इस अत्यंत ही उतेजनापूर्ण परिस्थितियों में पूरी स्जिदगी के साथ अपनी पूरी जिम्मेदारी महसूस करते हुए , ( हि. सो , रि ए ) ने अपनी सेना को यह विशेष कार्य करने का आदेश दिया है जिससे कि इस अपमानजनक नाटक पर परदा गिराया जा सके | विदेशी नौकरशाह शोषक मनमानी कर ले | लेकिन जनता की आँखों के सामने उनका असली रूप प्रकट होना चाहिए |
जनता के प्रतिनिधि अपने चुनाव — क्षेत्रो में वापिस लौट जाए और जनता को आगामी क्रान्ति के लिए तैयार करे | और सरकार भी यह समझ ले कि असहाय भारतीय जनता की ओर से ‘ पब्लिक सेफ्टी ‘ और ट्रेडर्स डिस्प्यूटस ‘ बिलों तथा लाला लाजपत राय की निर्मम हत्या का विरोध करते हुए हम उस पाठ पर जोर देना चाहते है जो इतिहास अक्सर दोहराया करता है |
यह स्वीकार करते हुए दुःख होता है कि हमे भी जो मनुष्य को जीवन को इतना पवित्र मानते है , जो एक ऐसे वैभवशाली भविष्य का सपना देखते है जब मनुष्य परम शान्ति और पूर्ण स्वतंत्रता भोगेगा , मनुष्य का रक्त बहाने पर विवश होना पड़ा है | लेकिन मनुष्य द्वारा होने वाले मनुष्य के शोषण को असम्भव बनाकर सभी के लिए स्वतंत्रता लाने वाली महान क्रान्ति की वेदी पर कुछ व्यक्तियों का बलिदान अवश्यभावी है |

इन्कलाब जिंदाबाद —————————————– हस्ताक्षर — बलराज ( कमांडर इन चीफ )

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