Wednesday, October 9, 2024
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बीते दिनों की कबीर की रेजीडेंसी यात्रा -भाग एक

बीते दिनों की यात्रा रेजीडेन्सी क्रमश: भाग एक

लखनऊ शहर रेजीडेन्सी के खंडहरो पर उधर से गुजरने वालो की निगाह पड़ जाना स्वाभाविक है |
अंग्रेजो को क्यो इतना प्यार था रेजीडेन्सी से आइये पड़ताल करते है , ब्रिटिश साम्राज्य के इतिहास में लखनऊ की रेजीडेन्सी का अति विशेष स्थान है | अंग्रेज इसे अपने गौरव के प्रतीक के रूप में देखते है | वे इसे कितना महत्व देते है , इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में इंग्लैण्ड का झंडा यूनियन जैक केवल दो स्थानों पर चौबीस घंटे फहराया जाता था — इंग्लैण्ड के शासक के आवास और लखनऊ की रेजीडेन्सी पर | इनके अतिरिक्त हर स्थान पर प्रात: झंडा चढाया जाता था और सांयकाल उतार लिया जाता था |
15 अगस्त 1947 को भारत की बागडोर भारतीयों को सौपने से पहले 13 अगस्त देर शाम अंग्रेज अधिकारियों का एक दल रेजीडेन्सी पहुचा जहां 90 वर्ष से 1857 से दिन – रात यूनियन जैक पहरा रहा था | उनकी उपस्थिति में रेजीडेन्सी के प्रभारी वारंट अफसर ने झंडे को नीचे उतारा | रात में झंडे का डंडा ( ध्वजदंड ) और उसका आधार तोड़ दिया गया और झंडा भारत के तत्कालीन कमांडर इन चीफ आकिन्लेक के पास भेज दिया गया |
उन दिनों भारत ब्रिटिश साम्राज्य का अंग था अत: ब्रिटिश मंत्रिमंडल में भारत सम्बन्धी विषयों के लिए एक मंत्री होता था जिसे सेक्रेटरी आफ स्टेट फार इंडिया कहते थे | 15 अगस्त 1947 को भारत के स्वतंत्र होने पर यह पड़ समाप्त हो गया | उस दिन अंतिम सेक्रेटरी आफ स्टेट फार इंडिया लिस्टोवेल के अर्ल (Earl of Listowel ) ब्रिटिश नरेश जार्ज षष्ठ से मिलने गये तो नरेश ने व्यक्तिगत आग्रह किया कि लखनऊ की रेजीडेन्सी से उतरा गया झंडा उन्हें भेट कर दिया जाए , जिसे वे विडसर राजभवन में अन्य एतिहासिक झंडो के साथ प्रदर्शित कर सके |

रेजीडेन्सी के पन्ने —

बेली गेट द्वार —
यह पूर्व की ओर खुलने वाला रेजीडेन्सी का मुख्य द्वार है | वर्ष 1807 में जब अवध के रेजिडेंट कर्नल जान वेळी अवध के रेजिडेंट बनकर लखनऊ आये , तब रेजीडेन्सी के इस मुख्यद्वार का निर्माण नवाब सआदत अली खा ने उनके स्वागत में निर्माण कराया था उसका नाम वेळी गेट रखा गया | 1857 की क्रान्ति के दौरान 2 जुलाई को भारतीय क्रांतिवीरो ने इसी मुख्य गेट पर लेफ्टिनेंट ग्राहम को मार गिराया था | 20 अगस्त 1857 को पुन: इस गेट पर आक्रमण करके उसमे आग लगा दी गयी थी |28 सितम्बर 1857 को लेफ्टिनेंट एलेक्जेंडर इसी गेट पर क्रान्तिकारियो की गोली से मारे गये थे | बेली गेट पर गोंडा से आये डा बटर्म मारे गये थे |
ट्रेजरी ( कोषागार )
ट्रेजरी कोषागार भवन बेली गेट के नजदीक उत्तर की ओर स्थित है | आरम्भ में कोषागार छपर वाले कच्चे कमरे में था | एक दिन आग लगने के कारण वह नष्ट हो गया उसमे जमा खजाना बड़ी मुश्किल से बचाया जा सका | इसके स्थान पर 1851 में 16857 रूपये की लागत से पक्का भवन बनवाया गया | इसके मुख्य द्वार के सामने गोल खम्भों पर टिका पोर्टिको है | कोषागार का पूर्वी भाग तीन दरो का है | पूर्व में तीन छोटी खिडकिया सम्भवत:कर्मचारियों को वेतन वितरित करने के लिए बनाई गयी थी |

डा फेयरर हाउस – डा फेयरर की नियुक्ति रेजीडेन्सी में चिकित्सक के रूप में की गयी थी |
बेक्वेट हाल — रेजीडेन्सी परिसर में स्थित बेक्वेट हाल एक भव्य इमारत में निर्मित किया गया था | यह दो मंजली बनाये गयी थी बेशकीमती साजो सामानों से यह हल सुसज्जित किये गये थे | किसी खास मेहमान के आने पर लखनऊ के लजीज खाने प्रोसे जाते थे | लखनऊ के तत्कालीन नवाब सआदत अली खा नवाब गाजीउद्दीन हैदर तथा नवाब नसीरुद्दीन हैदर अपने कार्यकाल में अक्सर अंग्रेजी अफसरों के साथ खाने का लुफ्त उठाने यहाँ आते थे | उल्लेखनीय है कि 6 जुलाई 1857 को इसी इमारत के एक उपरी कक्ष में रह रहे पादरी पोलहेम्पटन को गोली लगी थी जिनकी घायल अवस्था में ही हैजा होने के कारण मौत हो गयी थी | इस इमारत के उत्तरी पश्चिमी भाग की सुरक्षा में 48 वी व 71 वी इनफैकटरी को कैप्टन स्ट्रेन्जेवेस्ट तथा कर्नल पामर को क्रमश: तैनात किया गया था |

ओमानी हाउस
ओमानी हाउस एक दो मंजिला भवन था | इसमें अवध के तत्कालीन न्याय आयुक्त ( जुडीशियली कमिश्नर ) मिस्टर ओमानी निवास करते थे | ओमानी साहब की मौत 5 जुलाई 1857 को गोली लगने से हुई थी |
डुपरेट हाउस —
ठग जेल — यह एक पतला लम्बा बैरिक्नुमा भवन था जिसमे पक्तिबद्ध चार बराबर के कमरे थे तथा बड़े फाटक के दरवाजे लगे थे |
ग्रान्ट्सबेशन — रेजीडेन्सी अहाते में यह एक ऊँची चौकोर दुर्ग के आकर की इमारत थी जिसकी छत समतल थी | यह किसी देशी नागरिक की सम्पत्ति थी किन्तु इस पर कब्जा गबिन साहबने जमा लिया था | 1857 के क्रान्ति काल में रेजीडेन्सी के रक्षार्थ इसकी छत पर एक रोधक दीवार ( पेरापेट ) बना दिया गया था | इस भवन का नाम लेफ्टिनेंट ग्रांट के नाम पर पड़ गया था जो बाम्बे आर्मी के एक सेना के अधिकारी थे तथा इस चौकी पर रहकर रेजीडेन्सी की रक्षा कर रहे थे पोस्ट आफिस
शांतिकाल में रेजीडेन्सी का डाकघर अंग्रेजो की डाक लाने ले जाने का कार्य करता था | 1857 के संग्राम के दौरान डाकघर में मिलट्री इंजीनियर्स व तोपखाने का मुख्यालय स्थापित कर इसे महत्वपूर्ण सैनिक चौकी में परिवर्तित कर दिया गया था | संस्मरण – सुनीलकुमार दत्त उर्फ कबीर

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