सामाजिक शिक्षा ज्ञान को काटकर बढाई जा रही ——
वर्तमान शिक्षा सामाजिक जनतंत्र की विरोधी है .
( समाज में हर तरह के अन्याय ,अत्याचार ,अ बराबरी तथा भेद -भाव व अलगाव …आदि को जानने समझने और उसे हटाने मिटाने का प्रयास करना ही सामाजिक जनतंत्र का विषय हैं |ब्रिटिश दासता के काल में स्वतन्त्रता -आन्दोलन के साथ समाज में व्याप्त सदियों पुरानी अ बराबरी ,अन्याय अत्याचार ,के विरुद्ध जातीय ऊँच-नीच और छुआछुत के विरुद्ध धार्मिक -साम्प्रदायिक व इलाकाई असमानता व भेद -भाव आदि के विरुद्ध भी सुधार व संघर्ष चलते रहे |यह बात भी सच हैं कि वे आवश्यकता से कंही कम चले |आधे -अधूरे चले |..वर्तमान समय में सामाजिक जनतंत्र के लिए ,अर्थात समाज में हर तरह की सामाजिक बराबरी के लिए ऐसे सुधार संघर्ष की आवश्यकता आज भी बनी हुई हैं |इसकी आवश्यकता न केवल पुराने सामाजिक अ बराबरी को दूर करने लिए बनी हुई हैं ,अपितु वर्तमान समय में बढ़ रहे आर्थिक सामाजिक सांस्कृतिक अन्य र्भेदो को हटाने -मिटाने के लिए तथा उन पर आधारित राजनीति सामाजिक विवादों के समाधान के लिए खड़ी हो गयी हैं | सामाजिक शिक्षा ज्ञान से काट कर बढ़ाई जा रही वर्तमान शिक्षा सामाजिक जनतंत्र की विरोधी हैं |शिक्षित बनना वर्तमान युग का युग बोध हैं |अशिक्षित रहे माँ -बाप भी अपने बच्चो को यथा -सम्भव शिक्षित बनाने के प्रयास में लगे हुए हैं |सभी को साक्षर शिक्षित बनाने का कुछ असली तो कुछ दिखावटी प्रयास सत्ता सरकारों द्वारा भी किया जा रहा है |फिर पिछले 20 -25 सालो में प्रारंभ से ही अंग्रेजी शिक्षा ,अंग्रेजी माध्यम द्वारा शिक्षा देने पाने का प्रचार प्रसार बढ़ता जा रहा हैं |इसी के साथ उच्च वेतन ,सुख -सुविधा के लिए उच्च तकनीकी व प्रबंधकीय शिक्षा का भी प्रचार -प्रसार बढ़ता जा रहा हैं |…
लेकिन दिक्कत यह है की आधुनिक शिक्षा का यह प्रचार _प्रसार राष्ट्र की मातृ – भाषाओं को उपेक्षित करते हुए आगे बढ़ रहा है |राष्ट्र व समाज के व्यापक जनसाधारण की ,स्थितियों ,समस्याओं ,समाधानों की उपेक्षा करते हुए या कहिये इस सबको नजर अंदाज करते हुए आगे बढ़ रहा हैं |.वर्तमान शिक्षा की यह स्थिति निश्चय ही गम्भीर चिंता व विचार का विषय हैं |
इसी के साथ यह भी चिंता व विचार का विषय है कि उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुकी युवा पीढ़ी उच्च शिक्षा के किसी विशिष्ठ क्षेत्र की शिक्षा तो ले रही हैं ,पर व्यापक राष्ट्रीय व सामाजिक संदर्भो की शिक्षा के संदर्भो में वह अनपढ़ किसानो ,मजदूरों जैसी ही अशिक्षित अज्ञानी बनी हुई है |बल्कि कई मायनो में तो अनपढ़ ,अज्ञानी जनसाधारण के पास किताबी शिक्षा ज्ञान के आभाव के वावजूद अपनी सीमाओं में व्यावहारिक सामाजिक शिक्षा ज्ञान कंही ज्यादा रहता फिर उनके सामाजिक शिक्षा ,ज्ञान के प्रति उच्च शिक्षित लोगो कि तरह उपेक्षा का भावो भी नही रहता |बल्कि सुनने जानने व ग्रहण करने कि अपेक्षा व जिज्ञासा का भाव विद्यमान रहता हैं |
यह संयोग नही हैं कि कबीर दास ने पढ़ाई-लिखाई किये बिना अपने सामाजिक शिक्षा ज्ञान से समाज की कुरीतियों पर ,कुप्रथाओ पर कठोरता से प्रहार किया |यही बात पुरातन व मध्य युग के बहुतेरे अशिक्षित या कम शिक्षित पर वास्तविकता ज्ञानियों के बारे में कंही व देखी जा सकती हैं |
आधुनिक शिक्षा के रूप में आधुनिक ज्ञान -विज्ञानं कि विभिन्न शाखाओ का तो विकास विस्तार होता रहा हैं |पर समग्र व सामाजिक शिक्षा ज्ञान के रूप में वर्तमान युग के सामाजिक दायित्व बोध के रूप में उसका विस्तार कंही ज्यादा पीछे रह गया हैं |
ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज के दौरान मैकाले की शिक्षा नीति की आलोचना गलत नही हैं कि उसका प्रमुख लक्ष्य कम्पनी के लिए अंग्रेज कौम की तरह इस देश के स्वामी -भक्त सेवको की फौज खड़ी करनी थी |कम्पनी के शासन -प्रशासन ,जेल -अदालत ,पुलिस -फौज खड़ी करनी थी |इसे मैकाले ने स्पष्ट कहा भी है |कम्पनी राज के तहत आयी इस आधुनिक शिक्षा ने देशी लोगो को शिक्षित -प्रशिक्षित कर इस देश के काले साहबो के रूप में खड़ा भी किया |लेकिन पश्चिम के इस शिक्षा से आधुनिक ,सामाजिक ,राजनितिक शिक्षा को राष्ट्र -स्वतन्त्रता की शिक्षा से ग्रहण करने वाला देश -वासियों का दूसरा हिस्सा भी खड़ा हुआ |इस हिस्से ने पद -प्रतिष्ठाओ ,सुख -सुविधाओ को ठुकराकर देश में व्याप्त संकीर्ण पुरातन पंथी कुप्रथाओ के विरुद्ध संघर्ष को आगे बढ़ाया |राष्ट्रवादी विचारो आंदोलनों व संघर्ष को आधुनिक शिक्षा के साथ बढ़ावा दिया |आधुनिक युग के इस ज्ञान ने राजाराम मोहन राय जैसे देश के नवजागरण के अग्रदूतो के साथ तिलक ,सुभाष जैसे प्रचंड राष्ट्रवादी व भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों कई पीढियों को खड़ा किया |…………….
इस राष्ट्र व समाज के इन महान नेतृत्वकारी शक्तियों ने पश्चिम से आयी शिक्षा को राष्ट्र -हित ,समाज हित ,जनहित के ज्ञान में ढाल दिया |ब्रीटिश शिक्षा नीति कई जगह राष्ट्रीय शिक्षा आवश्यकता आन्दोलन का विषय बना दिया | आधुनिक शिक्षा ज्ञान को परिवर्तन कारी व क्रांतकारी व्यवहार में बदल दिया |इसके विपरीत इसी अंग्रेजी व आधुनिक शिक्षा को ग्रहण कर ब्रीटिश कम्पनी और ब्रीटिश राज के सेवक बने उच्च शिक्षित हिन्दुस्तानी समुदाय व्यापक राष्ट्रीय व सामाजिक हितो के सन्दर्भ में जान -बुझ कर अज्ञानी बना रहा | ब्रीटिश हुकुमत का तथा देश कई परतन्त्रता का भी घोर हिमायती बना रहा है |वर्तमान समय में क्या हो रहा है ?इस दौर में शिक्षा देने -पाने का प्रमुख उद्देश्य ही पढ़ -लिख कर सुख ,सुविधा ,पद प्रतिष्ठा हासिल करना हो गया हैं |राष्ट्र व समाज के हितो वाले वैचारिक व व्यहारिक ज्ञान को प्राप्त करना उसका उद्देश्य नही रह गया हैं |उसका 20 -25 साल पहले का जनहित में होता रहा वैचारिक विकास भी अवरुद्ध सा हो गया हैं |
इसके फलस्वरूप वर्तमान दौर में शिक्षित लोगो की नई पीढ़ी केवल सेवक बनने की शिक्षा प्राप्त कर अपने आप पे गर्व कर रही हैं |समाज के शिक्षित समुदाय का व्यापक हिस्सा अपने पे गर्व कर रहा है |कम या ज्यादा शिक्षित अभिभावकों से लेकर समूचा शिक्षित समाज अपने बच्चो को ,अपने आप को बेहतर सेवक बनाने पर तुला हुआ है |और वह भी राष्ट्र व समाज कई इस्थितियो समस्याओ ,समाधानों ,को उपेक्षित करके दर किनार करके |सेवक बनने के इस अंधी दौड़ में शिक्षित समुदाय आँख पर पट्टी बाँध कर दौड़ लगा रहा है |वह यह भी देखने समझने का गम्भीर प्रयास नही कर रहा है कि वर्तमान दौर की बाजारवादी होड़ में बहुत से शिक्षित व प्रतिभावान लोगो के लिए अवसरों में कमी आना अनिवार्य है |महंगाई ,बेकारी आदि के बढ़ते संकटो में एक अच्छे सेवक के रूप में भी खड़े होने की स्थितियो में भी भारी टूटन व संकट का आना अनिवार्य है |
निजी सुख -सुविधाओ ,पद -प्रतिष्ठा के लिए सेवक बनने -बनाने की इस दौड़ में ही जीवन खपा देने वाले शिक्षित समुदाय को स्वयं से यह सवाल जरुर करना चाहिए कि मैकाले की नीति की उसके द्वारा आलोचना क्या ठीक हैं ?क्या वर्तमान दौर में बढ़ रही प्रबंधकीय व अन्य विशेषीकृत शिक्षाए एकदम प्रत्यक्ष रूप में कम्पनी सेवक की शिक्षा के रूप में नही बढ़ रही है ?
ब्रीटिश कम्पनियों की तरह देश विदेश की धनाढ्य और पूजीवादी व वित्तीय कम्पनिया येही चाहती है कि उन्हें उच्च शिक्षित सेवक मिले |रास्ट्र-हित ,जनहित को उपेक्षित करने वाला तथा उसे बलि चढाने वाला फर्माबरदार सेवक मिले |
ब्रीटिश राज की तरह देश की वर्तमान राज -व्यवस्था भी कम्पनियों के इसी चाहत व मांग के अनुसार शिक्षा को बढ़ावा दे रही है |देश में उच्च शिक्षित पर उतने ही अज्ञानी लोगो की फौज खड़ी कर रही है |पर व्यापक जनसाधारण समाज के लिए व्यापक ,राष्ट्रीय व सामाजिक हितो के लिए यह आवश्यक है की वह निजी सुख -सुविधा ,पद -प्रतिष्ठा के लोभ -लालच खड़े करने वाली ओपचारिक शिक्षा की जगह वह राष्ट्र व समाज की स्थितियो ,समस्याओ ,समाधानों को आगे बढ़ाने वाली शिक्षा को विकसित करने व बढ़ाने के प्रयास में जुटे |सामाजिक जनतंत्र के लिए ओपचारिक शिक्षा की जगह इस अनोपचारिक पर वास्तविक सामाजिक ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है ,अनिवार्य हैं |
सुनील दत्ता — स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक