प्रायः ऐसी समस्याओं से कामकाजी महिलाओं को अक्सर दो चार होना पड़ता है । ऐसा पुरूष सहकर्मी या फिर पुरूष अधिकारियों द्वारा महिला कर्मियों के प्रति ही होता है इन्ही सबको ध्यान में रखकर9,दिसम्बर 2013 में रोकथाम, निषेध और निवारण अधिनियम प्रभाव में आया था ।यह कानून कार्यस्थलों पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को अवैध करार देता है। महिलाओं के उत्पीड़न के क ई प्रकार होते हैं जो -शारीरिक,मानसिक,मौखिक,आर्थिक,यौन,सामाजिक ,सांस्कृतिक और पारिवारिक उत्पीड़न। जिस महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ है वह शिकायत कर सकती है इसके लिये सभी कार्यालयों में एक कमेटी बनाने का निर्देश भी दिया जा चुका है जो ऐसे मामलों को देखेगा। लेकिन ऐसी कमेटी सभी कार्यालयों में चाहे वह सरकारी अर्ध सरकारी या प्राइवेट कार्यालयों में बनाया जा चुका है ऐसा नहीं कहा जा सकता। इसके अलावा जिन कार्यालयों में कमेटी गठित है क्या वह प्रभावी ढंग से कार्य कर रहा है या नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता और अगर विभाग के उच्चाधिकारी पर ऐसे संगीन आरोप लगते हैं तो यह कमेटी क्या उसकी जांच में अपने अधिकारी के दबाब में रहकर उसे क्लीन चिट नहीं देगा और आरोप लगाने वाली महिला कर्मियों को ही गलत आरोप लगाने का दोष नहीं देगा, इसकी क्या। इससे ज्यादा दुखद स्थिति तब होती है जब आरोपित अधिकारी अपने अधीनस्थ से बदले की भावना से ग्रसित हो कार्यवाही करने की धमकी देता है या कार्यवाही करता है और यदि चतुर्थ श्रेणी की महिला कर्मियों की बात आती है तो उनको नियम कानून की ज्यादा जानकारी न होने से उनकी स्थिति थोड़ी और विकट होती है फिर भी ऐसे में घबराने की उन महिला कर्मियों को जरूरत नहीं है ऐसी स्थिति यदि आती है तो पहले उस अधिकारी के उपर के अधिकारी के पास मौखिक शिकायत करें और फिर भी बात न बने तो अपने कार्यालय के सभी सहयोगी कर्मचारियों को इन बातों को अवगत करायें। आसपास अधिवक्ताओं का बार एसोशिएसन हो तो उनके अध्यक्ष को मौखिक जानकारी दें। मुझे पूर्ण विश्वास है कि एसोशिएसन तत्काल ऐसे अमर्यादित अधिकारियों /अधिकारी पर दबाव डाल कर उन्हें मर्यादा में रहने के लिए मजबूर कर देगा। अधिकारी भी अधिवक्ताओं की ताकत से वाकिफ होते हैं। इसलिए सबसे पहले तो जिन विभागों में ऐसी कमेटी अभी तक नहीं बनी है, तत्काल बनाया जाना चाहिए ।और जो ऐसी कमेटी जो प्रभावी कार्यवाही करने में सक्षम हो। हमारे यूपी में जब से योगी सरकार चल रही है ऐसे मामलों में शासन बेहद सख्त है और कार्यस्थलों पर अधिकारी/ अधीनस्थ कर्मियों द्वारा ऐसे मामलों में काफी कमी आई है ।बस मामले की जानकारी उचित माध्यम से शासन/प्रशासन स्तर तक पहुँचने की या पहुंचाने की बात होती है।