ऐसा लगता है कि जैसे एग्जिट पोल्स, एग्जिट पोल्स नहीं रह गये हैं, चैनलों के पैसा कमाने का बढियां जरिया, अपने चैनल्स की टीआरपी बढाने का अच्छा जरिया और दो तीन दिन एग्जिट पोल्स पर बहस करने और चटखारे लेकर समय पास करने तथा मनोरंजन का जरिया बन गया है। कम से कम 10-12 टीवी चैनलों पर अलग- अलग एग्जिट पोल्स, सोशल मीडिया पर भी सैकड़ों एग्जिट पोल्स, सभी के अलग- अलग पार्टियों को जीत का दावा दिखाते ये चैनल्स न केवल जनता को भ्रमित करने का काम करते हैं बल्कि धीरे -धीरे एग्जिट पोल्स की विश्वसनीयता भी समाप्त करते जा रहे हैं। मात्र जनता का मनोरंअजन करना ही शायद बन गया है। इसे देख कर विजेता पार्टी के समर्थक खुशी से यूं झूमने लगता है मानो उसकी पार्टी जीत ही गयी वहीं हारी हुई पार्टियों के समर्थक यूं दुखी हो जाते हैं मानों उनकी पार्टी की सचमुच हार ही चुकी है। अब मेरे विचार से एग्जिट पोल्स ऐसे ही हैं जैसे सही हो गया तो तीर नहीं तो तुक्का। और पिछले पांच -छै चुनाव के एग्जिट पोल्स हर प्रदेश के गलत साबित हुए हैं पिछले लोकसभा चुनाव में ही एग्जिट पोल्स सही साबित हुए थे उसके बाद से चाहें हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, गुजरात,बंगाल आदि के चुनाव के एग्जिट पोल्स लगातार गलत साबित होते रहे हैं।
एग्जिट पोल -मनोरंजन का जरिया, टीआरपी का खेल या समय पास करने का जरिया, अलग- अलग चैनलों सोशल मीडिया पर अलग- अलग एग्जिट पोल्स
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