Saturday, July 27, 2024
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आजमगढ का चमकदार सितारा -कबीर (सुनील दत्ता )

आजमगढ के कबीर नाम से अपनी पहचान बनाने वाले देश के प्रख्यात फोटो पत्रकार श्री सुनील कुमार दत्ता न तो किसी परिचय के मोहताज है और न ही किसी सम्मान के ।यह अलग बात है कि आजमगढ का हर व्यक्ति अपने चहेते फकीरी स्वभाव वाले कबीर को बड़ा से बड़ा सम्मान मिले।ऐसा होने पर आजमगढ के लोग अपने को गौरवान्वित महसूस करते है ।अभी हाल ही मे नोएडा के होटल रेडिसीन ब्लू मे भड़ास मीडिया के दमदार दस साल पूरा होने पर आयोजित कार्यक्रम मे कमर वाहिद नकवी, रामबहादुर राय, गुरदीप सिंह सपपल,राजीव नयन बहुगुणा के आजमगढ के कबीर सुनील कुमार दत्ता को “भड़ास सीनियर फोटो जर्नलिस्ट सम्मान “प्रदान किया गया ।वह भीओमथानवी,अनिरूध्द बहल,समर अनारया, क्षमा शर्मा, दया नन्द पाण्डेय जी की मौजूदगी मे यह सम्मान निश्चित रूप से कबीर के जीवन का बहुत बड़ा सम्मान है ।किसी भी मीडिया कर्मी के लिए सम्मान की अहमियत तब और बढ जाती है जब यह सम्मान खबर नवीसो पर नजर रखने वाले न्यूज पोर्टल भड़ास -4 मीडिया के निर्भीक, निडर, फककड मस्त मौला हरदिल अजीज गाजीपुर के शेर कहे जाने वाले सम्पादक कामरेड यशवंत सिंह द्वारा दिया जाए ।कबीर को इसके पहले भी कई पुरस्कार मिल चुके है । समानांतर नाट्य संध्या द्वारा 1982मे, 1990 मे गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिदेशक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड 1994 मे गवर्नर एवार्ड ततकालीन महामहिम राज्यपाल मोतीलाल बोरा दवारा”राहुल स्मृति चिह्न ” , 1994 मे राहुल जनपीठ द्वारा “राहुल एवार्ड ” ,अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 मे, उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसिएशन दवारा” बलदेव एवार्ड ” , 1996 मे स्वामी विवेकानंद संस्थान द्वारा “स्वामी विवेकानंद एवार्ड “, 1998 मे संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र मे एवार्ड और सम्मान, 1999 मे किसान मेला गोरखपुर मे बेस्ट फोटो कवरेज के लिए “चौधरी चरण सिंह एवार्ड “, वर्ष 2002, 2003, 2005 मे आजमगढ महोत्सव मे एवार्ड, 2012-2013 सूत्रधार संस्था द्वारा “सम्मान चिन्ह “, 2013 मे बलिया मे संकल्प संस्था द्वारा “सम्मान चिन्ह “प्रदान किया गया ।कबीर को बाल साहित्य सम्मेलन देवभूमि खटीमा(उत्तराखंड ) मे 19अक्टूबर 1994 को” ब्लाग रत्न ” से सम्मानित किया गया ।इसके अलावा” राहुल जन्म पीठ मान चिन्ह ” प्रदान किया गया । दक्षिण मध्य क्षेत्र के सांस्कृतिक केंद्र नागपुर के तत्वावधान मे आयोजित आठवे अखिल भारतीय कला प्रतियोगिता मे यूपी से कबीर का चयन किया गया था ।
छायाकन का छबीला चितेरा है कबीर =
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जिद है बच्चे की, उसे जलती जमी पे छोड़ दो
चुटकियो मे काम कर वह,तितलिया ले आयेगा ।
देश के जाने माने प्रख्यात शायर मधुर नजमी ने यह लाइने कभी हमारे हरदिल अजीज कबीर के लिए कही थी ।उस कबीर के लिए जो कबीर पेड की जडो और कोतडो मे हमेशा जिन्दा रहेगा ।छायाकन के उस छबीले चितेरे सुनील कुमार दत्ता उर्फ कबीर पर सिर्फ आजमगढ को ही नही बल्कि सम्पूर्ण देश को नाज है जिसने पेड़ो की जडो और कोतडो की भाषा को समझा और जाना कि उनमे भी जीवन है ।अपने तरीके का यह पहला व अनूठा शोध रहा जिसे फोटोग्राफी के माध्यम से कबीर ने पूरा किया ।और इन जडो और कोतडो की फोटोग्राफी की प्रदर्शनी भी कयी जिलो मे लगायी जिसे प्रबुद्ध दर्शको ने काफी सराहा । आजमगढ मे 1 दिसंबर 1959 को जन्मे सुनील कुमार दत्ता उर्फ कबीर आज देश के बड़े फोटोग्राफरो और साहित्यकारो के बीच स्वयम एक बड़ी हस्ती है ।पिता स्वर्गीय राजेंद्र नाथ दत्ता रेलवे मे स्टेशन मास्टर होने के साथ ही होम्योपैथिक दवाओ के अच्छे जानकार थे तथा सामाजिक कार्यो मे भी बढचढ कर भाग लेते थे।पांच भाईयो मे तीसरे नंबर पर रहे कबीर अपने पिता के पदचिन्हो पर चलते हुए समाज मे अपनी अमिट छाप छोडी है।फोटोग्राफी मे लगाव के चलते ही मात्र आठ साल की उम्र मे ही कैमरा उनके नन्हे हाथो मे खेलने लगा था ।फोटोग्राफी के साथ ही अपनी शिक्षा ग्रहण करते हुए समाज शास्त्र से एम ए करते हुए मास्टर आफ जर्नलिज्म किया ।इन्होंने आजमगढ के ही श्री रमेश चंद्र श्रीवास्तवके सानिध्य मे रहकर फोटोग्राफी की बारीकिया सीखी।फोटोग्राफी मे अपना आदर्श किसी को नही माना।वह स्वयम दूसरो के लिए आईकान बनना चाहते थे । 1984 मे आजमगढ के रैदोपुर मे उन्होने “छायाकन ” के नाम से खुद का स्टूडियो स्थापित किया ।इसी के साथ ही उनके कदम पत्रकारिता की ओर भी मुड गए ।आजमगढ के ही तत्समय जाने माने पत्रकार श्री जयशंकर जो “रविवार ” पत्रिका मे लिखते थे तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री कल्पनाथ राय द्वारा अवैध ढंग से कब्जाये गए बगले की रिपोर्टिंग के लिए आजमगढ आये थे तो फोटोग्राफी कबीर से ही करायी ।जो उन्हे इतनी पसन्द आयी कि उन्होंने कबीर को अपने साथ जोड लिया ।यही से फोटोग्राफी पत्रकारिता का सफर भी शुरू हो गया ।इन्हे आजमगढ की फोटोग्राफी पत्रकारिता का जनक भी कहा जाता है ।आजमगढ के अलावा दूसरे शहरो से छपने वाले लगभग सभी अखबारो की फोटोग्राफी कबीर करते रहे किन्तु एक स्थान पर बंध कर नौकरी करना इनके स्वभाव के विपरीत था ।सो नौकरी छोड़कर अपनी स्वतन्त्र फोटोग्राफी करने लगे ।अखबारो की ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर कलर फोटोग्राफी तक के युग मे भी वह इसे और अपनी शर्तो के साथ ही काम करते रहे ।सीपीआई से जुडाव होने के कारण सीपीआई के ब्लाग लोक संघर्ष पर लिखना शुरू किया ।बाद मे हस्तक्षेप व नेशनल न्यूज एण्ड ब्यूज ब्लाग पर लिखने लगे ।
आजमगढ ऐसा जिला है जहा भूख का भूगोल तथा विद्रोह का इतिहास पढा जाता है ।भूख के इस भूगोल और विद्रोह के इतिहास को कबीर ने अपनी फोटोग्राफी के माध्यम से बखूबी उकेरा ।आजमगढ, म ऊ और बलिया के कोठो पर जाकर नगरवधुओ पर स्टोरी लिखी और उनके दर्द को फोटोग्राफी के माध्यम से बखूबी दर्शाया ।उनकी फोटोग्राफी मे हमेशा आम आदमी का दर्द दिखा ।कबीर ने एक बार जगदीश चन्द्र बसु को पढा था कि पेड़ो मे जीवन है वह बोलते और समझते है।इसी से प्रेरणा लेकर कबीर ने प्रकृति पर अपना कैमरा चलाया और पेड़ो की जडो और कोतडो पर शोध परक फोटोग्राफी की ।अपने कैमरे मे कैद फोटो ग्राफस की कयी शहरो मे प्रदर्शनी लगाई जिसे सभी ने सराहा ।आजमगढ मे नेहरू हाल मे पहले फिर बीएचयू के आर्ट गैलरी मे अपने फोटोग्राफ्स की प्रदर्शनी लगाई । 1990 मे बीएचयू के तत्कालीन डीन आफ विजुअल आर्ट्स एपी गजजर ने प्रदर्शनी का उद्घाटन किया ।उस समय गैलरी आर्ट लगाने वाले प्रथम भारतीय चित्रकार थे ।आजमगढ मे जन्मे दुनिया के जाने माने आर्टिस्ट फ्रैंक वेसली के आजमगढ 1994 मे आगमन पर प्रख्यात विद्वान शान्ति स्वरूप जी के चंद्रभवन पर प्रदर्शनी लगाई और सराहना पाई।प्रख्यात साहित्य कार श्री अमरनाथ तिवारी ने एक बार कहा था कि दत्ता मे प्रकृति प्रेम की तुलना अंग्रेज प्रकृति प्रेमी कवि वटस वर्थ से की जा सकती है।
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