INDIA के 28 दलों के गठबंधन के कांग्रेस के सहयोगियों में अधिकांश क्षेत्रीय दल ऐसे हैं जोपहले कांग्रेस के वोटर थे उन्ही को किन्ही कारणों से नाराजगी के बाद क्षेत्रीय दलों की तरफ चले गये थे और उन्ही वोटरों की बदौलत अपनी राजनीति कर रहे हैं और उन्हे हमेशा ये भय।सताता रहता है कि कि यदि कांग्रेस उनके क्षेत्र में पुनः मजबूत होगी तो उनके वोटर कहीं कांग्रेस के पास वापस न चले जायं इसी कारण ऐसे दल जो अपने को भाजपा के साथ दिखना तो नहीं चाहते हैं लेकिन कांग्रेस को भी अपने क्षेत्र में मजबूत होते नहीं देखना चाहते ।अगर ये दल INDIA का हिस्सा बन तो गये हैं लेकिन उनके मन में एक ओर यह चाहत है कि जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी लडा़ई है वहां कांग्रेस से गठबंधन कर कुछ सीटें पा जायं और अगर दो तीनसीटें जीत जायं तो बहुत अच्छा है वही ऐसे राज्य जहां लोकसभा चुनाव से पहले विधानसभा चुनाव होने हैं ( मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ, राजस्थान, तेलंगाना और मजोरम ) इन पांचों राज्यों में कांग्रेस और भाजपा के अलावा कोई दल नहीं है इनमें सबसे महत्वकांक्षी दल आम आदमी पार्टी है जो नयाभी है और उसके सौभाग्य से दिल्ली के बाद पंजाब में ( कांग्रेसी नेताओं की आपसी कलह और नवजोत सिद्धू जैसे कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के अपनी डाल पर बैठ अपने उस डाल को और अपने ही पेड़ को काटने जैसा बेवकूफाना बयानबाजी की वजह से) और अकाली दल और भाजपा के कमजोर होने का पंजाब में मिली बम्पर सफलता से उत्साहित और केजरीवाल के अतिमहत्वाकांक्षा ने भी अन्य राज्यों में जहां विधानसभा चुनाव होने हैं अपने प्रत्याशी खडे़ कर रहा है वही पुराना राग “सब कुछ माफी वाला” सभी राज्यों में अपने भाषणों में जिक्र कर रहे हैं लेकिन उसकी पंजाब और दिल्ली में बढते भ्रष्टाचार और पंजाब में उग्रवादियों के प्रति नरमी साथ ही अब मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृतव में कांग्रेस के मजबूत होते कदम ने आम आदमी पार्टी का बढाव रोक दिया है न तो अब लोगों में आम आदमी पार्टी में पहले जैसी उत्सुकता रह गयी है और न ही कांग्रेस सात – आठ साल पहले वाली कांग्रेस ही रह गयी है दूसरे तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी भी महत्वकांक्षी तो हैं लेकिन उनकी पश्चिम बंगाल में अपनी सरकार को बचाने और बनाए रहने में ही चिंतित हैं तीसरे नीतिश और शरद पवार हैं साथ ही अखिलेश यादव भी कांग्रेस कोमजबूत होते खासकर यूपी में नहीं देखना चाहते हैं फिर यही बात मायावती(INDI A के बाहर) पर भी लागू होती है। लेकिन यूपी में कमजोर होती बसपा की मजबूत होना चाहती है अब सही मायने।में कांग्रेस के सच्चे साथी जो इंडिया में हैं वे हैं वामदल, डीएम के, उद्धव ठाकरे, लालू प्रसाद यादव, या इक्का दुक्का और दल हैं और मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनियां गांधी इन सारी बातों को देख और समझ रही हैं इसीलिए मल्लिकार्जुन खड़गे बेहद चालांकी से अपनी चाल चल रहे हैं जिनमें सबसे पहला दांव तो उन्होने भी चल दिया है कि जिन 5 राज्यों में लोकसभा के पहले विधान सभा चुनाव होने हैंउन सभी में कांग्रेस की सम्भावनाओं को और अपने द्वारा कराये गये सर्वे और अन्य एजेंस्वीयों में कांग्रेस की अच्छी स्थिति को ध्यान में रखकर विधानसभा चुनावों में इंडिया के अन्य घटकों के साथ चुनाव न लड़ने और।राज्यों में गठबंधन पर उत्सुकता दिखाने की जल्दबाजी न करना, दूसरे चुनाव वाले राज्यों में घटक दलों के साथ संयुक्त रैली करने की बात मध्यप्रदेश में कमलनाथ और हरियाणा में हुड्डा के आग्रह को मानते हुए वहां संयुक्त रैली से कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मध्य प्रदेश और और हरियाणा में संयुक्त रैली से मना कर दिया ।तीसरी बात सूत्रों के अनुसार सपा से यूपी में गठबंधन के साथ ही बसपा को भी इंडिया गठबंधन मेंलाने के लिये प्रयासरत है खासकर अखिलेश यादव के हाल के बयानों के बाद यूपी कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय और अखिलेश यादव से बढी तल्खियों के बाद और अजय राय के बयानों के बाद। रही बात आम आदमी पार्टी की तो, लगता नहीं कि आम आदमी पार्टी ज्यादा दिनों तक इंडिया गठबंधन में रह पाएगी। क्योंकि केजरीवाल तो सबसे ज्यादा अविश्वसनीय चेहरा राजनीति में बनकर उभरे हैं ।इसी प्रकार हरियाणा में कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सबसे प्रमुख चेहरा भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बात को मिनते हुए चौधरी देवीलाल की 110वीं जयंती पर इनलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला ने सोनिया गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को नायोता भेजने के बाद भी दोनों वहांनहीं गये ,यह दर्शाता है कि कांग्रेस अब अपने प्रदेश।नेतृत्व को कितना महत्व दे रही है। फारुक अब्दुल्ला, ओ ब्रायन और सुखबीर सिंह बादल अवश्य आये।लेकिन कांग्रेस की बेरूखी को भांपते हुए नीतिश , तेजस्वी, केजरी वाल उद्धव ठाकरे,शरद पवार,अखिलेश यादव भी नहीं आये शायद इनलो की मंशा “इंडिया ” गठबंधन का हिस्सा बनने की थी । यहां यह बताना आवश्यक है कि भूपेंद्र हुड्डा और चौ. देवी लाल के परिवार की दुश्मनी जग जाहिर है और एक बार नहीं तीन बार रोहतक से भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने चौ. देवीलाल को हराकर राजनीतिक पराभव की ओर न केवल ढकेल दिया था अपितु नौजवान भूपेंद्र हुड्डा ने राजनीति में लम्बी छलांग लगाई थी । इसीसब को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस सीट शेयरिंग के मुद्दे को विधानसभा चुनाव तक लटकाए रखना चाहती है और अन्य दल 30 सितम्बर के पहले सीट शेयरिंग को फाइनल करना चाहते हैं ।