चाहें कांग्रेस के अंदर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के आलोचक रहे हों, चाहे विपक्षी नेता, सभी उनकी जनता में लोकप्रियता से चिढते हैं, विपक्ष तो कत्तई नहीं चाहता था कि भूपेंद्र सिंह नेताप्रतिपक्ष बने , लेकिन ऐसा नेता पाकर भी कांग्रेस सत्ता में दो बार से नहीं आ पाई यह कांग्रेस का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा और इस बार तो भाजपा के खिलाफ जनता में भयानक आक्रोश भी थाहार कारणों पर अगर गौर करें तो कई कारणों में सबसे बड़ा कारण स्वयंम कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व था । आपने कभी सुना है कि बिना संगठन के कोई चुनाव जीता जा सकता है किसी भी जिले में कांग्रेस का कोई संगठन ही नहीं था यह तो कांग्रेस का दिवास्वप्न था जो उसे जीत दिख रही थी दूसरा बड़ा कारण कांग्रेस नेताओं में इतनी ज्यादा सिर फुटौवल थी , कई गुट थे, जो भाजपा के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ रहे थे, वह इस बात की लड़ाई लड़ रहे थे कि दूसरे गुट के नेता को चुनाव नहीं जीतने देना है। सच कहा जाए तो इस बार का विधान सभा चुनाव भाजपा बनाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा रहा, पूरे चुनाव में कुमारी शैलजा प्रचार करने ही नहीं उतरी केवल व्यंग्यात्मक जहरीली मुस्कुराहट के साथ प्रतिदिन प्रेस कांफ्रेंस कर अपने को मुख्य मंत्री पद का दावेदार बताती रहीं, दूसरे अपने को बड़ा नेता समझने वाले रणदीप सिंह सूरजेवाला अपने बेटे को चुनाव में व्यस्त रहे कहीं और के प्रचार में ही नहीं निकले, अशोक तंवर चुनाव के अंतिम दिन कांग्रेस में शामिल हो गए, कैप्टन अजय सिंह यादव भी एकाध जगह प्रचार में गये, अलबत्ता जहां राहुल गांधी प्रचार में गये, तो वहां(कुमारी शैलजा को छोड़कर) सब वहां पहुंच जाते थे, ऐसा लगता था चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस का नहीं भाजपा बनाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा था सभी कांग्रेसी नेता जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ थे वे सभी भूपेंद्र हुड्डा के प्रत्याशियों को हराने में लगे थे अकेले सिर्फ भूपेंद्र हुड्डा और उनके सुयोग्य बेटे दीपेन्द्र हुड्डा ने जी-जान से प्रचार किया था और जमकर अपनी कांग्रेस की लुंज-पुंज और जयचंदों से भरी सेना को लेकर लड़ाई लड़ी,कमाल ये कि इसके बाद भी कांग्रेस के कई निकम्मे और जयचंद अभी भी हरियाणा कांग्रेस में पड़े हुए हैं राहुल गांधी भी भूपेंद्र हुड्डा और उनके बेटे दीपेन्द्र हुड्डा की मेहनत के कायल हैं केवल कुछ ही सीटों से कांग्रेस हारी।-सम्पादकीय-News51.in