Friday, December 27, 2024
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हरियाणा चुनावके नतीजे के हुए भारतीय राजनीति में दूरगामी परिणाम भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए

हरियाणा में भाजपा की बम्पर लगातार तीसरे विधान सभा के जीतने के बाद पस्त पडी़ भाजपा में अचानक जान आ पडी़ । मेरे अपने व्यक्तिगत अनुमान के अनुसार ही कांग्रेस की हार अवश्यम्भावी थी । पुरानी कहावत के अनुसार ही सूत न कपास…….! कांग्रेस में क ई नेता जीत को लेकर इतने उत्साहित थे कि वे सारे मुख्यमंत्री पद के दावेदार बन कर सामने आ गये । कमाल की बात यह थी कि सभी के अलग- अलग गुट थे और सभी केवल अपने गुट के नेताओं को जीताना चाहते थे और विरोधी गुट के नेताओं को हराना ही उनका परम लक्ष्य था , कोई भी कांग्रेस को नहीं जीताना चाहता था ये सभी गुट कालिदास की भांति कांग्रेस रूपी पेड़ पर बैठ कर विरोधी गुट के नेताओं की डाल को काटने में लगे थे, तो नतीजा वही हुआ पूरा पेड़ ही मूर्ख कांग्रेसी नेताओं के कारण कांग्रेस रूपी पेड़ को धराशायी होना ही था । उन नेताओं की बात करें जिन्होने गुट बना रखा था सबसे बडे़ और मजबूत नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बात करें जिन्होने अपने ही गुट के दलित नेता उदयभान को हरियाणा प्रदेश का अध्यक्ष बनवा रखा था जिनकी अपनी ही बिरादरी में कोई पूछ नहीं थी,लेकिन हुड्डा साहब की पहली पसंदऔर उनकी जी – हजूरी करने वाले नेता थे कांग्रेस के असली आला कमान राहुल गांधी ( अधयक्ष मल्लिकार्जुन खडगे नहीं) को अमेरिका में बैठे जनाधार विहीन नान सीरियस नेता सैम पित्रोदा ने ऐन चुनाव के पहले अमेरिका में भारतीय समुदाय और छात्रों को सम्बोधित करने अमेरिका बुलवा लिया जबकि टिकट बंटवारे की प्रक्रिया अपने चरम पर थी और उनकी सबसे ज्यादा जरूरत भारत में थी अमेरिका जाकर भारतीय समुदाय के बीच भाषण देने कितने वोट उनकी पार्टी को भारत में मिल गये शायद एक भी नही़ं , जाते समय उन्होने एक और नान सिरियस नेता प्रदेश प्रभारी बावरिया और हुड्डा साहब को यह निर्देश दिया कि आम आदमी पार्टी से सात- आठ सीटों पर ताल-मेल और अखिलेश यादव की पार्टी को उनसे बात कर दो से तीन सीट तक देदी जाय । लेकिन हुड्डा और बावरिया ने आम आदमी पार्टी को अंत तक लटकाये रखा नतीजा आम आदमी पार्टी ने अधिकांश सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे वहीं हुड्डा साहब के सुपुत्र दीपेंद्र हुड्डा ने सपा का हरियाणा में कोई प्रभाव नहीं होने की बात कहकर एक भी सीट देने लायक सपा को नहीं समझा , वह तो अखिलेश यादव अब राजनीति के बेहद सुलझे नेता बन गये हैं इसलिये चुप रह गये लेकिन आम आदमी पार्टी तसभी जगहों पर हजार-दो हजार वोट पाकर कांग्रेस को क ई जगह हजार पांच सौ वोटों से हरवा दिया । भाजपा को आपने देखा होगा बुरी तरह हारने वाले यूपी मेंँ दारा सिंह चौहान और ओम प्रकाश को अपने साथ जोडे़ रखा । तीसरा जो सबसे बडा़ कारण हरियाणा में कांग्रेस का संगठन ही नही खडा़ हो पाया था । कमाल की बात है बिना संगठन खडा़ किये ही कोई पार्टी कैसे जीत का सपना देख रही थी , शायद कांग्रेस जैसी पार्टी ही इस तरह का सपना देख सकती है , एक गुट कुमारी शैलजा जो प्रचार करने ही नहीं उतरी केवल दिखावे के लिए दो-तीन दिन राहुल के साथ आई और फिर कभी प्रचार में नहीं उतरीं और वह भी दलित नेता होने केनाते मुख्यमंत्री की होड़ में शामिल हो गयीं एक और।साहब अपने को कांग्रेस का बडा़ नेता और एक गुट के नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला साहब थे वह केवल अपने बेटे की एकमात्र सीट पर ही प्रचार करते रहे , वह भी मुख्यमंत्री पद की रेस में शामिल हो गये । राहुल गांधी राजस्थान वाली गलती भी यहां दोहराते नजर आये कोई सबक न सीखने की सबसे बडी़ गलती हरियाणा में भी किये जैसे रैली में राजस्थान में अशोक गहलौत और सचिन पायलट का हाथ मिलवा दिया लेकिन दोनों की खटास बरकरार रही उसी तरह हरियाणा में हुड्डा साहब और कुमारी शैलजा का हाथ मिलवाया लेकिन दोनों की खटास बरकरार रही और तो और कुमारी शैलजा ने प्रचार नहीं किया लेकिन प्रतिदिन प्रेस कांफ्रेंस कर हुड्डा साहब को कोसती रहीं इसके अलावा चुनाव में प्रारचार से अलग हट कर राहुल गांधी द्वारा जलेबी का प्रचार और फैक्ट्री की बात ने भी राहुल गांधी की किरकिरी कराई । राहुल और उनकी माताजी को चापलूस नेता ही पसंद हैं वरना क्या कारण है के सी वेणु गोपाल जैसों को संगठन।मंत्री बनाये रखने का औचित्य ? इमानदार नेता सचिन पाईलेट और वर्तमान में कांग्रेस में निर्विवाद दूरंदेशी नेता डी के शिवकुमार को संगठन में बडा़ पद देकर उनकी बुद्धिकौशल का उपयोग कांग्रेस को आगे बढाने में क्यों नहीं किया जा सकता है केसी वेणुगोपाल के कारण ही उनके द्वारा दबाव डलवाकर दिलवाये गये पांचों सीटों पर उम्मीदवार हार गये और तो और अनिल विज उनकी परिचित महिला उम्मीदवार के कारण चित्रा सरवारा को कांग्रेस का टिकट कटना भी चर्चा का विषय रहा, अगर चित्रा सरवारा को टिकट मिला होता तो शायद अनिल विज की हार निश्चित थी । इन सबके उपर भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा जिताऊ उम्मीदवार की बजाय अपने पसंदीदा नेताओं को टिकट दिलाना भी हार के प्रमुख कारणों में।रहा । हार के बाद भी यह सभी गुट अब विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष और प्रदेश अध्यक्ष बनाये जाने की अपने-अपने नेताओं की लाबिंग में जुट गये हैं अभी भी इनकी आंख नहीं खुली है राहुल गांधी का यह कथन भी इनकी आंख नही खोल रही हैकि कोई भी नेता कांग्रेस को नहीं अपने- अपने गुट के नेता को जिताने और अन्य गुट को हराने के प्रयास में लगा है। हरियाणा जीतने से सीमावर्ती राज्य दिल्ली, पंजाब और राजस्थान में भी इसका लाभ कांग्रेस को मिलता और आने वाले विधान सभा चुनाव में भी यह संजीवनी का कार्य करता, उल्टा इसका लाभ भाजपा को मिल रहा है । सम्पादकीय-News 51.in

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