Friday, October 18, 2024
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फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले जैसे लोग कभी मरते नहीं, लोगों के दिल में रहते हैं

मात्र 17 साल की उम्र में अपने पहले ही विश्व कप को खेलने ब्राजील के विश्व के लिए अनजान खिलाड़ी पेले ने जैसे ब्राजील की टीम की काया ही पलट के रख दी थी। पेले को फुटबॉल की दुनियां का पहला किंग कहा जाता है। पेले के पैरों का जादू जब चलता था तो एक बारगी दुनियां जैसे ठहर सी जाती थी। एडसन एरांतेश डो नासिमेंटो यानि पेलो का जन्म 23 अक्टूबर 1940 में हुआ था। ब्राजील को फुटबॉल की महाशक्ति बनाने वाले पेले बचपन से ही साओ पाउलो की सड़कों पर फुटबॉल खेलने लगा था। जहाँ अखबारों का गट्ठर या गोला बना कर खेलता था पंद्रह सोलह साल तक उसकी प्रतिभा देश भर में गूंजने लगी थी 1958 के पहले विश्व कप में उसे चुना गया और अपने पहले ही विश्व कप के चार मैचों में 6 गोल उसने मारे जिसमें से दो गोल तो उसने फाईनल में मारे, जिसकी बदौलत ब्राजील चैम्पियन बनी। उसके बाद तो पेले की लोकप्रियता का यह आलम था कि 1960 के दशक में नाईजेरिया के गृहयुद्ध के दौरान 48 घंटे के लिए दोनों तरफ के युद्ध विराम इस लिए हुआ था कि लोग लागोस का होने वाला फुटबॉल मैच, जिसमें पेले खेल रहे थे, देख सके। पेले बहुत ही गरीब घर का था किट खरीदने के लिए उसे बूट। पालिस किए थे 11।वर्ष की उम्र में ही सांतोष की युवा टीम का हिस्सा बन गए। फिर जल्द ही सिनियर टीम में आ गए। उन्होंने ब्राजील के लिए 114 मैचों में 95 गोल किए थे फिर तो यूरोपीय टीमों में उन्हें खरीदने के लिए होड़ मच गई थी तो ब्राजील सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय सम्पदा घोषित कर दिया। और ब्राजील की पीली जर्सी वाली टीम में उन्हें 10 नम्बर की जर्सी पहनने को दी गई। तीन बार विश्व कप खिताब और 784 मान्य गोल उन्होने किये। 24 सितम्बर 1977 को पहली बार भारत में कोलकाता में आये पेले के स्वागत में पूरा कोलकाता उमड़ पड़ा था खचाखच भरे ईडेन गार्डेन में न्यूयॉर्क कोस्मोस की तरफ से मोहन बगान के विरूद्ध मैच खेले थे दुबारा 2015 में दुर्गा पूजा में आये थे तब उनके हाथ में छड़ी थी। सम्पादकीय -News 51.in

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