वैसे तो पिछले दो- तीन महीने से ही भाजपा और जदयू के आपसी रिश्तों में दरार आ गई थी। जब आरसीपी सिंह को मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने पार्टी ने मंत्री पद और पार्टी दोनों से हटा दिया था और बिहार की राजनीति में अमित शाह ने तेजी से दखल देना शुरू कर दिया था। राजनीति के महारथी नीतिश कुमार पहले भी मजबूरीवश आरसीपी सिंह को भाजपा के दबाव में मंत्री बनाए थे। भाजपा बिहार में अपने दम पर खड़ा होना चाहती थी इसके लिए नीतिश कुमार को हटाना जरूरी था, या जदयू को तोड़ना आवश्यक था ।इनमें से जदयू में बड़ी टूट के लिए आरसीपी सिंह को लगाया गया था और स्वयं अमित शाह के दौरे ने नीतिश कुमार के कान खड़े कर दिए थे उन्होंने भी राबड़ी देवी के घर जाकर राजद से अपने सम्बन्ध सुधारने शुरू कर दिया और उधर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से फोन पर बातचीत की और वामदलों, निर्दलीयों, कांग्रेस और राजद के साथ महागठबंधन को तैयार किया और ओबैसी की पार्टी के चार विधायकों को, जो जदयू में शामिल होना चाहते थे उन्हें राजद में शामिल कराया गया ताकि राजद सबसे बड़ी पार्टी बन जाए। फिर आखिर में पूरी तैयारी के बाद आखिरकार कल नीतिश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से कल शाम 4 बजे राज्य पाल फागू चौहान से मिलकर अपना इस्तीफा दे दिया और फिर राबड़ी देवी के घर जाकर तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी से मुलाकात की। राबड़ी देवी के घर पर ही कांग्रेस, वामदलों और राजद के विधायकों की बैठक में सब कुछ तेजस्वी यादव पर छोड़ दिया गया। वहाँ से 5.20 पर नीतिश कुमार और तेजस्वी यादव ने राजभवन जाकर 164 विधायकों की सूची राज्य पाल को सौंपकर नयी महागठबंधन की सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया ।नीतिश कुमार ने भाजपा पर जदयू को अपमानित करने और कमजोर करने का भी आरोप लगाया है वहीं भाजपा ने इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया है