पांच राज्यों में चुनाव के पूर्व जी- 23 के नेता चुप थे चुनाव हो जाने के बाद सभी पांचों राज्यों में हार से ये दुबारा सर उठाये हुए हैं और गांधी नेहरु परिवार के विरूद्ध जहर उगल रहे हैं, सभी तो नहीं, कुछ को छोडकर। अब जरा जी-23 के असंतुष्टों के नामों पर नजर दौडायें तो साफ दिखता है कि दो चार नेताओं के अलावा बाकी सभी शोपीस हैं और उन सभी को ज्यादा लोग जानते भी नहीं है़ं इनमें सबसे ज्यादा मुखर हैं कपिल सिब्बल यह अगर पूर्व में केंद्रीय मंत्री न होते, तो सभी उन्हें सुप्रीम कोर्ट के बड़े अधिवक्ता ही जानते जनाधार शून्य है और वही मात्र कांग्रेस नेतृत्व से गांधी नेहरु परिवार को हटाना चाहते हैं बाकी सामूहिक नेतृत्व की बात कर रहे हैं। गुलाम नबी आजाद का जनाधार जम्मू कश्मीर में है भूपेंदर सिंह हुड्डा का हरियाणा में प्रभाव है। इसके अलावा कपिल सिब्बल, राजबब्बर, विवेक तन्खा, मनीष तिवारी, आनन्द शर्मा, शंकर सिंह बघेल, अखिलेश प्रताप सिंह, पृथ्वी राज चौव्हाण, राजिंदर कौर भट्टल, परनीत कौर एम ए खान ,संदीप दिक्षित, कुलदीप शर्मा,पीजे कुरियन शशिथिरुर, मणिशंकर अय्यर जैसे नाम हैं शशिथिरुर का भी थोड़ा प्रभाव है बाकी सभी नेता अपनी प्रासंगिकता खो चुके हैं। लेकिन मुझे शंकर सिंह बघेल की एक बात अच्छी और सच लगी, जिसमें उन्होंने कहा कि बड़े नेता को कैसे लांच किया जाता है वैसा प्रियंका गांधी को नहीं किया गया उन्हें यूपी का प्रभारी नहीं बनाना चाहिए था बड़े नेता को पार्टियां जब लांच करती हैं तो उसका एक बड़ा मैसेज जनता में जाता है प्रियंका गांधी के मामले में ऐसा नहीं किया गया ,जिसके कारण प्रियंका गांधी का जो असर होना था, नहीं हो सका। यहाँ बात कांग्रेस नेतृत्व की असंतुष्टों के खिलाफ कार्रवाई न करने और बेबात बयान बाजी और पार्टी में गुटबाजी न रोक पाने की, जिसके कारण कांग्रेस पिछले कई चुनाव हार चुकी है मैं आपको कुछ उदाहरण बता रहा हूँ मणिशंकर अय्यर ने एक चुनाव के दौरान मोदी की आलोचनाऔर अपशब्द कहे थे साथ ही पाकिस्तान की बात कही थी आप सभी जानते हैं वह जीतता चुनाव कांग्रेस पार्टी हार गई थी पार्टी ने उन्हें निलम्बित कर छोड़ दिया आज फिर खड़े हैं दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं ओसामा जी कह कर कांग्रेस का चुनाव में भट्ठा बैठा दिया था इसी प्रकार वर्तमान में पंजाब के कांग्रेसी नेताओं की बयानबाजी ने तो हद ही कर दिया था पंजाब अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धु, सुनील जाखड़ और कुछ अन्य नेताओं ने ऐसी -ऐसी बयान बाजी की ,कि जनता ने कान पकड़ लिया और फिर ऐसे में तो चुनाव जीतने की कल्पना करना बेवकूफी के सिवाय कुछ नही है किसी भी पंजाब के नेता के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई। उत्तराखंड में भी हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी की आपसी लड़ाई खुलकर सिरफुटव्वल में बदली दो- दो बार उत्तराखंड के कांग्रेसी नेता दिल्ली तक अपनी बात कहने गए स्वयंम हरीश रावत की बुलाहट हुई रोज किसी न किसी नेता की असंतुष्ट होने की बात आती रही वहाँ लोग भाजपा से उबे हुए थे लेकिन बाजी फिर भाजपा के हाथ लगी, किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। आप क्या खाक चुनाव जीतेंगे। कहावत है वही संगठन मजबूत रहेगा जहाँ संगठन में एकता और अनुशासन रहेगा। अभी भी वक्त है कपिल सिब्बल जैसे असंतुष्टों को पार्टी से निष्कासित किया जाय। चाणक्य ने भी कहा है कि जिस राह पर कांटे हों पहले उसे मसल दें फिर आगे बढें। सम्पादकीय News 51.in