Sunday, December 22, 2024
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चालीस साल लम्बी दर्द की कविता खत्म -गुलजार

चालीस साल लम्बी दर्द की कविता खत्म ———-गुलजार

मीना जी ने अपनी डायरी गुलजार को सौपी | गुलजार ने उनकी मृत्यु पर कहा था की चालीस साल लम्बी दर्द की कविता खत्म हुई |

गुलजार ने मीना जी की भावनाओं की पूरी इज्जत की | उन्होंने उनकी नज्म , गजल
, कला और शेर की एक किताब का कलेवर दिया | जिसमे एक जगह उन्होंने मीना जी
पर लिखा है —-

शहतूत की डाल पे बैठी मीना ,

बुनती है रेशम के धागे

लम्हा — लम्हा खोल रही है ,

पत्ता — पत्ता बिन रही है ,

एक — एक सांस बजाकर सुनती है

सौदायन,

अपने तन पर लिपटाती जाती है , अपने ही तागो की कैदी ,

रेशम की यह शायद एक दिन

अपने ही तागो में घुटकर मर जायेगी |

इसे सुनकर दरिया में उठते ज्वार की तरह मीना जी का दर्द छलक गया | उनकी
गहरी हंसी ने उनकी हकीकत बया कर दी ………………..जानते हो न , वे
तागे क्या है ? उन्हें प्यार कहते है | मुझे तो प्यार से प्यार है | प्यार
के एहसास से प्यार है , प्यार के नाम से प्यार है |इतना प्यार कोई अपने तन
से लिपटाकर मर सके और क्या चाहिए ?

सावंकुमार टाक ने मीना जी के बारे में लिखा मीना जी बहुत अच्छी इन्सान थी
……………….आज सावन कुमार जो कुछ भी है मीना जी के वजह से है —
मैं न केवल उनसे इंस्पायर्डहुआ हूँ बल्कि उन्होंने मुझे तीच भी किया है |
मार्गदर्शन दिया है |

सच बात तो यह है की मैंने किसी हद तक उनकी जिन्दगी का मतलब समझा है | वे
जितनी बड़ी अदाकारा थी कही उससे बड़ी भी बड़ी बहुत अच्छी इंसान थी | वे
कहती थी की मुझे थोड़ी ख़ुशी चाहिए बहुत ज्यादा नही | उनका प्यार हमेशा
निश्छल और पवित्र रहा | यदि उनकी सबसे अच्छी बात थी की वे बहुत संवेदनशील
थी तो सबसे बुरी बात यह थी की वे बहुत जल्दी किसी पर यकीं कर लेती थी और वह
उन्हें चोट करके चला जाता था | आज सिर्फ यही कह सकता हूँ मैं

”तेरी याद धडकती है मेरे सीने में |

जैसे कब्र के सिरहाने शमा जला करती है || ”

मीनाजी के एक नज्म ………………..

चाँद तन्हा है , आसमा तन्हा ,

दिल मिला है ,कहा कहा तन्हा ,

बुझ गयी आस , छुप गया तारा ,

थरथराता रहा , धुँआ तन्हा ,

जिन्दगी क्या इसी को कहते है ,

जिस्म तन्हा है और जा तन्हा ,

हमसफर कोई गर मिले भी कही

दोनों चलते रहे यहा तन्हा

जलती बुझती सी रौशनी के परे

सिमटा — सिमटा सा एक मका तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक

छोड़ जायेंगे यह जहा तन्हा ||

ये दर्द का समन्दर उनमे उठते ज्वार का एहसास दिलाते मीना की नज्मे अपने आप
में एक बेमिशाल धरोहर है
.सुनील दत्ता ..कबीर स्वतंत्र पत्रकार ,दस्तावेजी प्रेस छायाकार

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