क्या राष्ट्रवाद की अवधारणा दोधारी तलवार है ?
राष्ट्रवाद के प्रश्न को प्रमुखता न देने के कारणों एवं तर्को में इसे दोधारी तलवार कहने का भी तर्क दिया जा रहा है |
इस तर्क में उसे एक तरफ राष्ट्रीय हितो वाले राष्ट्रवाद और दूसरी तरफ उसे अन्य राष्ट्रों व राष्ट्र के अन्य समुदायों का विरोधी अंध राष्ट्रवाद कहा जा रहा है | उसे राष्ट्रवाद की धार के साथ अंध राष्ट्रवाद के भी दोहरी धार वाला विचार एवं व्यवहार बताया जा रहा है | क्या सचमुच यह दोहरी धार एक ही तरह के राष्ट्रवाद में निहित होता है ? अथवा सच्चाई यह है की यह एक राष्ट्रवाद की दोधारी नही बल्कि एक ही धार वाली दो अलग – अलग एवं परस्पर विरोधी तलवार के रूप में मौजूद होता है | उदाहरण – विकसित साम्राज्यी देशो के सामन्तवाद विरोधी पूंजीवाद राष्ट्रवाद को खतम करने हुए 200 साल से अधिक हो चुके है | तब से उनका राष्ट्रवाद दुनिया के देशो को अपनी मालो – सामानों तकनीको तथा औद्योगिक एवं महाजनी पूंजी का बाजार बनाने और उनको अपनी अधीनता में लाने वाले राष्ट्रवाद में बदलता बढ़ता रहा है | दुसरे देशो के संसाधनों पर कब्जा जमाने और उसकी लुट करने को वे अपने देश का राष्ट्रीय हित या राष्ट्रवाद कहते व प्रचारित करते रहे है | दुसरे राष्ट्रों एवं कौमो को अपना गुलाम बनाने वाला इनका यह राष्ट्रवाद दरअसल उनका साम्राज्यी राष्ट्रवाद बन गया है | वह दुसरे राष्ट्रों , कौमो के राष्ट्रिय हित के विरोध होने तथा उन पर साम्राज्यी गुलामी व प्रभाव को बढाने व विस्तारित करने वाला राष्ट्रवाद बनता रहा है | वह राष्ट्रवाद इंग्लैंड द्वारा इस देश को गुलाम बनाने , इस देश के सामन्ती शासको के साथ फ्रांस एवं हालैंड की कम्पनियों से इस देश में युद्ध कर के अपना प्रभाव – प्रभुत्व का विस्तार करने वाले ब्रिटिश साम्राज्यी अंध राष्ट्रवाद के रूप में बढ़ता रहा है | इसी अंध राष्ट्रवाद का परीलक्ष्ण प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्धरत साम्राज्यी लुतरी शक्तियों द्वारा भी किया जाता रहा है | वे यह युद्ध अपने राष्ट्रीय अधिकार को तथा राष्ट्रीय सुरक्षा को बचाने के लिए नही , बल्कि अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए लड़ रहे थे | इसलिए उनका राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र की अंध पक्षधरता वाला राष्ट्रवाद था और आज भी है | यही कही से भी दो धारी तलवार नही था और न ही है | वह पिछड़े एवं विकासशील तथा परनिर्भर राष्ट्रों के विरोध वाला इकहरी धारवाला अंधराष्ट्रवाद था और है भी | इसके विपरीत अपने राष्ट्रीय हित , राष्ट्रीय अधिकार एवं राष्ट्रीय स्वतंत्रता को लेकर किसी साम्राज्यी शक्ति या उनकी समूहबद्धता शक्ति के आर्थिक कुटनीतिक सांस्कृतिक एवं सिने हमलो कब्जो नीतियों का विरोध करना सौ फीसदी वास्तविक एवं न्याय संगत राष्ट्रवाद है | यह भी दोधारी नही है , बल्कि एकहरी धारवाला न्याय संगत राष्ट्र तलवार है |
यह औनिवेशिक एवं परनिर्भर राष्ट्रों की साम्रजय्वाद विरोधी राष्ट्रवाद की तलवार है , जो अपनी राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय हितो के लिए ही चलती है | दुसरे राष्ट्रों , कौमो समुदायों को पराधीन बनाने के लिए नही चलती |
जब राष्ट्रवाद की यह तलवार राष्ट्रवादी हितो के लिए चलना बंद कर देती है तो उसमे दूसरी धार नही खड़ी होती बल्कि वह तलवार ही बदल जाती है | वह साम्राज्यवाद से सहयोग से बनी उसी जैसी या उसी के अनुरूप तलवार बन जाती है | कांग्रेस का राष्ट्रवाद साम्राज्यवाद के सहयोग से सत्ता प्राप्ति के पहले से ही अपनी धार खोना शुरू कर दिया था | बाद के दौर में साम्राज्यी सहायता – सहयोग बढाते हुए साम्राज्यवाद विरोधी राष्ट्रवाद की तलवार को फेंक कर महज कथनी वाले सत्ता स्वार्थी एवं इस्तेमाली राष्ट्रवाद की तलवार पकड़ लिया था | इसी राष्ट्रवाद में राष्ट्रविरोध जनविरोध के साथ इसके अंध राष्ट्रवादी बनने का खतरा या चारित्रिक विशेषता मौजूद था और है |
लेकिन इसमें राष्ट्रवाद की दोहरी धार कही नही है ? न ही वह दोहरी धार साम्राज्यवाद का विरोध करते हुए राष्ट्रीय हितो की रक्षा वाले राष्ट्रवाद में है और न ही वह साम्राज्यवाद का सहयोग करते हुए इस्तेमाली एवं राष्ट्र विरोधी जनविरोधी राष्ट्रवाद में ही है | इसलिए राष्ट्रवाद को लेकर उलझाव या दोहरापन की जड़ राष्ट्रवाद को लेकर उसके स्वंय के ढुलमुल एवं बौद्धिक चिंतन में निहित है |
सुनील दत्ता कबीर स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस छायाकार
आभार – चर्चा आजकल