राजा टिकैतराय
अवध के इतिहास में नबावो के शासन काल ( 1722-1856 का विशेष स्थान है | मुग़ल सम्राट ने 1822 में अपने दरबार के इरानी सरदार मेरे मुहम्मद अमीन को सआदत खा और बुरहानुल्मुल्क की उपाधि प्रदान कर अवध का सूबेदार नियुक्त किया था | अवध के प्रथम शिया नवाब ने लखनऊ के दबंग शेखजादो को परास्त कर नगर पर अधिकार तो कर लिया परन्तु अपना मुख्यालय बनाया अयोध्या के निकट उस स्थान पर जो आगे चलकर फैजाबाद के नाम से प्रसिद्ध हुआ और तीन पीढियों तक नबावो की राजधानी बना रहा | बुरहानुल्मुल्क ने अपनी सैनिक और प्रशासनिक व्यवस्था में हिन्दुओ को उच्च पदों पर नियुक्त कर एक ऐसी परम्परा की नीवं राखी जिसका नौस्रण उसके उत्तराधिकारी भी करते रहे | इस प्रकार हिन्दुओ में पूर्ण विशवास प्रदर्शित करते हुए अवध के नवाबो ने उनकी धार्मिक आस्था में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नही किया | इतना ही नही , हिन्दू आस्थाओं में अनेक बार विशवास प्रदर्शित करते हुए इन शासको ने अवध में हिन्दू – मुस्लिम सम्बन्धो का एक नया ध्याय जोड़ा | अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला अयोध्या के हनुमान गढ़ी के पुजारी द्वारा दी गयी भभूत से अपनी पुरानी बिमारी से मुक्त हुए तो उन्होंने हनुमान गढ़ीका मंदिर बनाने के लिए जमीन दी जिस पर महाराजा टिकैत राय द्वारा बनवाया गया वर्तमान मंदिर खड़ा है | नौरोज व शबे बरात पर लखनऊ के बड़े इमामबाड़े में महाराजा बनारस की ओर से रौशनी होती थी तो बनारस के विश्वनाथ मंदिर में लखनऊ के नवाब की ओर से शहनाई बजती थी | नवाब आसिफुद्दौला की सौतेली माँ आलिया बेगम ( जो मुल्त: ठाकुर घराने की थी और जिनका नाम छ्त्रकुवर था ) ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से हनुमान जी की मनौती मानी थी और बेटा होने पर उसका नाम मंगलू रखा तथा अलीगंज के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर का निर्माण कराया जिसके शिखर पर चाँद बना है | इसी जगह पर आलियाग्न्ज बसाया गया जो बाद में अलीगंज कहा जाने लगा | इस परम्परा में नवाब आसफुद्दौला ने बाबा हजारा , कबीर पंथी मदिर के सन्त तथा नानकशाही गद्दी के सन्तो को जमीन व धन का दान दिया था तो राजा झाउलाल ने शिया बैतुलमाल बनवाया और महाराजा टिकैत राय ने अपनी निर्माण श्रृखला में मस्जिद और इमामबाड़े और मदिर साथ – साथ बनवाये | दोनों फिरके साथ – साथ मिलकर एक दुसरे के त्योहार न्माते रहे | मुसलमान होली – दिवाली मनाते रहे तो हिन्दू अजादारी व ताजियादारी करते रहे | अवध के नवाबो ने योग्य और कुशल हिन्दुओ को उच्च पदों पर नियुक्त कर अपनी प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया | ऐसे व्यक्तियों की सूचि बहुत लम्बी है पर उनमे कुछ लोग भी है जो न केवल अपनी प्रशासनिक योग्यता अपितु अपने सुसंस्कृत व्यक्तित्व , सदाचार तथा मानवीय गुणों के कारण देदीप्यमान नक्षत्र की तरह अलग चमकते है , जिनमे राजा टिकैत राय का स्थान अद्दितीय है | टिकैत राय की जीवन यात्रा दरबार में एक साधारण पद पर नियुक्त होकर अपनी योग्यता और गुणों के कारण सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर पहुचने – वाले व्यक्ति की रोमांचक गाथा है |
प्रस्तुती – सुनील दत्ता – स्वतंत्र पत्रकार – समीक्षक
आभार —- हमारा लखनऊ पुस्तक माला से