Sunday, October 6, 2024
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2014 में परिवार वाद का नारा नया था इसलिए सर चढ कर बोला, कमोबेश 2019 तक भी महत्वपूर्ण रहा,लेकिन अब यह नारा बेमानी है परिवार वादी तो सभी दलों में है, फिर जनता अगर चुनती है तो उस पर कैसा सवाल ?

आखिर कार 2024 के लोकसभा चुनावों की रणभेरी बज उठी है और भाजपा ने पहली सूची 195 प्रत्याशियों की आखिरकार जारी कर ही दी है अब ऐसा लगता है एक सप्ताह के अंदर सभी दल चाहे एन डी ए के हों या इंडिया के घटक दल , अपनी – अपनी सूची जारी कर देंगे क्योंकि दो सप्ताह के अंदर ही चुनाव आयोग भी लोकसभा चुनावों के तारीखों की घोषणा कर देंगे और पार्टी प्रत्याशके लिए भी प्रचार करने के लिए थोडा़ बहुत समय चाहिए ही । 2014 में पहली बार परिवार वाद से मुक्ति का नारा बेहद आकर्षक और नया लगा था जो लोगों के दिलों तक को छू गया था लेकिन अब तो ऐसा लगता है कि कोई भी दल इस रोग से अछूता नहीं है और यह राग काफी पुराना और अप्रासंगिक हो चुका है और जनता पर भी इसका असर नहीं दिखता है लोकतंत्र में जनता अगर किसी को चुनकर विधानसभा या लोकसभा में भेजती है तो फिर इन बातों का कोई मतलब नहीं रह जाता है। अब आइये थोडी़ बहुत चर्चा आने वाले लोकसभा चुनाव 2024 की कर लें । जैसा अखबारों मीडिया चैनलों में यह दिखाया जा रहा है जिसमें प्रधानमंत्री मोदी जीऔर अन्य यह कहते हैं कि अबकी बार भाजपा 370 पार और एनडीए गठबंधन 400 पार होगा, सभी अन्य विपक्षी दल इंडिया के गठबंधन के रूप में मिलकर लड़ रहे हैं ,ऐसी स्थिति में ऐसा लगता तो नहीं है वैसे क्या होगाकहा नहीं जा सकता अगर यह विपक्ष अलग- अलग लड़ता तो सत्तापक्ष के दावे को माना जा सकता था। बहुत कुछ यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और कर्नाटक पर निर्भर है ।यह चारों राज्य इस चुनाव में भाजपा का बहुत कुछ निर्भर है । दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक को छोड़कर अन्य जगहों पर भाजपा काफी कमजोर है मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीशगढ में भी भाजपा शक्तिशाली तो है लेकिन पिछला चुनाव परिणाम को दोहरा पाती है या नहीं , देखना होगा ।कांग्रेस अगर मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ , कर्नाटक, आंध्रप्रदेश , गुजरात और उडी़सा, पंजाब में अगर अच्छा प्रदर्शन करती है तो कांग्रेस गठबंधन सत्ता में वापसी भी कर सकती है यह चुनाव दोनों दलों एनडीए गठबंधन और इंडिया गठबंधन दोनो के लिए।बेहद महत्वपूर्ण है

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