नयी दिल्ली – सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कालेजियम द्वारा भेजे गए नामों को होल्ड पर रखना स्वीकार्य नहीं है। यह इन व्यक्तियों को नाम वापस लेने के लिए मजबूर करने का उपकरण बनता जा रहा है, ऐसा हुआ भी है। सुप्रीम कोर्ट ने इसी से सम्बंधित एक मामले की सुनवाई के सम्बन्ध में यह बात कही। कालेजियम ने हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के सम्बन्ध में नामों की प्रस्ताव भेजा था जिसपर अभी तक केंद्र सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है जिसपर इसी मामले में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजय किशन कौल और ए. एस. ओझा की बेंच ने सुनवाई के समय कालेजियम द्वारा प्रस्तावित नामों पर केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति में हो रही देरी पर अपने आदेश में कही और ला सेक्रेटरी को नोटिस जारी किया। कोर्ट एडवोकेट्स एसोशिएसन द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। जिसमें कहा गया है कि नियुक्ति के लिए सुझाए गए नामों को नियुक्ति करने में केंद्र की विफलता दूसरे न्यायाधीशों के मामले का सीधा उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट बार एसोशिएसन की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया कि जस्टिस दीपांकर दत्त के नाम को कालेजियम ने 5 हफ्ते पूर्व भेजा था जिसकी स्वीकृति अभी तक नहीं मिली। इस पर जस्टिस कौल ने कहा ऐसा क्यों हो रहा है समझ मे नहीं आ रहा है।उच्च न्यायालयों में नियुक्ति में हो रही महत्वपूर्ण देरी के सम्बन्ध मेंबेंच ने कहा कि 2021में सुप्रीम कोर्ट ने समयसीमा नियुक्ति के सम्बन्ध में आदेश भी पारित किया था। न्याय मूर्ति कौल ने कहा कि कालेजियम ने 11 नामों की नियुक्ति का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था जिन्हें केंद्र सरकार से मंजूरी मिलनी थी सबसे पुराना मामला सितम्बर 2021 का है। कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावित नामों में मंजूरी में देरी, पदोन्नति के लिए दिये गए वकीलों को अपना नाम वापस लेने के लिए प्रेरित करता है……………….
सुप्रीम कोर्ट -कालेजियम की सिफारिशों को ठंडे बस्ते में डालना स्वीकार्य नहीं, ला सेक्रेटरी को जारी किया नोटिस
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