कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अम्बेडकर जयंती पर यह रहस्योद्घाटन कर यूपी कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की इस आस में पलीता लगा दिया है कि यूपी विधान सभा चुनाव के पहले उन्होंने मायावती से गठबंधन के बारे में कहा था और उन्हें मुख्य मंत्री पद देना भी स्वीकार किया था। साथ ही उन्होने यह भी कहा कि सीबीआई और ईडी से मायावती बेहद डरी हुइ है इसीलिए भाजपा को चुनाव में खुला रास्ता दिया है जिसपर मायावती ने भी राहुल गांधी पर पिता की तरह झूठा होने का आरोप लगाया। यह तो एक बात है। लेकिन मुख्य मुद्दा यह है कि जितनी मेहनत के बाद यूपी में कांग्रेस ने सालों बाद प्रियंका गांधी की मेहनत के बाद नया संगठन खड़ा किया है और जो जोश कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं में आया था वह रोडशो और रैलियों में उमड़ी भीड़ में दिखा। ठीक है पूरे यूपी में दो सीट मिली और मात्र ढाई प्रतिशत वोट मिले। लेकिन वर्षों तक ( लगभग 30-32 वर्षों तक दूसरे दलों के सहारे चुनाव लड़ कर कांग्रेस पार्टी) कभी सपा तो कभी बसपा के गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली पार्टी ने यूपी के तमाम जिले में अपना संगठन खो दिया था पहले 100-125 सीट, फिर 70-80 फिर 50 से भी नीचे सीट कांग्रेस को गठबंधन मे सपा बसपा देती थी और अब तो यूपी में कांग्रेस की यह हालत हो गई है कि कोई भी दल कांग्रेस से गठबंधन भी नहीं करना चाहता। इस बार के चुनाव में सपा -बसपा दोनों ने गठबंधन से इनकार कर दिया। अब तो कांग्रेस की आंख खुल जानी चाहिए अगर अब भी अपने बलबूते सभी जिलों में और सभी सीटों पर चुनाव न लड़कर कांग्रेस दूसरे दलों से गठबंधन की बात भी करती है तो कांग्रेस यूपी में पूरी तरह खत्म हो जाएगी। इक्का दुक्का हार से हताश होने की जरुरत नहीं है प्रियंका गांधी को पार्टी संगठन को मजबूत करने की कोशिश और प्रयास जारी रखना चाहिए। सभी वर्गों और धर्म के लोग चाहते हैं कि कांग्रेस दोबारा से यूपी में अपना पुराना गौरव हासिल करे लेकिन यूपी में कांग्रेस की स्थिति यह है कि वोटर चाहते हुए भी सपा, बसपा और भाजपा को वोट दे आता है कारण स्पष्ट है बूथ पर आपके कार्यकर्ता नदारत रहते हैं या इक्का दुक्का मिलते हैं। अगर राहुल गांधी की बात सही है कि उन्होंने मायावती से गठबंधन की बात की थी। तो यह कांग्रेस पार्टी को पूरी तरह यूपी में समाप्त करने जैसा हैकांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं को राहुल गांधी जैसे जुझारू नेता से ऐसी अपेक्षा नहीं है