Sunday, September 8, 2024
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ये 5 विपक्षी दल, दिखा तो रहे भाजपा से कट्टर विरोध ,लेकिन अंदरखाने की क्या है हकीकत, क्यों विपक्षी एकता से बनाए हुए हैं दूरी, क्या ऐसी टूटी फूटी एकता के बल पर भाजपा को हरा पाना सम्भव?

नितिश कुमार मुख्य मंत्री बिहार, जब से भाजपा से अलग होकर महा गठबंधन की सरकार बनाए हैं तबसे ही उनकी ख्वाहिशें प्रधान मंत्री बनने के लिए हिलोर मारने लगी है लेकिन नीतिश कुमार राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं इसलिए अपने मुंह से हमेशा इंकार ही करते रहते हैं अलबत्ता भाजपा को हराने के लिए जगह-जगह विपक्षी नेताओं को गोलबंद करने में लगे हैं। यह सच है कि जो लाभ भाजपा ने उद्धव ठाकरे की महा अघाड़ी की सरकार को गिरा कर प्राप्त किया था उससे ज्यादा नुकसान उसे बिहार में सत्ता से बाहर होने पर हुआ है। और फिर झारखंड में हेमंत सोरेन की सरकार टूट-फूट से बचने और फिर विधानसभा में बहुमत साबित करने से उसके अभियान को भारी नुकसान तो हुआ ही विपक्षी दलों के हौंसले भी दोबारा से बुलंद हुए हैं। पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्र शेखर राव और उसके पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जो विपक्षी एकता बनाने की शुरुआत कांग्रेस रहित विपक्ष की किया था वह शूरूवात से ही संदेह के घेरे में थी और उसकी सफलता भी सम्भव नहीं लग रही थी,लेकिन इस बार नीतिश कुमार ने जो प्रयास किया है वह ठोस नजर आती है। ममता बनर्जी अपने लिए विपक्षी एकता चाहती थीं जबकि नितिश कुमार ने इसे चुनाव के बाद की बात कही है। अब अगर 2024 का लोकसभा चुनाव महाराष्ट्र में शिवसेना, एन सी पी और कांग्रेस मिलकर लड़ते हैं तो बड़ी ताकत महाराष्ट्र में होगी, उसी तरह बिहार में राजद और कांग्रेस और जेडीयू तथा वामदल तथा अन्य छोटे दल मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो वो भी बिहार में बड़ी ताकत बन जाते हैं यही बात झारखंड में भी लागू होती है हेमंत सोरेन की पार्टी, कांग्रेस, राजद और वामदल अगर मिलकर लड़ते हैं तो बड़ी ताकत बन जाएंगे। जिन पांच दलों के बारे में कहा गया कि वो भाजपा को अपना कट्टर विरोधी दिखा रहे हैं, लेकिन अंदरखाने मिले हुए हैं वो हैं आम आदमी पार्टी, ममता बनर्जी की पार्टी, ओबैसी, मायावती की बसपा और के चंद्र शेखर राव की पार्टी तेरास। ये सभी जोर -शोर से भाजपा के खिलाफ पब्लिकली लड़ रहे हैं। तेलंगाना की चंद्र शेखर राव केंद्र की बीजेपी सरकार के साथ हर मौके पर खड़ा दिखी अब जब वहाँ विधानसभा चुनाव होने हैं तो राजनितिक मजबूरी के चलते खिलाफ खड़ी हो गई है और तो और विपक्षी एकता की सूत्रधार बनने का असफल प्रयास भी कर चुकी है ममता बनर्जी का वही हाल है पश्चिम बंगाल के बाहर उनका कोई जनाधार नहीं है और हो सकता है लोकसभा चुनाव तक उनका किला बंगाल भी कमजोर हो जाए। उनका विरोध भाजपा को हराने से ज्यादा कांग्रेस को कमज़ोर करने में है। यही ओबैसी और मायावती का भी गेम प्लान है अब तो लोग भी स्वीकार करने लगे हैं कि मायावती और ओबैसी भाजपा की बी. टीम है। ऐसा लगता है कि वामदलों का जहाँ भी थोड़ा बहुत जनाधार है पश्चिम बंगाल सहित उन सभी जगहों पर वामदल और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ेंगे। तमिलनाडु और केरल में पिछली बार की तरह ही चुनावी गठबंधन यथावत रहेगा, फिलहाल अभी लोकसभा चुनाव में लगभग दो वर्ष का समय शेष है इसलिए अभी कोई विचार बनाना समय पूर्व की बात है बहुत सारी बातें होंगी इस पर समय पूर्व कोई राय या टिप्पणी कायम कर पाना सम्भव नहीं है।

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