Sunday, December 22, 2024
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यूपी लोकसभा चुनाव- जितनी जरूरत कांग्रेस को सपा के साथ की, उससे कहीं ज्यादा जरूरत सपा को कांग्रेस की,आइये जानते हैं कैसे?

लोकसभा 2024 का चुनाव जैसे-जैसे करीब आता जा रहा है वैसे- वैसे सभी दल अपनी- अपनी तैयारियां तेज करते जायारहे हैं और स्वाभाविक साथियों की तलाश भी सभी दलों को है ।बात होरही है कि क्या सपा और कांग्रेस का इह बार गठ बंधमि होगा या नहीं पहले तो सपा ने कांग्रेस से गठ बंधन से इंकार कर दिया था, लेकिन अब सम्भवतः गठ बंधन को तैयार हो जायेगी । इधर जितने भी उपचुनाव यूपी में हुए हैं उसमेंभाजपा ही भारी फडी़ है जब कारण की तलाश हुई तो स्पष्ट था मायावती ।जितने भी उपचुनाव हुए सपा सभी हारी , कारण मायावती बनी।यूपी में अल्पसंख्यक तीन दलों में विभाजित होकर मतदान करता है सपा, बसपा और कांग्रेस में,सबसे ज्यादा प्रतिशत सपा में फिर बसपा और कांग्रेस में जाता है। इधर मोदी लहर भी कम हुई है।आपको याद होगा आजमगढ उपचुनाव में बसपा प्रत्याशी गुड्डु जमाली ने एक लाख से अधिक मत प्राप्त किए थे, जिसके कारण भाजपा प्रत्याशी दिनेश निरहुआ नेजीत हासिल की थीऔर सपा प्रत्याशी की हार हुई थी। यही हाल सभी उपचुनावों का रहा।अगर सपा, कांग्रेस अलग- अलग चुना लड.ती है तो सपा लोकसभा की अधिकतम 3-4 सीट जीत सकती है और अधिकांश में बसपा की सेंधमारी के कारण हारना तय है।कांग्रेस अधिक से अधिक 1 या दो सीट पर जीत सकती है राजनीति में। और 1 मिलकर दो नहीं 11 होता है। अकेले कांग्रेस कुछ नहीं यूपी में है लेकिन अगर सपा के साथ मिलकर लड़ती है तो सपा और कांग्रेस गठबंधन को अल्पसंख्यकों का वोट शत-प्रतिशत मिलेगा फिर मायावती की पार्टी को अल्पसंख्यक वोट एकदम नहीं मिलेंगे। लेकिन कांग्रेस भी कम से कम 15 सीटें मांगेगी, लेकिन आशा है दस सीटों पर मान जायेगी फिर भी सपा के लिए यह फायदे का सौदा ही होगा अन्यथा कांग्रेस यूपी की सभी 80 सीटों पर पूरी ताकत के साथ लड़ जायेगी तो , हो सकता है अल्पसंख्यकों के दिमाग में यह बात बैठ ग ई कि भाजपा को मात्र कांग्रेस ही हरा सकती है, कोई क्षेत्रीय दल नहीं ,तो सपा को फिर भारी मुश्किल हो सकती है, वैसे भी इस समय हिमांचल और कर्नाटक की जीत से कांग्रेस के हौंसले बढे हुए हैं, यही डर सिर्फ सपा के साथ नहीं है बल्कि ममताबनर्जी पश्चिम बंगाल में, तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव, केजरीवाल भी डरे हुए हैं क्योंकि इनके मतदाता पहले कांग्रेस के वोटर हुआ करते थे, यही हाल आंध्र प्रदेश के जगन मोहन रेड्डी का भी है ।अलबत्ता उडी़सा में नवीन पटनायक, आंध्र में जगन मोहन रेड्डी,पंजाब में अकाली दल, बिहार में कुछ छोटे दल जैसे चिराग पासवान,चाचा पशुपति राम पासवान आदि ,महाराष्ट्र मेंउद्धव ठाकरे से अलग हुए शिवसेना गुट आदि सभी पूर्ववत एन डी ए के साथ ही रहेंगे ,जो पहले एनडी ए के साथ थे। सम्पादकीय- ।News51.in

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