यूपी के सहित 5 राज्यों में चुनाव अगले साल 2022 के फरवरी -मार्च के महीने में होने हैं ये राज्य उत्तर प्रदेश के अलावा उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर है। यहां अभी हम उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव की बात करते हैं और सभी दलों की चुनावी तैयारी और एजेंसी द्वारा पिछले चार – पांच महीना पहले से ही चुनावी सर्वे पर नजर रखना जरूरी समझते हैं पहले चुनावी सर्वे को लेकर लोगों में उत्सुकता रहती थी फिर पता चला कि ऐजेंसीयां सरकार को जीतते हुए दिखाने के एवज में मोटी रकम लेती हैं। और 2-4 परसेंट का मार्जिन रखकर सर्वे समय बद्ध तरीके से बढाती घटाती रहती हैं ताकि अगर सर्वे गलत हों भी तो 2-4 परसेंट के अगर-मगर के साथ बचने की गुंजाइश बनी रहे उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा , बिहार और महाराष्ट्र के विधान सभा के चुनाव रहे हैं। इन सभी में चुनावी सर्वे की शुरुआत भाजपा के बम्पर जीत से शुरू होती है धीरे-धीरे चुनाव पास आते थोड़ा मार्जिन घटा दिया गया था। और बाद में वही अगर -मगर के सहारे काम चलाया गया। वर्तमान में यूपी चुनाव में पिछले दो तीन महीने से भाजपा के वोट परशेंटेज को काफी बढा चढा कर दिखाया जा रहा था अब लगभग 42 -44 परसेंट वोटरों को भाजपा के साथ और 30-34प्रतिशत लगभग सपा के पक्ष में वोटर दिखाये जा रहे हैं। असलियत में जमीनी हकीकत क्या है इसे देखना आवश्यक है। रालोद, ओम प्रकाश राजभर की पार्टी, महान दल समेत क ई दलों से सपा का गठबंधन हुआ है इसके अतिरिक्त बसपा अधिकांश बड़े नेता सपा में शामिल हो चुके हैं कुछ भाजपा में भी गये हैं। सपा ने सबसे बड़ा दांव गोरखपुर में ब्राह्मणों के बड़े नेता हरिशंकर तिवारी और उनके दोनों पुत्रों के साथ पूर्वांचल के सभी बड़े ब्राह्मण नेताओं को सपा ने अपनी पार्टी में शामिल कर बहुत ही बड़ा दांव मारा है और मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ पर एक जाति को बढावा देने का भी आरोप हरिशंकर तिवारी ने लगाया है ।अब मुझे समझ नहीं आया कि 43परशेंट और 30 परशेंट वोटरों का इतना बड़ा फासला कैसे हो सकता है मेरे अनुसार भाजपा और सपा के बीच बडा़ ही कड़ा मुकाबला है यह अंतर मात्र1-2 प्रतिशत के बीच किसी भी पक्ष में जा सकता है। और दूसरी बात तीसरे नंबर पर बसपा और चौथे नम्बर पर कांग्रेस को बताया जा रहा है बसपा को 12-15 और कांग्रेस को 2-10 सीट के बीच मिलना बताया जा रहा है लेकिन यहाँ भी मुझे लगता है कि कांग्रेस तीसरे और बसपा चौथे स्थान पर जा रही है। मायावती घर में आराम फरमा रही हैं वहीं से कभी -कभी टविट कर कांग्रेस और सपा पर हमला कर रही हैं भाजपा के खिलाफ एक शब्द नहीं बोलती हैं ओबैसी ने सपा के साथ गठबंधन का भरपूर प्रयास किया लेकिन अखिलेश यादव सतर्क हैं। भाजपा की बी टीम अब सब जान गए हैं इसलिए पश्चिम बंगाल चुनाव में ओबैसी को अल्पसंख्यको।ने वोट नहीं दिया सभी प्रत्याशीयों की जमानत तक जब्त हो गई थी। यूपी में भी ओबैसी जान गए हैं कि यही होना है इसीलिए वह सपा से गठबंधन चाहते थे। यही हाल प्रसपा और भीम आर्मी का भी है। शिवपाल यादव अपनी पार्टी का विलय सपा में करना चाहते हैं किंतु अखिलेश यादव तैयार नहीं हैं चंद्र शेखर उर्फ रावण भी मायावती और अखिलेश यादव दोनों में से कहीं भी गठबंधन को तैयार हैं। लेकिन मायावती तैयार नहीं और अखिलेश यादव मायावती को अभी नाराज नहीं कर सकते चुनाव बाद जरुरत पड़ सकती है। हो सकता है ऐसी स्थिति में प्रसपा, चंद्र शेखर उर्फ रावण कांग्रेस से गठबंधन कर सकते हैं। ये तो राजनीति है जो अंतिम समय तक कुछ भी हो सकता है, क्या होगा देखते हैं सम्पादकीय ।