याद आते है —– सुभाष बाबू
” तुम मुझे खून दो , मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा “
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस हमारे देश के स्वाधीनता -संग्राम के अग्रणी , प्रभावशाली , लोकप्रिय और महान योद्धा थे | उनके प्रतिभावान व्यक्तित्व में जननेता , क्रांतिकारी तथा सेनानायक के गुणों का अदभुत संश्लेष्ण था | सतत सक्रियता , आदमी साहस , प्रेरक,देदीप्यमान उत्कट बलिदान भाव , धारदार तर्क , प्रगतिशील वामपंथी विचारों की वैज्ञानिक सोच , विलक्षण संगठन क्षमता तथा अपराजेयता उनके व्यक्तित्व को ऐसा आभामंडल प्रदान करते है , जैसा कि विश्व -इतिहास में कम लोगो को ही प्राप्त रहा है |
कटक और कलकत्ता में तेज़ – तरार्र विद्यार्थी जीवन | 1920 में इन्डियन सिविल सर्विस में चौथा स्थान प्राप्त कर के गाँधी के आवहान पर 22 अप्रैल , 1921 को त्यागपत्र | 1925 तक देशबन्धु चितरंजन दास का राजनैतिक मार्गदर्शन मिला | नेशनल कालेज , कलकत्ता के प्रिंसिपल रहे | कलकत्ता – कारपोरेशन के मुख्य प्रशासक बने | असहयोग आन्दोलन वापस लेने पर गाँधी का विरोध किया | क्रान्तिकारियो से सम्पर्क के कारण अक्तूबर 1924 में गिरफ्तारी | वर्मा की मांडले जेल में रखे गये | 1927 में मद्रास-अधिवेशन में कांग्रेस के महासचिव चुने गये | 1928 में नेहरु के साथ कांग्रेस के भीतर ही इन्डियन इंडीपेंडेंस लीग नामक सशक्त वामपंथी गुरुप गठित किया |1928 में कलकत्ता-अधिवेशन में कांग्रेस के जनरल कमांडिंग अफसर बने |कांग्रेस से डोमिनियन दर्जा की जगह पूर्ण स्वराज के लक्ष्य की घोषणा करवाना चाहते थे | 1929 में लाहौर कांग्रेस में समाजवादी कार्यक्रम अपनाने पर जोर दिया | 23 जनवरी 1930 को फिर गिरफ्तारी , एक वर्ष बाद रिहाई 2 जनवरी 1931 को कलकत्ता में प्रतिबन्ध तोडकर जलूस का नेतृत्त्व किया और खून -सने कपड़ो में अदालत लाये गये |
4 जुलाई , 1931 को अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस के मंच से वक्तव्य – ” संसार को मुक्ति की भाँती ही भारत की मुक्ति भी समाजवाद पर निर्भर है | भारत को अन्य देशो से शिक्षा ग्रहण करना चाहिए | भारत को अपने ही प्रकार के समाजवाद का विकास करना चाहिए | जब कि सारा संसार समाजवादी प्रयोगों में लीन है , तो भारत ऐसा क्यों न करे ? यह हो सकता है कि भारत जिस प्रकार के समाजवाद को विकसित करे , उसमे नवीनता और मौलिकता हो और वह सारे संसार के लिए लाभदायी हो |”
कराची – कांग्रेस में -“मैं चाहता हूँ कि स्वतंत्र भारत समाजवादी गणतंत्र बने |” जनवरी 1932 से 1933 तक नजरबंद | बीमार होने पर सशर्त रिहाई | यूरोप के वियना सैनिटोरियम में स्वास्थ लाभ | दुसरा असहयोग आन्दोलन वापस लेने पर 9 मई,1933 को वियना से सुभाष और विठ्ठल भाई पटेल का पत्र -“हम गत 13 वर्षो से अपने को अधिक से अधिक और शत्रु को कम से कम कष्ट देने की रणनीति से जो युद्ध चला रहे है , वह सफल नही हो सकता | यह आशा करना बेकार है कि कष्ट उठाकर या प्यार कर के हम अपने शासको का हृदय -परिवर्तन कर सकते है |महात्मा गांधी के असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की ताज़ा कारवाई यह सिद्ध करती है कि कांग्रेस का वर्तमान तरीका असफल हो गया है | अब कांग्रेस का नये तरीके से नये सिद्धांतो पर उग्रवादी पुनर्गठन करने का समय आ गया है | असहयोग को अधिक जुझारू तरीके से बदलना होगा और स्वाधीनता – संघर्ष हर मोर्चे पर शुरू करना होगा ” बिठ्ठल भाई पटेल ने अपनी वसीयत में सुभाष के राजनैतिक कार्यो के लिए एक लाख रूपये दिए थे |उनके भाई सरदार बल्लभ भाई पटेल ने वसीयत को चुनौती दी और कोशिश की कि वह धन सुभाष को न मिले |
10 जून ,1933 को इन्डियन पोलिटिकल कांफ्रेंस , लन्दन में अध्यक्षीय भाषण में 1931 के गांधी -इरविन समझौते की आलोचना की और कहा -“19 वी सदी में जर्मनी ने मार्क्सवादी दर्शन के रूप में विश्व को सबसे शानदार भेट दी और 20 वी सदी में रूस ने विश्व की सभ्यता और संस्कृति को मेहनतकश जनता की क्रान्ति और संस्कृति के जरिये समृद्ध किया | विश्व की सभ्यता और संस्कृति को अलगी शानदार देन भारत से प्राप्त होगी | भारत पूंजीपतियों, जमीदारो और जातियों का देश नही रहेगा , अपितु वह सामाजिक और राजनितिक लोकतंत्र होगा |हम इस पार्टी को “साम्यवादी संघ “कह सकते है |’साम्यवादी संघ ‘भारतीय जनता के हर भाग को न्याय दिलाने और उसकी चौतरफा स्वतंत्रता -सामाजिक ,राजनितिक ,आर्थिक -के लिए कार्य करेगा |” फरवरी 1935 में जनेवा में “हमारी गृहनीति तै करते समय यह कहना घातक होगा कि भारत को साम्यवाद और फासीवाद के बीचचयन करना है |हमारा विचार कि विभिन्न आंदोलनों में जो अच्छी चीजे है , उन्हें संश्लिष्ट करना होगा “1934-35 में मास्को -सम्मलेन में सुभाष को जाने देने के सवाल पर सेट्रल असेम्बली में होम मेम्बर ने कहा “सुभाष कम्युनिस्ट है ,इसलिए उन्हें रूस जाने की इजाज़त नही दी जा सकती |”1938 में हरिपुरा -कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने पर चरणबद्ध योजना -निर्माण का कार्य किया |”भारत के लिए आर्थिक योजना से मेरा मतलब भारत के औद्योगीकरण की बड़े पैमाने की योजना “हमे सबसे पहले विज्ञान की सहायता लेनी पड़ेगी |” अब स्वराज सपना नही रहा , हम सत्ता के निकट पँहुच चुके है |” “राजनितिक सत्ता हासिल करने के बाद यदि राष्ट्रीय पुनर्निर्माण समाजवादी पद्धति से होता है – जैसा कि मुझे बिलकुल सन्देह नही है कि होगा ही -तो सर्वहारा सम्पत्तिशाली वर्गो की कीमत पर लाभान्वित होगा और भारतीय जनता को सर्वहारा की कोटि में ही रखना पडेगा |” ” उपज बढाने के लिए वैज्ञानिक कृषि प्रणाली विकसित की जायेगी | राज्य के मालिकाने और राजकीय नियंत्रण में औधोगिक विकास की पूरी योजना बनाना अनिवार्य होगा | धीरे – धीरे राज्य द्वारा उद्योग और कृषि का भी समाजवादीकरण किया जाएगा |””वस्तुओ का वैज्ञानिक उत्पादन और वितरण केवल समाजवादी पद्धति से कारगर ढंग से किया जा सकता है |” गांधी ने सुभाष के उद्योगों और कृषि के समाजवादीकरण के विचार का विरोध किया | सुभाष ने जनसख्या नियंत्रण , भूमि -सुधार , जमीदारी -उन्मूलन की भी योजना बनायी |उन्होंने साम्प्रदायिकता आधार पर देश को तीन टुकडो में बाटने वाले 1935 के कानून में संघ -शासन के उल्लेख की निंदा की | वे अंग्रेजो से कोई समझौता नही चाहते थे | उनका मत था कि कांग्रेस पर पूंजीपतियों की जकड़ है और वे कांग्रेस को उनकी पकड से मुक्त करा कर समाजवाद की ओर ले जाना चाहते थे | 1939 में दूसरी बार त्रिपुरी -कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जाने की पूर्व संध्या पर सुभाष ने एक वक्तव्य प्रकाशित किया -“कांग्रेस कार्यकारणी के कुछ महत्वपूर्ण मेरी जगह किसी को भी अध्यक्ष बना देने के लिएमेरे विरुद्ध मतदान का आदेश दे रहे है | वे मेरा विरोध क्या इसलिए कर रहे है कि मैं उनके हाथो का औजार नही बनूगा या मेरे विचारों और सिद्धांतो के कारण ? कार्यकारिणी के इस गुरुप का यह अतिरेक है कि वे हर बार अध्यक्ष के मनोनयन का आदेश दिया करेंगे | यह कांग्रेस के जनवादी संविधान के विरुद्ध है |” सुभाष को 1580 और डॉ पट्टाभि सीतारमैया को 1375 वोट मिले | दो दिन बाद गांधी का बयान आया – “श्री सुभाष ने अपने प्रतिद्वंदी डॉ पट्टाभि सीतारमैया पर एक निर्णायक विजय हासिल की है | मुझे अवश्य स्वीकारना चाहिए कि बिलकुल शुरू से ही मैं उनके पुननिर्वाचन का निश्चित रूप से विरोधी था |इसके कारणों के विस्तार में जाने की मुझे आवश्यकता नही है |फिर भी मैं उनके विजय से प्रसन्न हूँ और चूकि पट्टाभि को उम्मीदवारी से अपना नाम वापस न लेने देने के लिए भी मैं जिम्मेदार था उनकी तुलना में यह मेरी अधिक पराजय है | कांग्रेस तेज़ी से नकली सदस्यों वाली भ्रष्ट संस्था बनती जा रही है |सबके बाद , सुभाष देश के शत्रु नही है |” और गांधी ने उन लोगो के लिए , जो सुभाष की नीति और कार्यक्रम से तालमेल न कर सके , कांग्रेस से बाहर आने का आम निर्देश भी जारी कर डाला | त्रिपुरी अधिवेशन के समय सुभाष बीमार थे | दक्षिणपंथी कांग्रेसियों ने अभद्र व्यहार किया | स्वंय गांधी अधिवेशन में नही आये |वह राजकोट में अनशन पर बैठ गये और कहा “कार्य -समिति में हमारा कोई आदमी नही रहेगा |” सुभाष ने कार्यकारणी के जिन 14 सदस्यों को चुना , उनमे से 12 ने इस्तीफा दे दिया और कहा “आप समान विचारों वाली समिति चुन ले |” नेहरु ने अलग से अपना इस्तीफा दिया |अन्तत: अप्रैल 1939 में कलकत्ता में कांग्रेस – महासमिति की बैठक में सुभाष ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया |पन्त -प्रस्ताव पर जयप्रकाश नारायण और उनकी कांग्रेस समाजवादी पार्टी ने सुभाष के साथ विश्वासघात किया , किन्तु कम्यूनिस्टो ने पन्त – प्रस्ताव का विरोध करने में सुभाष का साथ दिया | गांधी ने सुभाष को कांग्रेस से निकालने के लिए साजिश की और अन्तत: सुभाष और उनके भाई शरद – दोनों ही कांग्रेस से निष्काषित कर दिए गये |
गांधीवादी दर्शन का खण्डन करते हुए सुभाष ने अखिल भारतीय युवा सम्मलेन में कलकत्ता में कहा , “यह अनुभूति और मान्यता वाहियात है कि आधुनिकता बुरी है , बड़े पैमाने का उत्पादन पाप है , जरूरते नही बढाई जानी चाहिए और जीवन – स्तर नही उठाना चाहिए , कि आत्मा इतनी महत्वपूर्ण है कि भौतिक संस्कृति और सैनिक -शिक्षा को नजरंदाज़ किया जा सकता है |” जेल से पत्र – “हमको अधिक से अधिक समय और उर्जा कांग्रेस हाई-कमान से लड़ने में लगानी होगी | यदि सत्ता ऐसे नीच , प्रतिशोधी और अनैतिक लोगो के हाथ में स्वराज जीतने के बाद चली गयी तो देश का क्या होगा ?यदि हम उनसे अभी संघर्ष नही करेंगे , तो उनके हाथ में सत्ता जाने से रोक नही पायेंगे | उनके पास राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की कोई सोच नही हैं |गांधीवाद आज़ाद भारत को खाई में उतार देगा | यदि गांधीवादी सिद्धांतो पर भारत पुनर्गठन किया गया तो भारत सभी प्रभावी शक्तियों को अपने आप आमंत्रित करता रहेगा | गांधीवाद की चरम स्थिति जनतंत्र पर पाखण्ड का प्रकोप है |यह आश्चर्य व्यक्त करने के लिए मैं विवश हूँ कि भारत के राजनितिक भविष्य के लिए बड़ा खतरा क्या है -अंग्रेज नौकरशाही या गांधीवादी ढोंग |”
22 जून 1939 को फारवर्ड ब्लाक का गठन किया | मार्च 1940 में रामगढ़ ( बिहार ) कांग्रेस – अधिवेशन के अवसर पर सुभाष ने 438 जनसभाए , 21 हजार प्रतिनिधियों का समझौता विरोधी सम्मलेन और 80 हजार लोगो का जलूस निकाला और फासिज्म तथा नाज़ीवाद की तीखी भर्त्सना की | कहा “देश की आज़ादी के लिए हमे सोवियत संघ की मदद लेनी होगी |” कम्युनिस्ट नेता अछर सिंह चीमा से कहा “कांग्रेस के अन्दर सक्रिय दक्षिण -पन्थी ताकतों ने मुझे अध्यक्ष पद से हटा दिया है |वामपंथी शक्तियों को एक और गांधीवादियों और दूसरी और अंग्रेजो के विरुद्ध लामबन्द नही किया जा सका |
सशक्त विद्रोह के बिना अंग्रेजो को भारत से नही निकाला जा सकता | द्दितीय विश्व युद्ध ने इस प्रकार के विद्रोह के लिए सुअवसर प्रदान कर दिया है | मैंने साम्राज्यवाद विरोधी मित्र देश सोवियत संघ से शस्त्र आदि की मदद लेने का निर्णय कर लिया है | कम्युनिस्ट पार्टी मुझे सोवियत संघ पहुचाने में मदद कर सकती है “|
सुभाष के सोवियत संघ जाने की तैयारी शुरू कर गयी |16 जनवरी , 1941 की रात अपने घर से निकलकर दाढ़ी बढाये , शेरवानी पहने मुसलमान बुद्धिजीवी लग रहे सुभाष जियाउद्दीन के नाम से गूंगे पठान के रूप में 27 जनवरी को काबुल पहुचे | दस दिन बाद अंग्रेजो को उनकी फरारी का पता चला | सोवियत राजदूत ने उनको पहिचानने से इनकार कर दिया | तब वह जर्मन दूतावास गये | वहा के मिनिस्टर ने उनको पहचाना | जर्मनी , इटली और जापान की सरकारों से संयुक्त अनुरोध पर सोवियत संघ से ट्रांजिट वीसा मिला | 18 मार्च को ओरलान्दो मद्जोत्ता नाम से इटालियन पासपोर्ट और सोवियत वीसा के साथ रेल से सोवियत सीमा से मास्को गये |वहा दो दिन रुके और तब बर्लिन चले गये |मोलोतोब ने सुभाष को जर्मनी और इटली से मदद लेने की सलाह दी | 22 जून 1941 को नाज़ी जर्मनी ने सोवियत संघ पर हमला बोल दीया | अब परिस्थिति बदल गयी | 20 मई 1942 को एक वर्ष प्रतीक्षा के बाद सुभाष – हिटलर वार्ता हुई | उसने सहायता से इनकार कर दीया | सुभाष चाहते थे कि हिटलर अपनी पुस्तक ‘मीन-काम्फ़’ में भारतीयों के लिए लिखे अपमानजनक शब्दों को परिमार्जित करे |किन्तु उसने ऐसा किया नही |वह भारत की आज़ादी के लिए वक्तव्य देने को भी तैयार नही हुआ | प्रथम भेट में ही दोनों में राजनितिक मतभेद हो गया | सुभाष ने जर्मन विदेश मंत्रालय में रिबेनट्राप कि सहमती से फ्री इंडिया सेंटर और 7 जनवरी 1942 से आज़ाद हिन्द रेडियो की स्थापना की |1942 के अन्त तक भारतीय छात्रो और युद्ध -बन्दियो को मिलाकर 3000 हजार का लीजन ( सैन्य दल ) बना | इसे नेताजी का स्पष्ट आदेश था “भारतीय सैनिक केवल ब्रिटेन के विरुद्ध लड़े |” हिटलर ने एक भारतीय टुकड़ी को ग्रीस के मोर्चे पर भेजने का प्रस्ताव रखा तो सुभाष ने इसे रद्द कर दिया | 1944 में जब इनको सोवियत संघ से लड़ने का जर्मनों ने आदेश दिया तो भारतीयों ने इन्कार कर दीया | कोर्ट मार्शल हुआ और जर्मन फासिस्टो ने 10 भारतीय देशभक्तों को फांसी दिया | मलाया में 14 पंजाब रेजिमेंट के जनरल मोहन सिंह ने जापानियों से मिलकर इन्डियन नेशनल आर्मी का गठन किया | कुआलालम्पुर में इसका मुख्यालय था | इसमें अधिकारियों के वर्ग को समाप्त कर दिए गये और भोजनालय सामूहिक बनाये गये ताकि जातीय और साम्प्रदायिक भेद समाप्त हो सके | रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में टोकियो में प्रवासी भारतीयों का सम्मलेन 28 – 30 मार्च , 1942 को त्थ्का बैकाक में 15 – 28 जून तक हुआ | इन सम्मेलनों के प्रस्तावों को जापान ने स्वीकार नही किया और 8दिसम्बर को आई .एन ए. के कर्नल गिल को ब्रिटिश जासूस होने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया तो मोहन सिंह ने इस्तीफा दे दीया | रास बिहारी बोस ने इस्तीफा मंजूर किया | 14 सितम्बर 1942
को मोहन सिंह ने आई .एन ए. को विधिवत भंग कर दिया | वह जापानियों के अधीन मामूली काम नही करना चाहते थे | जापानियों ने मोहन सिंह को गिरफ्तार कर कंटीले तारो से घिरी एक झोपडी में रखा |आई .एन ए. के 45 हजार लोगो ने अपने बिल्ले और रिकार्ड जला दिए , कार्यालय बन्द कर दिया |इनमे से 4 हजार को जापानी फासिस्टो ने यातनाए दी |
सुभाष 8 फरवरी को जर्मनी से चले | 16 मईको टोकियो पहुचे | जापान के प्रधानमन्त्री तोजो ने पहले मिलने से इनकार कर दिया | उसने 10 जून को समय दिया |18 जून को टोकियो रेडियो से सुभाष का वक्तव्य का प्रसारण | ४ जुलाई को सिंगापुर में नेतृत्त्व सम्भाला | 5 जुलाई को परेड को सम्बोधन -“भारत की मुक्ति – सेना का गठन हो गया है | यह सेना भारतीय नेतृत्त्व में मोर्चे पर जायेगी | हमारा जय – घोष ‘दिल्ली चलो ‘ होगा | हम लाल किला से ब्रिटिश साम्राज्य की कब्रगाह पर विजय की परेड करेंगे |भारत हर दृष्टि में आज़ादी के लिए तैयार है | केवल मुक्तिवाहिनी नही है |अपने आज़ादी के मार्ग में खड़े अंतिम अवरोध को भी हटा दिया है | |” सिंगापुर से रंगून बहादुर शाह जफर की कब्रगाह पर परेड | 26 अगस्त को आई .एन ए. के सुप्रीम कमांडर का पद सम्भाला और नया नाम दिया आज़ाद हिन्द फ़ौज रखा | इन्डियन इंडीपेंडेंस लीग की कांफ्रेंस में 24 अक्तूबर को स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार ( आरजी हुकूमते आज़ाद हिन्द ) के गठन की घोषणा की || इस सरकार ने ब्रिटेन और अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की तत्काल घोषणा की | महत्वपूर्ण है की सोवियत संघ के विरुद्ध युद्ध की घोषणा नही की | आज़ाद हिन्द सरकार का मुख्यालय रंगून लाया गया | सितम्बर 43 में ‘सुभाष बिग्रेड ‘नामक गुरिल्ला बिग्रेड बनाई गयी | इसके कमांडर शाहनवाज़ खाँ थे | इसे अरकान इम्फाल और कोहिमा में सिंक अभियान में करना था | इसके पास टैंक , तोप टेलीफोन , वायरलेस सर्जरी के औजार – यहा तक की जुटे तक नही थे | इम्फाल अभियान असफल हुआ | यह सुचना नेता जी को 10 जुलाई 1944 को मिली | 9 अक्तूबर को टोकियो गये | जापान के सम्राट हिरोहितो से वार्ता | टोकियो विश्व विद्यालय में भाषण में स्वतंत्र भारत की सरकार के बारे में कहा “स्वाधीनता प्राप्ति के कुछ वर्ष बाद तक भारत में प्रजातंत्र का रास्ता साफ़ करने के लिए एक दल का अधिनायकत्व होना चाहिए |” इसे उन्होंने ” अधिकार सम्पन्न शासन कहा “| जिससे भ्रष्ट और अराजक तत्वों के विरुद्ध सख्ती हो सके और देश की प्रगति के लिए आवश्यक योजनाओं को आरम्भ किया जाए | एक लिपि , एक भाषा और राष्ट्रीय एकता के कार्यक्रम प्रस्तुत किए | 7 अगस्त 1944 को काबुल में कीर्ति पार्टी के भगत राम को सन्देश मिला – ” मेरा राजनितिक आन्दोलन और सैनिक अभियान भारतीय चला रहे है | केवल हम ही भारत में ब्रिटिश सत्ता को तोड़ सकते है | अन्यथा हम हमेशा गुलाम बने रहंगे |निस्संदेह ब्रिटेन भारत में पाकिस्तान बनाने का प्रयास करेगा | यह भारतीय राष्टवाद के विचार का अन्त होगा | कृपया एम्.गांधी से स्वंय मिलकर विश्वास दिलाये कि मैं भारत की
स्वतंत्रता के लिए कार्य कर रहा हूँ | मैं ऐसा कोई कार्य नही करूंगा , जिससे मेरी मातृभूमि का अपमान व अहित होगा |”
नेता जी 14 दिसम्बर 1944 को सिंगापुर वापस लौटे और 18 फरवरी 1945 को युद्ध – मोर्चे पर रंगून से गये | कर्नल सहगल ने अप्रैल में और ढिल्लो तथा शाहनवाज ने 16 मई 1945 को बर्मा में आत्मसमर्पण कर दिया | झासी की रानी रेजिमेंट की लडकियों और कार्यकर्ताओं के साथ नेता जी बैकाक गये | सिंगापुर में आई .एन ए. के स्मारक की आधार – शिला 8 जुलाई रखी | मलाया का दौरा | रूस ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी | अमेरिका ने 6 अगस्त को हिरोशिमा और 8 अगस्त 1945 को नागासाकी पर परमाणु बम गिरा दीये जापान ने 15 अगस्त को आत्मसमर्पण कर दिया | 16 अगस्त को नेता जी सिंगापुर से बैकाक , फिर सैगोन गये | सैगोन से हबीब के साथ तोराने (हिन्दचीन ) गये | वह से सोवियत संघ जाने वाले जहाज के इंजन में 100 फुट उपर उठते ही विस्फोट हुआ | विमान गिरा और जलने लगा | नेता जी विमान में थे | उनकी सूती वर्दी पेट्रोल से भीग गयी थी | नेताजी की मौत का रहस्य आज भी बरकरार है ।
सुनील दत्ता – कबीर—- स्वतंत्र पत्रकार — दस्तावेजी प्रेस छायाकार