यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश में कभी पूर्व प्रधान मंत्री चंद्र शेखर के शिष्य हुआ करते थे और आपात काल में उन्होने 18 माह जेल भी काटा था और मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ की सानिध्यता के कारण भाजपा में आये और भाजपा के एम एल सी भी बने। जब विधान परिषद् के चुनाव में उनके पुत्र विक्रांत सिंह रिशू को भाजपा ने आजमगढ- म ऊ सीट से उम्मीद वार न बना कर पूर्वांचल के बाहुबली सपा नेता के पुत्र और पूर्व विधायक अरूंण कांत यादव को टिकट दिया तो यशवंत सिंह के पुत्र विक्रांत सिंह रिशू निर्दल ही चुनाव लड़ गए जिसकी जानकारी प्राप्त होने पर पार्टी ने उन्हें 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया ,लेकिन रिशु न सिर्फ चुनाव जीते बल्कि भारी बहुमत से जीते। पूरे यूपी में तीन निर्दलीय विधान परिषद् का चुनाव जीतने वाले प्रतापगढ से राजा भैया के करीबी अक्षय प्रताप सिंह, कभी पूर्वांचल में आतंक का पर्याय रहे और बाहुबली मुख्तार अंसारी के जानी दुश्मन वाराणसी से बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह और आजमगढ -म ऊ सीट से यशवंत सिंह के पुत्र विक्रांत सिंह रिशू रहे। इसमें शायद रिशू देर-सबेर भाजपा में ही शामिल होंगे । बाकी अक्षय प्रताप सिंह और अन्नपूर्णा सिंह भी हर मसले पर उम्मीद है भाजपा का साथ देंगे। यशवंत सिंह ने बसपा से अपने राजनितिक कैरियर की शुरुआत की थी उन्होने क ई मौकों पर भाजपा की मदद की थी 1997 में बसपा को तोड़कर भाजपा की सरकार बनवाई थी जिसके ऐवज में उन्हें कारागार मंत्री बनाया गया था। वह सपा में भी रह चुके हैं। उन्हें पुत्र को निर्दल लड़ाने के बदले अनुशासनहीनता के लिए 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है। लेकिन उन्होंने पूरा ध्यान अपने पुत्र को चुनाव जीताने में लगाया और उनके बेटे विक्रांत सिंह को 4076 वोट मिले और सपा के राकेश यादव उर्फ़ गुड्डू यादव को मात्र 356 और भाजपा प्रत्याशी अरूणकांत यादव को 1262 वोट ही मिले ।उनके पुत्र विक्रांत सिंह रिशू ने भाजपा प्रत्याशी अरुण कांत यादव को इस प्रतिष्ठा की लड़ाई में 2814 वोट के भारी मार्जिन से हराया ।इस जीत के बाद यशवंत सिंह की प्रतिष्ठा बढी है और रमाकांत यादव की प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुंचा है। सम्पादक -अशोक कुमार श्री वास्तव, News 51.in