बोधि धर्म और चीन का सम्राट
‘मैं ‘ को खोजा तो मिला ही नही …..
भारत वर्ष के श्रेठ फकीर बोधिधर्म जिनको चीन देवता की तरह पूजता है
हिन्दुस्तान से एक फकीर चीन गया | बोधिधर्म उनका नाम था | चीन का सम्राट उसका स्वागत करने आया था | रास्ते पर जब साम्राज्य प्रवेश के समय स्वागत किया बोधिधर्म का , तो उस सम्राट ने मौक़ा देख कर कहा कि मैं बहुत अशांत हूँ , कुछ रास्ता बताएं | बोधिधर्म ने कहा कि कल सुबह तीन बजे आओ तो शांत कर देंगे | उस सम्राट ने बहुत से फकीरों से सवाल पूछे थे , किसी ने कुछ रास्ता , किसी ने कुछ रास्ता बताया था | लेकिन यह आदमी अदभुत मालुम पडा | इसने कहा , कल तीन बजे आ जाओ , शांत कर देंगे | उसे थोड़ा तो शक हुआ कि मामला इतना आसान नही हो सकता | जिन्दगी भर अशांत रहा , सब उपाय कर लिया और शान्ति नही हुई | उसने फिर कहा बोधिधर्म से कि आपको मेरी जटिलता का पता नही | धन जितना चाहिए पा चुका हूँ , लेकिन शान्ति नही मिलती | उपवास जितने कहे है करने को फकीरों ने उतने किये शान्ति नही मिली | मंदिर बनवाये है लाखो , शान्ति नही मिलती | पुन्य जितना बताया , किया है उससे दुगना , शान्ति नही मिलती | उस फकीर ने कहा , ज्यादा बातचीत नही , सुबह तीन बजे आ जाओ शांत कर देंगे | उसको और हैरानी हुई | ठीक , सोचा कि तीन बजे देंखेगे | वैसे शक हुआ कि इस आदमी के पास आना भी कि नही आना | सीढ़ियाँ उतरता था मंदिर की , जहां बोधिधर्म ठहरे थे , आखरी सीढ़ि पर पहुचा था कि बोधिधर्म ने चिल्लाकर कहा कि सुन ! मैं को साथ ले आना , नही तो मैं शांत किसको करूंगा | उसने कहा , और पागलपन ! उसने कहा , जब मैं आउंगा तो मैं तो साथ रहेगा ही | रात में उसने कई दफे सोचा कि जाना कि नही | लेकिन फिर सोचा , इतना हिम्मतवर आदमी भी कभी नही मिला जिसने कहा शांत कर देंगे | सुबह तीन बजे हिम्मत जुटा कर आया , चढा सीढ़िया | चढ़ भी नही पाया था की बोधिधर्म ने कहा कि मैं को साथ लाया या नही ? सम्राट वू ने कहा , आप कैसी मजाक की बातें कर रहे है ! मैं आ ही गया हूँ तो मैं को साथ लाने की बात क्या है ? तब बोधिधर्म ने कहा कि नही , मैं पूछता हूँ जानकार ही | मैं हूँ , तुझे दिखाई पड़ रहा हूँ फिर भी मेरा मैं अब मेरे साथ नही है | इसीलिए मैंने कहा कि साथ लाया की नही , अन्यथा मैं शांत किसको करूंगा ?
उस बोधिधर्म की बात उस सम्राट वू की समझ में कुछ आई नही | फिर भी उसने कहा , ठीक है अब तू आ ही गया | और तू कहता है मैं साथ ले आया हूँ तो बैठ | आँखे बंद कर और पकड़ अपने मैं को की कहाँ है ? और पकड कर मुझे दे दे तो मैं उसे शांत कर दूँ | उस सम्राट ने कहा , मुझे रात ही शक होता था की नही आना चाहिए | आप किस तरह की बात कर रहे है ? मैं कोई ऐसी चीज है जो मैं पकड कर आपको दे दूँ |
तो बोधिधर्म ने कहा , मुझे न दे सके छोड़ , अपने भीतर खुद तो पकड़ ही सकता है ?
उस सम्राट ने कहा , मैंने कभी कोशिश नही की |
बोधिधर्म ने कहा कोशिश कर | आँख बंद करके सम्राट बैठा है , बोधिधर्म एक बड़ा डंडा लेकर उसके सामने बैठा है | सम्राट घबडा भी रहा है | रात है अँधेरी अकेला आ गया गया है इस भिक्षु का भरोसा करके | पता नही यह क्या करने पे उतारू है | बोधिधर्म बीच – बीच में में उसका सर डंडे से हिलाता है और कहता है , खोज ! एक भी कोना छोड़ मत ! जहाँ मिले , पकड ! आधा घंटा , पौन घंटा बीत गया , घंटा भर बीत गया , दो घंटे बीत गये और वह सम्राट न मालुम कहाँ खो गया ! फिर सुबह का सूरज निकलने लगा | फिर बोधिधर्म ने कहा कि अब मैं स्नान करने जा रहा हूँ ? अभी तक नही पकड़ पाया | सम्राट ने आँखे खोली और उस बोधिधर्म के चरणों पर गिर पडा | उसने कहा , यह तो मैंने कभी ख्याल ही नही किया था कि यह मैं जैसी कोई चीज भीतर है ही नही | जब मैं खोजने गया तो कही पता ही नही हूँ | सब कोने – कातर देख डाले | सब तरफ , इस कोने से उस कोने तक खोज डाला , मैं तो कभी भी नही है | तो बोधिधर्म ने कहा , अब मैं किसको शांत करूँ ? मैं डंडा लिए तीन घंटे से बैठा हूँ ! उस सम्राट ने कहा अब शांत हो ही गया , क्योकि जहाँ मैं नही , वहाँ अशांति कैसी ? ये तीन घंटे मेरे शान्ति के ही घंटे थे | जैसे – जैसे मैं खोजने लगा और जैसे जैसे पाने लगा कि मैं नही पा रहा हूँ , वैसे वैसे कुछ शांत होता चला गया | अब मैं कह सकता हूँ कि मैं अशांत था , ऐसा कहना गलत था | मैं ही अशान्ति थी | बोधिधर्म ने कहा , जा ! और अब दुबारा जरा मैं से सावधान रहना , इसको फिर मत पकड़ना |
सम्राट वू अपनी कब्र पर लिखवा गया कि लाखो सन्यासियों और साधुओ के वचन सुने हजारो शास्त्र सुने ; लेकिन कुछ राज पकड में न आया ; और एक अजीब से फकीर की बात में आकर भीतर झांक कर देखा और सब राज खुल गया | वहाँ कोई मैं था ही नही जिसे शांत करना था | वहां कोई मैं था ही नही , जिसे शुद्ध करना था | वहाँ कोई मैं था ही नही , जिससे लड़ना था और जिसे जीतना हां | वहां कोई मैं था ही नही , जिसके लिए मोक्ष और परमात्मा खोजना था | वहां मैं था ही नही |
प्रस्तुति सुनील दत्ता कबीर
स्वतंत्र पत्रकार दस्तावेजी प्रेस फोटोग्राफर