पटना में सम्पन्न 23 जून को विपक्षी दलों की बैठक तो सम्पन्न हो गयी है लेकिन क ई ऐसे सवाल छोड़ गयी है ,जिसमें सबसे अहम कांग्रेस का केजरीवाल और ममता बनर्जी की पार्टी के प्रति क्या रूख होगा ।केजरीवाल बैठक तो बीच में ही छोड़कर नाराज होकर चले गये लेकिन सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के यह कहने पर कि वह नाराज नहीं हैं और 12 जुलाई की शिमला में विपक्ष की होने वाली दूसरी बैठक में वह आएंगे और लगता भी ऐसा ही है क्योंकि उनकी इस समय उन्हे अध्यादेश के विरोध में कांग्रेस के समर्थन की आवश्यकता है,लेकिन अगर कांग्रेस केजरीवाल की बातें मानती है तो यह कांग्रेस की सबसे बडी़ राजनीतिक भूल होगी कांग्रेस को यदि दिल्ली और पंजाब की राजनीति में अपने को पुनर्स्थापित करना है तो यही समय सबसे अच्छा है । यही बात ममता बनर्जी के मामले में भी कांग्रेस पर लागू होती है अगर कांग्रेस ममता के कहे अनुसार वामदल से परे तृणमूल के साथ गठबंधन करती है तो कांग्रेस की यह दूसरी बडी़ भूल होगी क्योंकि वामदल आज भले ही कमजोर है लेकिन कोई उस पर कभी भी भाजपा के साथ जाने की बात नहीं सोच सकता है,जबकि ममता ऐसा पूर्व में कर चुकी हैं।और तो और कांग्रेस के एकमात्र विधायक को भी तोड़कर पार्टी अपने साथ मिला चुकी हैं इसके अलावा कांग्रेस कार्यकर्ताओं के साथ उन्होने बंगाल में बुरा सलूक ही किया है वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी की बात शतप्रतिशत सही है कि जो कांग्रेस कार्यकर्ता ममता के जुल्म को सहकर कांग्रेस का झंडा बुलंद किए हैं उनकी कीमत पर ममता बनर्जी की पार्टी से तालमेल करना कहीं से उचित नहीं है और पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस के लिए वामदलों के साथ मिल कर लोकसभा का चुनाव लड़ने का सबसे सही यह समय है। ममता ने कांग्रेस के विरोध में पहले भी क ई राज्यों में चुनाव लड़कर कांग्रेस का काफी नुक्सान पहुंचा चुकी है।वर्तमान समय में अधीर रंजन जो ममता बनर्जी के घुर विरोधी हैं ,के काम के बोझ।की अधिकता के कारण नये अध्यक्ष की तलाश की जा रही है, सम्भवतः 30 जून तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी गठित कर ली जाएगी, साथ ही क ई राज्यों के अध्यक्ष और प्रभारी भी बदले जाने हैं। , सम्पादकीय-News51.in