भारतीय शिक्षा की वास्तविक समस्याए
इन दिनों शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की बाते काफी जोरो से की जा रही है | इस बात की जरूरत भी लम्बे समय से महसूस की जा रही थी | सुधार की इन बातो के दो सिरे है — पहला सिरा शिक्षा के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के बारे में है और दूसरा विचारधारात्म्क | इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की ज्यादातर बाते ऑनलाइन और सुचना क्रान्ति से जुडी सुविधाओं को स्कूलों को मुहैया कराने तक सीमित है | दूसरा गंभीर पहलु विचारधारात्मक है | इसका सम्बन्ध पाठ्यक्रमो के नवीनीकरण , परिवर्तन आदि से है |
यहनवीनीकरण या परिवर्तन मोटे तौर पर राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ के विचारधारात्मक लक्ष्यों से सम्बन्धित है |
अब देखते है कि भारतीय शिक्षा की मूल समस्याए क्या है —
1 — भारतीय शिक्षा की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह दो हिस्सों में बटी है | गरीबो के लिए शिक्षा और अमीरों के लिए शिक्षा | इसके अनुसार ही स्कूलों की सारी व्यवस्था , शिक्षा का माध्यम आदि सभी बातो का निर्धारण होता है |
2 – शिक्षा का अल्पमत सरकारी बजट , जिसका अधिकाश हिस्सा शिक्षा पर खर्च न होकर बहुत तरह के निहित स्वार्थो की सेवा में खर्च होता है |
3 – उच्च शिक्षा की सारी व्यवस्था अमीर तबके के लिए है , जिसे अंतिम रूप से सुनिश्चित करने के लिए अंग्रेजी माध्यम के रूप में अप्रश्नेय इस्तेमाल है | यह प्रत्यक्ष तौर पर एक वर्ग की शिक्षा पर और शिक्षा के जरिये उच्चस्तरीय नौकरियों पर सम्पूर्ण और अभेद्य आरक्षण है | इस लक्ष्य के लिए एक विदेशी और औपनिवेशिक भाषा का दुरपयोग है | जिसका परिणाम राष्ट्रव्यापी हीनभावना का संचार है , प्रतिभा का हनन है और शिक्षा का सम्पूर्ण और एकमात्र लक्ष्य अर्थव्यवस्था और सुविधाओं में एक बहुत छोटे से वर्ग का एकाधिकार है |
4 – सुचना क्रांति का इस्तेमाल देशी हितो के लिए न होकर वैश्विक रूप से ताकतवर देशो के लिए इस प्रकार किया जा रहा है ताकि शिक्षा के जरिये अन्य देशो को अर्धशिक्षित वर्कपावर उनकी जरूरत के मुताबिक़ उपलब्ध हो सके |
5 – आधुनिक भारत ने राजा राममोहन राय से लेकर महात्मा गांधी तक विचारों की दो सौ साल लम्बी जद्दोजहद के बाद स्वरूप लेना आरम्भ किया था | स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ये मूल्य सशक्त हुए और उन सामाजिक मूल्यों में बदले जिन पर हमारी शिक्षा का ढाचा खड़ा होना था | इन मूल्यों को हमारी शिक्षा – प्रणाली उसके पाठ्यक्रम गुजरे वर्षो में सशक्त और प्रभावी ढंग से लागू करने में विफल रहे है और अब तो इन मूल्यों को अनावश्यक करार दिए जाने की योजनाबद्द कोशिश की जा रही है |
6 – भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है | यह बहुलता , क्षेत्रीय भी है और सांस्कृतिक भी है | हमारी शिक्षा में उत्तर भारत की धार्मिक संस्कृतिक से इतर परम्पराओं की शिनाख्त भी नही है |
7 – शिक्षा के य्द्देश्य के रूप में लगातार आजीविका पर गैरजरूरी बल दिया जा रहा है , इसका परिणाम यह हुआ कि शिक्षा से मूल्य और मनुष्यता का विलोप हुआ है , जबकि यह बहुत बड़ा सच है की शिक्षा का रोजगार से वैसा प्रत्यक्ष सम्बन्ध हो ही नही सकता , कयोकी जब अर्थव्यवस्था रोजगार न उत्पन्न कर सके तो आजीविका के लिए शिक्षित होने मात्र से रोजगार कैसे मिल जाएगा ? यानी यह मामला ऐसा है की समस्या की जड़ कही है , इलाज कही किया जा रहा है |
ये कुछ मुख्य बिंदु थे | संक्षेप में भारत को आधुनिक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बहुलतावादी संस्कृति , 19 वी सदी के भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता आन्दोलन के मूल्यों पर आधारित शिक्षा – व्यवस्था , शिक्षा के इन्फ्रास्टक्चर पाठ्यक्रमो की आवश्यका है , जो देश के करोड़ो बच्चो युवाओं को शिक्षा की मुख्यधारा में शामिल कर सके | यह शिक्षा वर्ग – भेद को खत्म करने का माध्यम बने , न कि उसे और सुदृढ़ करने और संरक्षित करने का उपकरण मात्र बनकर रह जाए , जैसी कि वह आज है | यह शिक्षा बच्चे के मष्तिष्क को धार्मिक , जातीय क्षेत्रीय , सामजिक पूर्वाग्रहों से मुक्त करे और उसके अस्तित्व को बेहतर ढंग से निर्मित करे | शिक्षा राष्ट्रवाद की राजनीति की प्रयोगशाला न बने , बल्कि ऐसी हो जिसके भीतर से यह राष्ट्र अपनी भावी पीढी के रूप में भाषा और सामाजिक स्तर की हीन भावना से मुक्त हो सके |
अहा ! जिन्दगी —- आलोक श्रीवास्तव