विपक्ष ने कांग्रेस की अगुवाई में 26 दलों का गठबंधन तो हो गया और अब अगले चरण की बैठक में सम्भवतः लोकसभा चुनाव में राज्यों में सीटों के तालमेल पर चर्चा भी होनी शुरू हो जाएगी।इसकी बनस्पति भाजपा की अगुवाई वाले 38 दलों की अगली बैठक में लोकसभा चुनाव के लिए पार्टियों के तालमेल और राज्यों में सीटों के बंटवारा में ज्यादा आसानी होगी क्योंकि वहां भाजपा लीड करते हुए जो सीटें गठबंधन सहयोगियों को देगी वह ज्यादातर सभी दलों को मजबूरी में या दबाव में मान ही लेंगे। कांग्रेस नीत विपक्षी दलों के गठ बंधन में जिन तीन दलों से सीटों का बंटवारा होना है उनमें यूपी में अखिलेश यादव ,जयंत चौधरी का कांग्रेस से गठबंधन भी थोडी़ बहुत जद्दोजहद के बाद फाइनल भी हो ही जायेगा ।लेकिन मेरा अपना व्यक्तिगत रूप से मानना है कि कांग्रेस को पश्चिम बंगाल में अपने स्वाभाविक सहयोगी वामदलों के साथ ही मिल कर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहिए ममता बनर्जी भारतीय राजनीति की चार सबसे अविश्सनीय चेहरों में एक हैं एकमात्र कांग्रेस विधायक को अपनी पार्टी में।मिला लेना और कांग्रेस तथा वामदल के नेताओं और समर्थकों का उत्पीड़न करना, कुल मिलाकर ममता बनर्जी कत्त ई कांग्रेस,वाम गठबंधन को बंगाल में जरा भी उभरने का मौका देंगी। इसीप्रकार आम आदमी पार्टी के मुखिया केजरी वाल दिल्ली और पंजाब में फिर से पनपने का मौका देना चाहेंगे इस समय कुछ मजबूरियों के चलते और दिल्ली अध्यादेश के विरोध में कांग्रेस का साथ लेने की मजबूरी तथा राहुल गांधी और कांग्रेस के बढते हुए ग्राफ को( खासकर भारत जोडों यात्रा से नये राहुल गांधी के उदय ने और भाजपा के दो मजबूत गढ हिमांचल और कर्नाटक पर जीत के बाद कांग्रेस का हौंसलाकाफी बढा है) देख मजबूरी में अरविंद केजरीवाल ने अपनी महत्वाकांक्षा पर फिलहाल रोक लगा रखी है, लेकिन गाहे बगाहे उनके नेता यह कहने से बाज नहीं आते कि। यह समझौता या गठबंधन मात्र लोकसभा चुनावों के लिए है।अब यहां यह बताना महत्वपूर्ण होगा कि शरदपवार ने सोनियां गांधी को 2005 में प्रधानमंत्री बनने देने का सबसे ज्यादा मुखर विरोध किया था और भाजपा से ज्यादा विदेशी होने का ढिंढोरा पीटा था, जिसके कारण सोनियां गांधी ने अपने पैर खींच लिए थे और मनमोहन सिंह को प्रधान मंत्री बनवाया था । कल्पना कीजिए अगर कांग्रेस नीत गठबंधन में दल का नेता चुनने की बात आती है तो क्या अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, नीतिश कुमार और सबसे उपर शरद पवार किसी भी तरह राहुल गांधी के नाम पर राजी होंगे और तो और अखिलेश यादव भी कत्त ई तौर पर इंडिया गठबंधन का नेता राहुल गांधी को मानने को स्वीकारेंगे, शायद कत्त ई नहीं।और तभी मल्लिकार्जुन खरगे के राजनैतिक कौशल की असल परीक्षा होगी। सम्पादकीय-News51.in
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