Saturday, December 21, 2024
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ब्रिटिश महिला टेनिस खिलाड़ी ऐमा राडुकानु-दो देशों की नागरिकता वाली खिलाड़ी

…दुनिया आगे कहाँ जा रही है,
और हिंदुस्तान कई सदी पीछे

अभी एक ब्रिटिश टेनिस खिलाड़ी एमा राडुकानू ने यूएस ओपन टूर्नामेंट जीता तो वह लंबे अरसे के बाद दुनिया का कोई ग्रैंड स्लैम टाइटल जीतने वाली ब्रिटिश महिला खिलाड़ी बनी। इसके पहले ग्रैंड स्लैम सिंगल्स टाइटल 1977 में ब्रिटेन की वर्जीनिया वेड ने विंबलडन जीतकर हासिल किया था और उसके बाद का यह लंबा फासला ब्रिटेन की महिला टेनिस खिलाडिय़ों के लिए बड़े इंतजार का था। लेकिन एमा की जीत की खुशी कई जगह मनाई जा सकती है, वह टोरंटो में पैदा हुई थी तो वह जन्म से कनाडा की नागरिक है। उसके पिता रोमानिया से आकर कनाडा में बसे थे, और उसकी मां चीन से आकर वहां बसी थी, और वहीं उसके पिता से मिली थी। वह जन्म के बाद जल्द ही ब्रिटेन आकर बस गई थी और उसकी पढ़ाई-लिखाई यहीं पर हुई। इस तरह उसके पास इन दोनों देशों की नागरिकता है। वह अपनी मां के जन्म के देश चीन की मंडारिन भाषा बखूबी बोलती है। अब कोई अगर यह सोचे कि वह कहां की है, तो यह सोचना मुश्किल है। उसकी इस जीत के बाद वह जिस तरह खबरों में आई, तो उससे कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर यह भी लिखा कि उसे लाखों चीनी अपना आदर्श मान रहे हैं, और रोमानिया में भी उसकी जीत की खुशियां मनाई जा रही हैं, कनाडा और ब्रिटेन तो खुश हैं ही।

लेकिन इस एक खिलाड़ी की जीत से यूरोप के कई लोगों के बीच में यह चर्चा शुरू हो रही है कि देशों की सरहदें किसके काम आती हैं, और किसका आगे बढऩा उससे रुकता है? मां किसी देश की, बाप किसी देश का, पैदा किसी देश में हुए, और पढ़े किसी और देश में। आज दुनिया के जिन देशों में लोग धर्म को लेकर, जाति को लेकर लड़े पड़े हैं, जहां पर नफरत का बोलबाला है, ऐसे हिंदुस्तान जैसे देश क्या अगली सदी में भी इस किस्म की उदारता के बारे में सोच पाएंगे? आज एक धर्म की लडक़ी दूसरे धर्म के लडक़े से किसी रेस्तरां में मिल रही है तो उसे उत्तर प्रदेश में खुलेआम पीटा जा रहा है, अगर लडक़ी ने दूसरी जाति में शादी कर ली तो लडक़ी के घरवाले जाकर लडक़े को मार डाल रहे हैं, और जरूरत रहे तो अपनी लडक़ी को भी मार रहे हैं। कहीं लडक़ी के प्रेमी को घर पर बुलाकर उसे पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया जा रहा है और छत से नीचे फेंक दिया जा रहा है। आज दुनिया के दो अलग-अलग हिस्से दो अलग-अलग युगों में जी रहे हैं। यह फर्क महज एक सदी का हो ऐसा भी नहीं है, कई सदियों का फर्क है, और एक जगह नफरत का बोलबाला है, और दूसरी जगह कामयाबी का।

आज जिन देशों में लोगों के सिर पर धर्म की नफरत, राष्ट्रीयता की नफरत, रंग की नफरत नहीं रहती, उन देशों में लोग अपनी पूरी क्षमता के आसमान पर पहुंच सकते हैं और अपनी संभावनाओं का पूरा फायदा उस देश को दे सकते हैं। अमेरिका इसकी एक सबसे बड़ी मिसाल है क्योंकि वहां नौजवान पीढ़ी को तकरीबन तमाम बातों में एक बराबरी का मौका मिलता है, और हिंदुस्तान में जिन बातों को लेकर वैलेंटाइन डे पर लोगों को मारा जाता है, जबरदस्ती राखी बंधवाई जाती है, ऐसे कोई सामाजिक तनाव वहां की नौजवान पीढ़ी पर नहीं रहते, और वह अपनी पूरी संभावनाओं का इस्तेमाल कर पाती है। जब समाज में एक समानता और सद्भावना का माहौल रहता है तो वहां आगे बढ़ते हुए लोग अलग दिखते हैं। शायद कई दूसरी वजहों के साथ-साथ हिंदुस्तान के खेल में पिछडऩे की, कारोबार या दूसरी प्रतिभाओं में पिछडऩे की एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां नौजवान पीढ़ी के दिमाग से तनाव कम नहीं होता, और कुंठा बढ़ती चली जाती है। वे न अपनी मर्जी से शादी कर सकते, न अपनी अपनी मर्जी से किसी के साथ उठ बैठ सकते, न मर्जी का खा सकते, न मर्जी का पहन सकते। ऐसे में तनाव और कुंठा से भरी हुई नौजवान पीढ़ी के आगे बढऩे की संभावनाएं बड़ी सीमित रहती हैं। और अब तो इस देश में विज्ञान के नाम पर जो ‘वैदिक’ अवैज्ञानिक बातें पढ़ाई जा रही हैं, बढ़ाई जा रही हैं, वे सब नौजवान पीढ़ी को एक ऐसी अंधेरी सुरंग में धकेल रही हैं, जहां से बाहर निकलने का रास्ता जल्द मिलने वाला नहीं है।

जो हिंदुस्तानी नौजवान दुनिया के दूसरे देशों में जाते हैं और अपनी क्षमताओं को साबित करते हैं, दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों के मुखिया हो जाते हैं और कामयाब रहते हैं, उनकी कामयाबी का हिंदुस्तान से लेना-देना कम रहता है, यहां के पढ़े-लिखे से लेना-देना कम रहता है, उसका अधिक लेना-देना उन देशों में काम करने की परिस्थितियों और रहने-जीने की परिस्थितियों से अधिक रहता है। वहां पर जिस तरह भ्रष्टाचार और राजनीतिक दखल के बिना वे कारोबार कर सकते हैं, वहां वे जिस तरह बिना किसी डर के अपनी राजनीतिक पसंद के पक्ष में काम कर सकते हैं, हिंदुस्तान में वैसा करने का सोच भी नहीं सकते। इसलिए जब लोगों की राजनीतिक और लोकतांत्रिक भावनाओं को डरा कर रखा जाता है, दहशत में रखा जाता है, तो उससे उनका व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है और वे अपनी संभावनाओं को कहीं छू नहीं पाते। दुनिया में राष्ट्रीयता, रंग, नस्ल, सेक्स, इन सबसे परे जिस तरह लोग आगे बढ़ते हैं, हिंदुस्तान शायद अगली सदी में भी उस तरह की कामयाबी नहीं पा सकेगा क्योंकि हमारी सोच बड़ी तेजी से कुछ सदी पीछे ले जाई जा रही है। आज के मुद्दों से, आज की दिक्कतों से निपटने और कल की संभावनाओं के लिए ठोस काम करना एक बड़ा मुश्किल काम है, एक नामौजूद काल्पनिक इतिहास को लेकर कीर्तन करना एक अधिक आसान काम है, और वैसे कीर्तन में हिलने के लिए हिंदुस्तान में सिरों की कोई कमी तो है नहीं। -सुनील कुमार

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